किसानों का विरोध प्रदर्शन इस समय पूरे देश में चल रहा है. उनकी कई मांगों में एक मांग यह भी है और वह है स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट को लागू करना. साल 2010 से ही किसान इस पर अड़े हुए हैं. चाहे वह महाराष्ट्र हो, मध्य प्रदेश हो, पंजाब हो या तमिलनाडु, विभिन्न राज्यों के किसान वर्षों से एमएस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को पूर्ण रूप से लागू करने की मांग कर रहे हैं. एमएसपी गारंटी कानून, स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट, बिजली संशोधन बिल और कर्ज माफी की मांग को लेकर प्रदर्शनकारी किसानों से राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली इस समय घिरी हुई है. जानिए इस स्वामीथान रिपोर्ट के बारे में सबकुछ और यह भी कि इस रिपोर्ट को लाने का मकसद क्या था.
केंद्र सरकार ने यह कहकर घबराहट को शांत करने की कोशिश की है कि फसलों पर एमएसपी की गारंटी देने वाला कानून सभी हितधारकों से परामर्श किए बिना जल्दबाजी में नहीं लाया जा सकता है. वहीं, कांग्रेस के राहुल गांधी ने मंगलवार को कहा कि अगर पार्टी को वोट दिया जाता है तो सत्ता में आने के बाद हर किसान को एमएसपी की कानूनी गारंटी देगी. नरेंद्र मोदी सरकार ने कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद कहा कि उसने आयोग द्वारा की गई 201 सिफारिशों में से 200 को स्वीकार कर लिया है, जिसमें एमएसपी की मांग भी शामिल है.
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दिवंगत एमएस स्वामीनाथन को हाल ही में भारत रत्न से सम्मानित किया गया है, उन्होंने राष्ट्रीय किसान आयोग (एनसीएफ) की अध्यक्षता की थी. एनसीएफ ने दिसंबर 2004-2006 के बीच कुल पांच रिपोर्ट प्रस्तुत की थीं. एनपीएफ के मसौदे के आधार पर, सरकार ने खेती की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार लाने और किसानों की शुद्ध आय बढ़ाने के उद्देश्य से किसानों के लिए राष्ट्रीयश् नीति, 2007 को मंजूरी दी थी.
नीति में विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में परिसंपत्ति सुधार, अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों की आपूर्ति, संस्थागत ऋण की समय पर और पर्याप्त पहुंच, एक व्यापक राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत किसानों का कवरेज, एमएसपी का प्रभावी कार्यान्वयन, आदि शामिल थे.
एनसीएफ ने सिफारिश की थी कि एमएसपी उत्पादन की औसत लागत से कम से कम 50 प्रतिशत ज्यादा होना चाहिए. इसे C2+50 प्रतिशत फॉर्मूला के रूप में भी जाना जाता था. इसमें किसानों को 50 प्रतिशत रिटर्न देने के लिए पूंजी की इनपुट लागत और भूमि पर किराया शामिल होता है. गौरतलब है कि इस सिफारिश को यूपीए सरकार ने 2007 में अंतिम रूप दी गई किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति में शामिल नहीं किया था.
पैनल के प्रमुख निष्कर्षों में से एक यह था कि अधूरे भूमि सुधार, पानी की मात्रा और गुणवत्ता, तकनीकी थकान से उत्पन्न कृषि संकट किसानों की आत्महत्या का कारण बन रहा था. इसके अलावा, प्रतिकूल मौसम संबंधी कारक भी एक समस्या थे. इस हद तक, एनसीएफ ने देश के संविधान की समवर्ती सूची में 'कृषि' को जोड़ने का आह्वान किया था.
आयोग ने किसानों और भूमि सुधारों से जुड़ी समस्याओं पर भी गौर किया. पैनल ने सुझाव दिया कि गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए 'प्रमुख' कृषि भूमि और वन को कॉर्पोरेट क्षेत्र में स्थानांतरित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. इसने एक तंत्र स्थापित करने की भी सिफारिश की जो कुछ शर्तों के आधार पर कृषि भूमि की बिक्री को विनियमित करने में मदद करेगी.
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सिंचाई के मोर्चे पर, आयोग ने सुधारों की अपील की जिससे किसानों को पानी तक निरंतर और न्यायसंगत पहुंच हासिल हो सकेगी. पंचवर्षीय योजना के तहत सिंचाई क्षेत्र में निवेश बढ़ाने की सिफारिश की थी. पंचवर्षीय योजना को अब खत्म किया जा चुका है. भारत के कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने के लिए, एनसीएफ ने कृषि-संबंधित बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने की सिफारिश की. संरक्षण खेती को बढ़ावा देने का भी सुझाव दिया एनसीएफ की तरफ से दिया गया था. माना गया था कि इससे किसानों को अन्य लाभों के अलावा मृदा स्वास्थ्य के संरक्षण और सुधार में मदद मिलेगी.
किसानों के लिए ऋण उपलब्धता में सुधार एक ऐसा मुद्दा है जिस पर आयोग ने चर्चा की. कई सुझावों में से, इसने सरकारी समर्थन के साथ फसल ऋण की दर को घटाकर चार प्रतिशत 'सरल' करने की सिफारिश की. इसने महिला किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड जारी करने का भी सुझाव दिया था. बीमा के मोर्चे पर, एनसीएफ ने एक ग्रामीण बीमा विकास कोष के निर्माण की सिफारिश की, जो ग्रामीण बीमा के प्रसार के लिए विकास कार्यों को वित्तपोषित करने में मदद करेगा.
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