दालचीनी के बिना गरम मसाले की बात बेमानी है. देश में शायद ही किसी घर में कोई ऐसा किचिन होगा जहां गरम मसालों का इस्तेमाल न होता हो. न्यूट्रिशन एक्सपर्ट की मानें तो दालचीनी शामिल होते ही जहां गरम मसाले का स्वाद बढ़ जाता है, वहीं दूसरी और दालचीनी इम्यूनिटी बढ़ाने का काम भी करती है. देश ही नहीं विदेशों में भी कोरोना के दौरान इसका खूब जिक्र हुआ था. लेकिन दालचीनी से जुड़ी अच्छी खबर ये है कि भारत इसके उत्पादन में एक लम्बी छलांग लगाने जा रहा है.
अभी तक हमारे देश में दालचीनी का जितना इस्तेमाल होता है उसका 90 फीसद हिस्सा आयात करना पड़ता है. सिर्फ 10 फीसद उत्पादन ही हमारे देश में होता है. दालचीनी का उत्पादन बढ़ाने के लिए देश के दूसरे इलाकों में भी इसे उगाने की रिसर्च चल रही है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयो रिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश इस मामले में बहुत तेजी से काम कर रहा है. संस्थान का दावा है कि चार साल की रिसर्च के बाद अब हम कह सकते हैं कि अकेले हिमाचल प्रदेश ही दालचीनी से जुड़ी देश की जरूरत को पूरा कर सकता है.
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आईएचबीटी के साइंटिस्ट डॉ. रमेश चौहान का कहना है कि हमारे देश में 50 हजार टन तक दालचीनी की खपत है. इसमे से 45 हजार टन दालचीनी श्रीलंका और वियतनाम समेत दूसरे देशों से आयात की जाती है. अगर हम अपने ही देश में दालचीनी के उत्पादन की बात करें तो दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में करीब पांच हजार टन तक इसका उत्पालदन होता है. इन्हीं आंकड़ों से इसकी खपत का अंदाजा लगाया जा सकता है. खासतौर पर गरम मसालों के साथ इसका इस्तेमाल किया जाता है.
डॉ. रमेश चौहान ने बताया कि रिसर्च के दौरान हिमाचल प्रदेश के पांच शहरों में दालचीनी के पौधे लगाए गए हैं. साल 2021 से इस पर रिसर्च चल रही है. ऊना, बिलासपुर, कांगड़ा और सिरमौर में हमने इसके पौधे लगाए हैं. पालमपुर में हमारे संस्थान में भी इसके पौधे लगे हुए हैं. साल 2022 में भी हमने 10 हजार पौधे किसानों को दिए थे. शुरुआत में हमने केरल से यह पौधे मंगाए थे. इसका पौधा चार साल बाद दालचीनी का उत्पादन देने लगता है. हमारे कुछ पौधों को चार साल हो चुके हैं. अभी तक सब कुछ बढ़िया चल रहा है. उम्मीद है कि इसी साल हमे दालचीनी की पहली फसल हिमाचल प्रदेश में मिल जाएगी.
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डॉ. रमेश ने बताया कि दालचीनी के लिए कोस्टल एरिया वाला वातावरण चाहिए होता है. जैसे तापमान की बात करें तो 25 से 30 होना चाहिए. वहीं आद्रता 70 से 80 हो. अगर हिमाचल की बात करें तो पोंग डैम और गोविंद सागर झील का इलाका दालचीनी के पौधों के लिए बहुत ही लाभदायक है. अभी हमने नौ हेक्टेयर एरिया में फसल लगाई है. हमारा शुरुआती लक्ष्य. 50 हेक्टेयर का है. दालचीनी लगाने के लिए हमारे पास हिमाचल में ही इतनी जमीन है कि देश की खपत को पूरा किया जा सकता है.