
दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग यानी प्रदूषण भले ही अभी भी चिंता का कारण बना हुआ है, लेकिन पंजाब के किसानों और प्रशासन के लिए यह सीजन उम्मीद भरी खबर लेकर आया है. इस बार राज्य में पराली जलाने के मामलों में 54% की बड़ी कमी दर्ज की गई है. किसानों पर लगने वाले आरोपों के बीच यह आंकड़ा साबित करता है कि पंजाब में पराली प्रबंधन को लेकर सकारात्मक बदलाव हो रहे हैं.
इस खरीफ सीजन में पंजाब में कुल 5,114 पराली जलाने के मामले दर्ज हुए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 54% कम हैं. पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PPCB) की रिपोर्ट बताती है कि बीते दो सालों में ऐसी घटनाओं में 70% तक की कमी आई है. 2022 में 49,922 मामले दर्ज हुए थे, 2023 में ये संख्या 36,663 पर पहुंची, जबकि इस बार वह बहुत कम होकर 5,114 पर आ गई. जिलों की बात करें तो मुख्यमंत्री भगवंत मान के जिले संगरूर ने सबसे बड़ा सुधार दिखाया है. 2022 में यहां 5,916 मामले थे, जो इस साल घटकर सिर्फ 695 रह गए. तारन में भी लगभग इसी स्तर पर 696 मामले दर्ज हुए.
इस सकारात्मक बदलाव के पीछे सरकार की ओर से की गई बड़ी योजना और निगरानी काम कर रही. पंजाब सरकार ने 11,624 गांवों में करीब 8,000 अधिकारियों और कर्मचारियों की टीम तैनात की. इनमें 5,000 नोडल अधिकारी, 1,500 क्लस्टर कोऑर्डिनेटर और 1,200 फील्ड अधिकारी शामिल थे. ये सभी एक विशेष Action Taken Report (ATR) ऐप के जरिए हर घटना की जानकारी अपलोड करते रहे. केंद्रीय स्तर पर भी निगरानी बढ़ाई गई. आयोग (CAQM) के 31 वैज्ञानिकों ने जमीन पर स्थिति की मॉनिटरिंग की, जबकि CPCB ने 22 वैज्ञानिकों की टीम तैनात की. इसके अलावा, इस बार किसानों को बड़ी संख्या में पराली प्रबंधन मशीनें उपलब्ध कराई गईं. कृषि विभाग ने 21,958 मशीनें मंजूर कीं, जिनमें से 14,587 किसानों को मिल चुकी हैं.
पराली जलाने पर लगने वाले जुर्माने और FIR की संख्या में भी इस बार उल्लेखनीय कमी आई है. पिछले वर्ष ₹2.14 करोड़ के जुर्माने लगाए गए थे, जबकि इस बार इसकी राशि घटकर ₹1.25 करोड़ रह गई. अब तक इनमें से ₹65 लाख जुर्माना वसूला जा चुका है. इसके अलावा, पुलिस ने BNS की धारा 223 के तहत 1,963 FIR दर्ज कीं. राजस्व विभाग ने 2,176 किसानों की लाल प्रविष्टियाँ जमीन रिकॉर्ड में दर्ज कीं, जिसके चलते उन्हें लोन, जमीन बिक्री या गिरवी रखने और हथियार लाइसेंस जैसी सुविधाओं से वंचित होना पड़ता है.
किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने द ट्रिब्यून को कहा है कि किसानों को बेवजह दिल्ली के प्रदूषण के लिए दोषी ठहराया जाता रहा है. उनके मुताबिक दिसंबर तक पराली जलाने की घटनाएं बंद हो जाती हैं, गेहूं की फसल उग जाती है, फिर भी दिल्ली का AQI 300-400 रहता है. राजेवाल का मानना है कि अगर सरकार किसानों को पराली प्रबंधन के लिए ₹300 प्रति क्विंटल सीधे खाते में दे दे, तो किसान बिना किसी दबाव के पराली का प्रबंधन करने लगेंगे. महंगे मशीनें छोटे किसानों के लिए बोझ बनती हैं, इसलिए आर्थिक प्रोत्साहन बेहतर विकल्प है.
ISRO की एक नई स्टडी से पता चलता है कि किसान पराली जलाने का समय बदल रहे हैं, जो शाम 5 बजे के आस-पास शुरू हो रहा है. माना जा रहा है कि यह सैटेलाइट मॉनिटरिंग से बचने की कोशिश है. हालांकि, PGIMER के एक्सपर्ट प्रोफेसर रवींद्र खैवाल का कहना है कि डेटा में 20% की गलती हो सकती है और यह दावा बढ़ा-चढ़ाकर किया गया है. वह कहते हैं कि सुपर SMS जैसी मशीनों ने ज़मीन में बची हुई पराली को काफी हद तक कंट्रोल कर लिया है, और कई इलाकों में कम तेज़ी वाली आग देखी जा रही है.
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