Kisan Tak Summit 2024: "रासायनिक खेती से शुरू हुआ सारा केमिकल लोचा," ऑर्गेनिक खेती पर रोचक चर्चा

Kisan Tak Summit 2024: "रासायनिक खेती से शुरू हुआ सारा केमिकल लोचा," ऑर्गेनिक खेती पर रोचक चर्चा

किसान तक का महासम्मेलन 'खेती का दशक' में कई सफल और सम्मानित किसानों ने हिस्सा लिया. इस कार्यक्रम के सत्र 'खेती का केमिकल लोचा' में कुछ पद्मश्री सम्मानित और प्रगतिशील किसानों ने हिस्सा लिया. इस सत्र में इन सफल किसानों ने देश के दूसरे किसान भाइयों को खेती में सफल होने के मंत्र दिए.

Kisan Tak Summit 2024Kisan Tak Summit 2024
क‍िसान तक
  • नोएडा,
  • Dec 19, 2024,
  • Updated Dec 19, 2024, 6:06 PM IST

इंडिया टुडे ग्रुप के डिजिटल और यूट्यूब चैनल किसान तक का महासम्मेलन चल रहा है. इस कार्यक्रम के एक सत्र 'खेती का केमिकल लोचा! ऑर्गेनिक खेती के अगले 10 बरस' में जैविक खेती को लेकर बहुत गहन और विस्तार से चर्चा हुई. इस दौरान पद्मश्री सम्मानित उत्तर प्रदेश के किसान भारत भूषण त्यागी, पद्मश्री सम्मानित उत्तराखंड के किसान डॉ. प्रेमचंद्र शर्मा और मध्य प्रदेश के प्रगतिशील किसान ताराचंद बेलजी ने हिस्सा लिया. साथ ही इस सत्र में पंजाब बासमती एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के डायरेक्टर अशोक सेठी और नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट के डिप्टी डायरेक्टर जनरल, डॉ. सुरेश कुमार चौधरी ने भी बहुत अहम बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया.

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"जिंक बिना फसल और इंसान दोनों नहीं बढ़ते"

इस सत्र में प्रगतिशील किसान ताराचंद बेलजी ने 'केमिकल लोचा' पर बताया कि अगर खेत में जिंक नहीं है तो पौधे में ऊंचाई नहीं आएगी और पौधे पर वायरल भी हमला कर देगा. जब इस गेहूं को लोग खाएंगे तो उनकी भी हाइट कम रहती है. ताराचंद बेलजी ने कहा कि इस गेहूं को खाने वालों पर भी वायरस अटैक करते हैं. उन्होंने कहा कि आज की नई पीढ़ी की लंबाई कम होने लगी है और उनपे भी वायरस जल्दी हमला कर देता है. कोरोना महामारी में भी डॉक्टरों ने दवा के साथ जिंक दिया था और बच्चों को भी जिंकोविट देते हैं. 

ताराचंद ने कहा कि इंसानों से लेकर मिट्टी में भी माइक्रोन्यूट्रिएंट की कमी हो रही. पहले भारत में हर तरह की मिट्टी में माइक्रोन्यूट्रिएंट होते थे. जब से रासायनिक खेती शुरू हुई, तब से केमिकल लोचा शुरू हुआ है. अगर भारत में प्राकृतिक खेती हो तो ना कभी मिट्टी में केमिकल लोचा होगा और ना ही हमारे भोजन में होगा. उन्होंने कहा कि खेती में माइक्रोन्यूट्रिएंट की जरूरत कैसे पूरू करें, ये प्राचीन ग्रंथों में बताया गया है और ऐसे 13 गंथों का हिंदी में अनुवाद करके हमने दिया है. इन ग्रंथों पर 15 साल तक लगातार काम करके मैंने खेती के लिए 150 फॉर्मूले बनाए हैं. ताराचंद बेलजी ने बताया कि हमारी टीम 1100 एकड़ में जैविक खेती कर रही है और पिछले 2 साल से महिंद्रा हमें ऑर्गेनिक खेती में देश का प्रथम पुरस्कार दे रहा है.   

पद्मश्री किसान ने सुनाई कविता

पद्मश्री सम्मानित उत्तराखंड के किसान डॉ. प्रेमचंद्र शर्मा ने एक मजेदार बात बताई. उन्होंने बताया कि मुझे हाल ही में डॉक्टर की उपाधि से नवाजा गया है और मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा भी नहीं हूं. उन्होंने कहा कि मैं सिर्फ एक नवाचार किसान हूं और कृषि में तरह-तरह के नवाचार किए हैं. डॉ. प्रेमचंद्र ने किसान तक से कहा कि अब अगला कार्यक्रम किसान के खेत तक किया जाए. प्रगतिशील किसान डॉ. प्रेमचंद्र ने इस दौरान एक कविता भी सुनाई. 

"भारत मां के किसान सपूत जो पूज रहे इस माटी को
सोचो मिलकर आज सुरक्षित रखना हिमालय घाटी को
हिमालय से जलधारा बहती, वो देश की सींचे माटी को
सारे जहां से सुंदर बनाओ देव हिमालय घाटी को"

"माटी में ही पैदा हुआ सब, माटी में ही मिल जाता है
इस माटी से जीव-जंतु का जनम जनम का नाता है
माटी का ही खेल है सारा, सब माटी से मिलता है
सोना-चांदी, लोहा जस्ता माटी से ही निकलता है"

"डिमांड के चक्कर में डाले केमिकल"

इस सत्र में पंजाब बासमती एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के डायरेक्टर अशोक सेठी ने कहा कि खाद्य उत्पादन में पंजाब हमेशा अग्रणी रहा है. जब देश में खाद्य का अकाल पड़ा तो पंजाब ने ही आगे बढ़कर देश का पेट भरा. अशोक सेठी ने कहा कि जब देश की आबादी बढ़ती गई और पैदावार घटती गई, तो पंजाब ने ज्यादा उत्पादन के लिए खेती में केमिकल डालने शुरू किए. उन्होंने कहा कि 80 के दशक में सबसे पहले हमने बासमती का एक्सपोर्ट शुरू किया तो सबसे पहला कंटेनर अमृतसर से दुबई गया था और आज की तारीख में 140 से भी ज्यादा हमारी बासमती एक्सपोर्ट हो रहा है, जिसका सबसे बड़ा हिस्सा पंजाब से जाता है. 

अशोक सेठी ने कहा कि पंजाब की धरती बनी ही बासमती के लिए है. इसके बाद जब बासमती मांग बढ़ी तो हमने केमिकल का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. पहले जिस बासमती का उत्पादन 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ ही हुआ करती थी. लेकिन फिर ईरान, इराक और खाड़ी देशों से बासमती की मांग आई तो बासमती का उत्पादन बढ़ाने के लिए रसायन डाले और अब बासमती का उत्पादन 18-19 क्विंटल प्रति एकड़ होने लगा. उन्होंने बताया कि पिछले 8 सालों से केमिकल फर्टिलाइजर और पेस्टीसाइड कम इस्तेमाल करने के लिए हम बड़े स्तर पर कैंपेन चला रहे हैं और अगले 2-3 सालों में कोशिश है कि रसायन मुक्त बासमती मिलने लगेगा.

"शिक्षा को नौकरी नहीं, कृषि के लिए करें तैयार"

उत्तर प्रदेश से आए पद्मश्री सम्मानित किसान भारत भूषण त्यागी ने कहा कि खेती में परिवर्तन की आवश्यकता है और इसके दो बड़े मुद्दे हैं. एक जो हमने व्यक्तिगत तरीके से खेती लागत आधारित की थी, उसका सफर पूरा हो गया, उससे उत्पादन भी बढ़ा और देश के किसानों को लाभ भी मिला. अब चुनौती ये है कि खेती को अब व्यवसाय से कैसे जोड़ा जाए और युवाओं से कैसे जोड़ा जाए. अगर ये सब खेती से जुड़ भी जाएं तो इन्हें सहकारिता का स्वरूप देना भी बड़ी चुनौती है. देश की कृषि में इस वक्त इन परिवर्तन की जरूरत है. 

भारत भूषण त्यागी ने कहा कि इनपुट बेस्ड उत्पादन का सफर पूरा हो गया है, अब हमें इससे आगे बढ़ना होगा. अब जरूरत है कि अनुंसधान परिस्थितियों के लिए नहीं बल्कि व्यवस्था के लिए हो. हमें अपनी खेती को लीनियर इकोनॉमी से कैसे सर्कुलर इकोनॉमी में लाना है, ये सोचना होगा. पद्मश्री भारत भूषण त्यागी ने आगे कहा कि अब शिक्षा में भी कृषि के लिए बदलाव करने होंगे. बच्चों की सारी पढ़ाई नौकरी के हिसाब से ही होती है. 

प्रोग्राम के स्पॉन्सर्स

Kisan tak summit 2024 के स्पॉन्सर उत्तर प्रदेश सरकार (स्टेट पार्टनर), स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (बैंकिंग पार्टनर), स्टारएग्री (वेयरहाउस पार्टनर), धानुका एग्रीटेक लिमिटेड (एसोसिएट पार्टनर), इफको, यारा, एमएमएल हैं. प्रोग्राम का नॉलेज पार्टनर आईसीएआर.

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