मुजफ्फरपुर जिले की प्रसिद्ध शाही लीची से जुड़ी एक रहस्यमय जानकारी सामने आई है. मुजफ्फरपुर जिले में सबसे पहले शहर में स्थित बड़ी ईदगाह के बगीचे में लीची का फल पकता है. इस पूरे जिले में सबसे पहले यहीं लीची की तुड़ाई भी होती है. उसके बाद ही कहीं लीची की किसान तुड़ाई करवाते हैं. इसके एक सप्ताह बाद ही दूसरी जगहों की लीची पकती है. इसे लेकर कई रिसर्च कंपनियां यहां आकर इसके बारे में रिसर्च कर कर चुकी हैं. इन कंपनियों ने फोटो भी लिया, कई बातों को समझा भी. मगर कोई ठोस जवाब उनके पास नहीं है.
लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक वैज्ञानिक डॉक्टर विकास दास का मानना है कि मिट्टी की ऊपरी सतह पर ब्रिक्स की सतह लगने से लीची के पकने की प्रक्रिया तेज हो जाती है. इससे लीची जल्दी पक जाती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह कोई विशेष या अलग किस्म की लीची है. यह शाही लीची ही है, जो अपनी क्वालिटी और स्वाद के लिए जानी जाती है. शाही लीची अपनी मिठास और स्वाद के लिए प्रसिद्ध है. यह लीची की एक प्रमुख किस्म है, जो बिहार में व्यापक रूप से उगाई जाती है. मुजफ्फरपुर में मुख्य रूप से शाही लीची की खेती की जाती है, जो अपने अनोखे स्वाद और क्वालिटी के लिए प्रसिद्ध है.
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ईदगाह के लीची बागान की देखभाल करने वाले किसान मोहम्मद निजामुद्दीन ने बताया कि सैकड़ों वर्षों से इस बगीचा में सबसे पहले लीची फल सबसे पहले पक कर तैयार हो जाता है. हमारे अब्बा हुजूर भी लीची का ही कारोबार करते थे. वो भी बतलाते थे कि सबसे पहले बड़ी ईदगाह की ही लीची पक कर तैयार होती है. इसकी मुख्य वजह तो हम लोगों को नहीं पता है, लेकिन ऐसा मानते हैं कि बड़ी ईदगाह का पूरे शहर से वातावरण काफी अच्छा है. इसलिए यहां सबसे पहले लीची का फल पक कर तैयार होता है. यहां की लीची का स्वाद और फल का गूदा भी बेहतर होता है. यही वजह है कि इसकी काफी डिमांड होती है.
खास बात यह है कि यहां की लीची से जो भी पैसा आता है, वह ईदगाह कमेटी के पास जमा होता है. इस पैसे को ईदगाह के जरूरतों और कामकाज में लगाया जाता है. ईदगाह में बगीचा में अभी 40 से 50 लीची का पेड़ है जिसे हर साल 50 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक की आमदनी होती है. मोहम्मद निजामुद्दीन कहते हैं, पिछले 15 सालों से इस बगीचा की जिम्मेदारी मुझे दी गई है. हर साल 100 कार्टून लीची का फल तैयार होता है जिसे बिक्री करने के दिल्ली के बाजारों में भेजा जाता है. इस साल लीची की शुरुआती कीमत 150 रुपये से लेकर 200 रुपये तक की जाए. दिल्ली के कारोबारी लीची किलो में ही बेचते हैं. इस साल मई के दूसरे सप्ताह में सबसे पहले शाही लीची दिल्ली के बाजारों में बिक्री के लिए आएगी और दिल्लीवासी इसका स्वाद चख सकेंगे.
मुजफ्फरपुर की शाही लीची देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय है और इसे लीची की खेती के लिए एक प्रसिद्ध क्षेत्र के रूप में जाना जाता है. इसे जर्दालू आम, कतरनी चावल और मगही पान के बाद बिहार का चौथा उत्पाद माना जाता है जिसके पास जीआई टैग है. मुजफ्फरपुर में 12,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में लीची की खेती की जाती है, जो बिहार में लीची उत्पादन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. लीची की खेती मुजफ्फरपुर की संस्कृति और अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है, और लीची की फसल से किसानों को रोजगार भी मिलता है.
मुजफ्फरपुर में उगाई जाने वाली लीची की क्वालिटी अन्य क्षेत्रों में उगाई जाने वाली लीची से बेहतर मानी जाती है. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर में लीची की खेती और क्वालिटी पर शोध किया जाता है, जो लीची के बेहतर उत्पादन और क्वालिटी को बढ़ावा देने में मदद करता है. यहां की शाही लीची का निर्यात विदेशों तक होता है. एक लीची का वजन आमतौर पर लगभग 20 ग्राम होता है. लीची के फल का आकार गोल से लेकर अंडाकार और दिल के आकार का होता है, जो 5 सेमी तक लंबे और 4 सेमी चौड़े (2.0 इंच xर1.6 इंच) होते हैं. वैसे तो पूरे मुजफ्फरपुर को लीचियों के उत्पादन के लिए जाना जाता है, मगर मुशहरी, बांद्रा, कांटी जैसी जगहों पर लीची अधिक होती है. लीची के लिए मुजफ्फरपुर में राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र भी है.
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