सोयाबीन एक प्रमुख तिलहन और दलहन फसल है, लेकिन इसका आटा भी बनता है. सोया आटा एक अच्छी गुणवत्ता के प्रोटीन का मुख्य स्रोत है. इसमें कई अमीनो अम्ल पाए जाते हैं. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि सोयाबीन को कच्चे स्वरूप में सेवन नहीं किया जा सकता. इसमें ट्रिप्सिन इन्हिबीटर-विषाक्त पदार्थ पाए जाते हैं. उनसे छुटकारा पाने के लिए उसकी प्रोसेसिंग करनी होगी. यह काम करना बेहद जरूरी है. इसके लिए सोयाबीन को कम से कम पानी में उबालकर फिर उसमें मौजूद पानी निकालकर सुखाएं. सोयाबीन को सही तरीके से प्रोसेस करने के बाद अच्छी गुणवत्ता का आटा तैयार किया जा सकता है. इसे विभिन्न तरीकों से प्रोसेस करके अलग-अलग प्रकार का सोया आटा तैयार किया जाता है.
सोया आटा एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है, जो सूजन को कम करने और हृदय रोग, कैंसर और अल्जाइमर रोग जैसी बीमारियों से बचाने में मदद कर सकता है. सोया आटा एक बहुमुखी सामग्री है जिसका उपयोग ब्रेड और पेस्ट्री से लेकर पैनकेक और विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में किया जा सकता है.
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सबसे पहले सायोबीन की सफाई करें.
इसके बाद 4-6 घंटा भिगोना होगा.
इसके बाद इसका छिलका निकालना होगा.
फिर तिगुने पानी में 30 मिनट उबालना होगा.
इसके बाद दाल को सुखाना होगा.
तब जाकर इसकी पिसाई होगी और आटा तैयार होगा.
पूर्ण वसायुक्त सोया आटे को धातु के बर्तनों में 6 महीने तक सुरक्षित रूप से तथा उच्च घनत्व पॉलीथीन (400 गेज) बैग में 1-2 महीने तक सूखी जगह में रखा जा सकता है. इस आटे में तेल काफी अधिक होता है. इसलिए इसमें प्रकाश ऑक्सीकरण होकर विकृत गंध पैदा हो सकती है और उसकी किस्म खराब हो सकती है. इस समस्या को दूर करने के लिए इसके पैकेट को लाइट से दूर रखा जाना चाहिए. इससे प्रकाश ऑक्सीकृत एवं विकृत गंध से बचा जा सके.
सोया आटे को गेहूं के आटे के साथ मिलाकर चपाती, बेसन के साथ मिलाकर पकौड़ा, सेव, ढोकला बनाया जा सकता है. इसके साथ ही अन्य पदार्थों के साथ मिलाकर हलवा, मैसूरपाक आदि बनाए जा सकते हैं. सोया आटे का उपयोग बेकरी में भी किया जाता है. अध्ययनों से पता चला है कि सोया आटे को गेहूं के आटे के साथ 1:9 अनुपात में मिलाया जाए तो पोषण की दृष्टि से रोटी की गुणवत्ता को सुधारा जा सकता है. इससे लगभग 11-12 प्रतिशत प्रोटीन की वृद्धि होती है. ये रोटियां गेहूं की रोटियों की तुलना में अधिक समय तक यानी 2-3 दिनों तक ताजी और गरम रहती हैं.
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