2 Oct special : अमेरिका की धमकी का दिया था करारा जवाब, जाने देश के लाल ने कैसे बदल दी थी खेती औऱ किसानों की तस्वीर ?

2 Oct special : अमेरिका की धमकी का दिया था करारा जवाब, जाने देश के लाल ने कैसे बदल दी थी खेती औऱ किसानों की तस्वीर ?

लाल बहादुर शास्त्री जब प्रधानमंत्री बने तो उनके सामने घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय सीमा को सुरक्षित करने की दोहरी चुनौती थी. आजादी के बाद भारत को और जनता को भुखमरी से निकालने के लिए फसल उत्पादन औऱ पशुपालन में बदलाव करने का काम शास्त्री जी ने किया. उन्हीं के कार्यकाल में फसल उत्पादन के लिए  हरित क्रांति और दूध के लिए श्वेत क्रांति की नींव रखी गई थी.

भारत के दूसरे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्रीभारत के दूसरे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री
जेपी स‍िंह
  • NEW DELHI,
  • Oct 02, 2023,
  • Updated Oct 02, 2023, 11:26 AM IST

हर साल 2 अक्टूबर को हम दो महान व्यक्तियों, महात्मा गांधी और देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती मनाते हैं जवाहरलाल नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे. शास्त्री जी को उनकी सादगी , ईमानदारी और देशभक्ति के लिए हमेशा याद किया जाता है .उनकी ईमानदारी और स्वाभिमान के कारण हर भारतीय उनके प्रति विशेष सम्मान रखता है. साल 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद, देश आर्थिक रूप से कमजोर हो गया था.जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद, शास्त्री जी प्रधानमंत्री बने थे.उन दिनों देश में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो गया था और खाद्य पदार्थों का आयात बढ़ गया था.साल 1965 में  जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो उनके सामने घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय सीमा को सुरक्षित करने की दोहरी चुनौती थी.आजादी के बाद भारत के लोगों को भूखमरी से निकालने के लिए किसान की आर्थिक स्थिति को सुधारने, फसल उत्पादन औऱ पशुपालन में बदलाव करने का काम शास्त्री जी ने किया उन्हीं के कार्यकाल में फसल उत्पादन के लिए  हरित क्रांति और दूध के लिए  श्वेत क्रांति की नींव रखी गई थी,

देश के लाल ने चटाई थी पाकिस्तान को धूल

साल 1964 में जब लाल बहादुर शास्त्री ने प्रधानमंत्री के रूप में देश की कमान संभाली, तब भारत गेहूं संकट और अकाल की चुनौती का सामना कर रहा था. इसी बीच 5 अगस्त 1965 में, 30,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने कश्मीर में घुसकर लड़ाई शुरू कर दी थी. इसके दो दिन बाद, शास्त्री जी ने पंजाब से पाकिस्तान पर हमले करने का आदेश दिया. इससे पहले ही गुजरात में पाकिस्तानी सेना की हरकतों से भारतीय सेना युद्ध के लिए तैयार हो चुकी थी. भारतीय सेना ने पंजाब से पाकिस्तान पर तीनों दिशाओं से हमला किया था. 6 सितंबर 1965 को सुबह 4 बजे, भारतीय सेना की XI कोर ने पाकिस्तान के कई इलाकों पर कब्जा कर लिया. सेना ने पहली बार एलओसी पार कर लाहौर और सियालकोट पर हमला किया. इसके साथ ही, भारत ने आधिकारिक तौर पर युद्ध शुरू किया,सितंबर 1965 में लाहौर पर लगभग भारत का कब्ज़ा हो गया था.पाकिस्तान के हाथ-पांव फूलने लगे इसके बाद वह अमेरिका के पास बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने के लिए गुहार लगाने लगा.

ये भी पढ़ें- Mahatma Gandhi Quotes: 'अगर मेरी चले तो गर्वनर भी किसान हो', जानें अन्नदाता के बारे में और क्या-क्या कहते थे महात्मा गांधी

अमेरिका ने दी धमकी, शास्त्री ने देश को दिया नारा

साल 1965 में, जब लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री थे, तो भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने भारत से गेहूं आपूर्ति करने पर रोक लगाने की धमकी दी थी. अमेरिका ने कहा कि अगर भारत युद्ध को विराम नहीं देता, तो वह अमेरिकी गेहूं की आपूर्ति बंद कर देंगे. लाल बहादुर शास्त्री ने उनके इस बयान का जवाब देते  हुए कहा कि गेहूं बंद करना है तो बंद कर दें मैं इसकी परवाह नहीं करता और उन्होंने खुद अमेरिका से गेहूं की आपूर्ति बंद कर दी. उस समय अपने देश के लोग अमेरिका के गेहूं पी-एल 480 स्कीम के तहत लाल गेहूं के ऊपर खाने के लिए आश्रित थे. अक्टूबर 1965 में दशहरे के दिन मिट्रटी के लाल के नाम से जाने जाने वाले शास्त्री जी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में अनाज उत्पादन बढ़ाने और भारतीय सेना औऱ किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए पहली बार जय जवान जय किसान का नारा दिया था. साथ ही भारतीय जनता से सप्ताह में एक व्रत रखने की अपील भी की. वहीं इसका निश्चित समाधान ढूंढने के लिए हरित क्रांति जैसी योजना पर काम करना शुरू किया.किसानों में जोश भरने के लिए खुद खेत में हल चलाया.

किसानों में जोश भर गया, बढ़ गया उत्पादन 

प्लांट ब्रीड्रिंग के कृषि वैज्ञानिक औऱ उत्तराखंड में आत्मा के निदेशक रह चुके उस दौर में कृषि वैज्ञानिक के रूप कार्य कर चुके डॉ आर. पी. सिहं ने  किसान तक को बताया कि लाल बहादुर शास्री का प्रयास था  कि  साल 1964  देश मे जहां गेहूं का उत्पादन लगभग 120 लाख टन था लेकिन साल 1964 से 1968 के बीच गेहूं का सालाना उत्पादन लगभग 100 लाख टन से बढ़कर लगभग 170 लाख टन हो गया. देश में अनाज संकट को कम करने के लिए एक तरफ प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 'जय जवान, जय किसान' का नारा दिया था जिससे  किसान में जोश भर गया, तो दूसरी तरफ देश में अनाज संकट को कम करने के लिए हरित क्रांति जैसी बड़ी योजना पर काम किया जा रहा था.  उस समय भारत अमेरिकी शीतकालीन गेहूं के बीजों का उपयोग कर रहा था और ये बीज हमारी जलवायु में अच्छे परिणाम नहीं देते थे .भारतीय कृषि वैज्ञानिक डॉ एम.एस. स्वामीनाथन ने कृषि वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग से संपर्क किया,जो उस समय गेहूं के बीज पर काम कर रहे थे .और उनसे भारत के लिए गेहूं के बीज उपलब्ध कराने का अनुरोध किया.1963 में मेक्सिको के कृषि वैज्ञानिकों की एक टीम ने भारत का दौरा किया.

ये भी पढ़ेंः Rajasthan: अक्टूबर में IGNP को मिलेगा 10500 क्यूसेक पानी, किसानों को क्या होगा फायदा?

हरित क्रांति की हुई शुरुआत

ड़ॉ आर, पी सिंह ने बताया कि उत्तर भारत में परीक्षणों के दौरान यह पाया गया कि ये बीज भारतीय जलवायु में पहले से ही बोए जा रहे गेहूं की तुलना में दो से ढाई गुना अधिक उत्पादन देने लगे हैं. ऐसे में राजनीतिक नेतृत्व को बीजों के आयात पर निर्णय लेना था और लाल बहादुर शास्त्री ने मेक्सिको से गेहूं के बीज की बौनी नई किस्मों को आयात करने का बड़ा निर्णय लिया और 1965 में हरित क्रांति को बढ़ावा दिया गया जिससे हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में खाद्यान्न उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई.शास्त्री जी के एक निर्णय से 4 सालो में देश में गेहूं का उत्पादन 50 लाख टन बढ़ गया. डॉ आर.पी. सिहं ने बताया कि उस समय श्वेत क्रांत्रि के जनक पीजी कुरियन औऱ हरित क्रांति अगुआ रहे डॉ एम.एस. स्वामीनाथन जैसे लोगों के कार्यो को प्रोत्साहन मिलना शुरू हुआ और कृषि पर शोध कार्य तेजी से बढ़ने लगा.

दूध के लिए श्वेत क्रांति की रखी नींव

साल 1964में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अमूल की सफलता को अपनी आंखों से देखने के लिए गुजरात के आनंद का दौरा किया.इसके बाद सारी जानकारी ली पीजी कुरियन से देश भर में आंदोलन को फैलाने में मदद करने के लिए आनंद में एक राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड बनाने का आग्रह भी किया,उन्होंने कुरियन को हरसंभव मदद का आश्वासन भी दिया. देश में बड़े पैमाने पर दूध उत्पादन के लिए 1970 में ऑपरेशन फ्लड शुरू किया गया.

ये भी पढ़ेंः Jaago Hua Savera: मछुआरों के संघर्ष भरे जीवन की कहानी, भावुक कर देगी ये पाकिस्तानी फिल्म

वह किसानों के दर्द से वाकिफ थे

लाल बहादुर शास्त्री जिन हालातों से गुजरे थे उन्हें किसानों के दर्द का पता था इसलिए किसानों की उपज का उचित मूल्य मिले उसके लिए 1964 में शास्त्री जी ने अपने सचिव एलके झा के नेतृत्व में खाद्य एवं कृषि मंत्रालय की खाद्यान्न मूल्य समिति का गठन किया. कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि शास्त्री जी का मानना ​​था कि किसानों को उनकी उपज का इतना दाम मिलना चाहिए कि उन्हें नुकसान न हो इस समिति ने 24 दिसम्बर 1964 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी.

 

 

MORE NEWS

Read more!