चालू वित्त वर्ष 2025-26 की पहली छमाही में भारत का दाल आयात मूल्य पिछले साल के मुकाबले आधे से भी कम रह गया है. वैश्विक बाजार में दाम गिरने और आयात मात्रा घटने से यह कमी दर्ज हुई है. वाणिज्य मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-सितंबर 2025 के दौरान दालों का आयात मूल्य 1.03 अरब डॉलर रहा, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह 2.18 अरब डॉलर था. रुपये के लिहाज से देखें तो आयात में 51 प्रतिशत की गिरावट आई है और यह 8,908 करोड़ रुपये का रहा, जबकि पिछले साल समान अवधि में यह 18,282 करोड़ रुपये था.
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने रिकॉर्ड 5.47 अरब डॉलर मूल्य की दालें आयात की थीं, जो 73 लाख टन के सर्वाधिक स्तर पर थीं. लेकिन, इस साल की शुरुआत से ही आयात रफ्तार सुस्त रही है. आईग्रेन इंडिया के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-जुलाई 2025 के दौरान दालों का कुल आयात 9.97 लाख टन रहा, जो पिछले साल की इसी अवधि के 18.02 लाख टन से लगभग आधा है.
सिर्फ तूर (अरहर) की आवक में मामूली बढ़ोतरी दर्ज की गई, जबकि पीली मटर (येलो पी), मसूर, उड़द और चना की खरीद में भारी गिरावट आई है. पीली मटर दाल का आयात घटकर 2.73 लाख टन रह गया, जो पिछले साल 9.32 लाख टन था. वहीं तूर का आयात थोड़ा बढ़कर 2.91 लाख टन हो गया जो पिछले साल 2.75 लाख टन था.
सरकार ने तूर, उड़द और पीली मटर पर आयात शुल्क 31 मार्च 2026 तक शून्य रखा है, जबकि चना और मसूर पर 10 फीसदी शुल्क लागू है. सस्ते और अधिक आयात से घरेलू बाजार में दाम नीचे आ गए हैं, जिस पर व्यापार जगत लंबे समय से पीली मटर के आयात पर अंकुश लगाने की मांग कर रहा है.
इस बीच, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) ने रबी 2026-27 के लिए अपनी नीति रिपोर्ट में पीली मटर के आयात पर पूर्ण प्रतिबंध और चना और मसूर पर ऊंचा शुल्क लगाने की सिफारिश की है.
सरकार ने हाल ही में ‘दालहन आत्मनिर्भरता मिशन’ की शुरुआत की है, जिसके तहत 11,440 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान किया गया है. इस मिशन का लक्ष्य 2030-31 तक दाल उत्पादन को 350 लाख टन तक ले जाना और रकबा 310 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाना है. साथ ही, तूर, उड़द और मसूर जैसी दालों की 100 प्रतिशत सरकारी खरीद अगले चार वर्षों तक न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है.
वहीं, खरीफ 2025 में दालों की खेती का रकबा मामूली रूप से बढ़कर 120.41 लाख हेक्टेयर रहा, जो पिछले साल 119.04 लाख हेक्टेयर था. हालांकि, रकबा बढ़ने के बावजूद उत्पादन में कमी की आशंका है, क्योंकि अत्यधिक और असमय बारिश ने कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में फसल को नुकसान पहुंचाया है.