भारत की दलहनी फसलों में कुल्थी एक प्रमुख फसल है. आयुर्वेद में इस दाल को एक औषधीय दाल बताया गया है. आपको बता दें कि दक्षिण भारत में ये दाल एक महत्वपूर्ण फसल है. लेकिन अधिकांश लोगों के लिए कुल्थी बिल्कुल नई चीज हो सकती है. बता दें कि कुल्थी को कुछ जगहों पर कुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. कुल्थी को कई तरह से उपयोग में लिया जा सकता है. इसके बीज से दाल बनाई जाती है और पशुओं के चारे के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है. वहीं, कुल्थी को स्वास्थ्य के लिए कई मर्ज की दवा भी माना जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं कैसे करें इसकी खेती और क्या हैं इसके फायदे.
कुल्थी दक्षिण भारत की एक प्रमुख दलहनी फसल है. वहीं, कुल्थी की खेती कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु के अलावा छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर की जाती है. किसानों को इस दाल की खेती करके अच्छा खासा मुनाफा भी मिलता है.
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कुल्थी के कई औषधीय गुण होते हैं, कुल्थी में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फाइबर उचित मात्रा में पाए जाते हैं, जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं. इसको अपनी डाइट में शामिल करने से डायबिटीज कंट्रोल रहती है. साथ ही किडनी से पथरी जैसी समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है. इसके अलावा बढ़ते वजन की समस्या से परेशान लोगों के लिए भी ये काफी फायदेमंद है. इसके सेवन से आप वजन को कम कर सकते हैं. कुल्थी के उपयोग के कई तरीके हैं. इसे आप दाल बनाने के साथ ही भिगोकर अंकुरित दानों के रूप में खा सकते हैं. इसके अलावा कुल्थी का जूस भी पिया जाता है, जो जोड़ों के दर्द जैसी समस्या से छुटकारा दिलाने में मदद करता है.
कुल्थी की खेती के लिए हल्की गर्म और शुष्क जलवायु बेस्ट होती है. वहीं इसके पौधे का विकास 20-30 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छा होता है. इसकी खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है. बता दें कि ये काफी हद तक अरहर के पौधों की तरह होती है. लेकिन, इसकी लंबाई अरहर से कम होती है. कुल्थी की बुवाई जुलाई के आखिर से लेकर अगस्त तक की जा सकती है.
लेकिन अगर चारे के लिए बुवाई कर रहे हैं तो इसकी बुवाई खरीफ सीजन में कर सकते हैं. वहीं किसान इसकी बुवाई करते समय ये ध्यान रखें कि कतार से कतार की दूरी 40-45 सेंटीमीटर हो. जबकि पौधों के बीच 5 सेंटीमीटर की दूरी रखें. बुवाई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज की मात्रा के हिसाब से उपचारित करें.