किसान अपने खेतों में ज्यादा पैदावार लेने के लिए बेहिसाब यूरिया सहित डी.ए. पी का भी इस्तेमाल कर रहा है जिसका असर मिट्टी के स्वास्थ्य पर अब सीधे दिखाई देने लगा है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग में हुए शोध में यह सामने आया की मिट्टी की उर्वरा शक्ति नाइट्रोजन के अधिक इस्तेमाल से समाप्त हो रही है और खेत धीरे-धीरे बंजर होते जा रहे हैं. वनस्पति विज्ञानं के प्रोफेसर आर. सागर ने बताया की मिट्टी में दो तरह के जीवाणु होते हैं जो उसके स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार होते हैं. अधिकाधिक नाइट्रोजन के इस्तेमाल से मिट्टी की सांस लेने की गति भी प्रभावित होने लगती है. इसलिए किसानों को अपने खेतों में यूरिया का इस्तेमाल ज्यादा मात्रा में नहीं करना चाहिए.
पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव और पेड़ पौधे हीन सांस नहीं लेते हैं बल्कि हमारी खेतों की मिट्टी भी सांस लेती है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग के एक शोध के अनुसार एक हेक्टेयर खेत में अगर किसान के द्वारा 90 किलोग्राम से अधिक नाइट्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है तो मिट्टी की श्वसन गति कम हो जाती है. मिट्टी के सामान्य श्वसन गति 169 मिलीग्राम कार्बन डाइऑक्साइड प्रति वर्ग मीटर- प्रति घंटे होती है. सामान्य श्वसन गति रहने पर मिट्टी उपजाऊ बनी रहती है लेकिन इससे कम होने पर मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म होने लगती है.
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काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग के प्रोफ़ेसर आर. सागर के मुताबिक मिट्टी में दो छोटे जीवाणु होते हैं. माइक्रोबियल नाइट्रोजन व माइक्रोबियल कार्बन नाम के जीवाणु मिट्टी की उर्वरा शक्ति के लिए जिम्मेदार होते हैं. इनके घटने से मिट्टी की उर्वरा प्रभावित होने लगती है. 2013 से 2016 तक हुए शोध के परिणाम स्वरूप ये तथ्य सामने आए कि अगर नाइट्रोजन का इस्तेमाल खेतों में बढ़ने की वजह से मिट्टी की उर्वरा शक्ति प्रभावित होने लगती है. शोध के दौरान पांच खेतों में हर माह विभिन्न मात्रा में यूरिया डाला गया जिसके परिणाम स्वरुप यह पाया गया कि अधिक यूरिया का इस्तेमाल जिन क्षेत्रों में हुआ उसकी श्वसन गति कम हो गई. दिसंबर 2022 में यह शोध जापान के जनरल इकोलॉजिकल रिसर्च में प्रकाशित हो चुका है.
यूरिया मिट्टी की श्वसन गति
(किग्रा/हेक्टेयर/प्रतिवर्ष)
30 186
60 189
90 197
120 177
150 156
मिट्टी में यूरिया के अलावा कई ऐसे स्रोत है जिनसे नाइट्रोजन की प्राप्ति होती है. खेत में मटर , अरहर, चना और ढैंचा जैसे पौधे स्वयं नाइट्रोजन पैदा करते हैं. नाइट्रोजन ऑक्सीजन हवा में प्रक्रिया करके नाइट्रेट मनाते हैं जो बारिश की बूंदों के साथ जमीन पर आता है. मुर्गी फार्म के मल- मूत्र से भी नाइट्रोजन पैदा होती है.