देश में ऑर्गेनिक प्रोडक्ट का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. लेकिन इसका एक विपरीत पहलू ये है कि एपीडा किसानों को उनके ऑर्गेनिक प्रोडक्ट के लिए सस्ते में सर्टिफिकेट नहीं दिला पा रहा है. APEDA यानी कि एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट्स डेवलपमेंट अथॉरिटी एजेंसी ही भारत में इस तरह के मामलों को देखती है और निर्यात का जिम्मा संभालती है. एपीडा को लेकर शिकायत है कि यह किसानों को सस्ते में ऑर्गेनिक प्रोडक्ट का सर्टिफिकेट दिलाने में नाकाम है. दरअसल, ऑर्गेनिक फूड प्रोडक्ट के निर्यात के लिए किसान को किसी एजेंसी या कंपनी से सर्टिफिकेट लेना होता है जिसमें एपीडा मदद करता है. अभी किसानों को यह सर्टिफिकेट महंगे में मिल रहा है जिससे वे परेशान हैं.
ऑर्गेनिक सर्टिफिकेट के लिए एजेंसियां या कंपनियां किसानों से एक लाख रुपये की मांग कर ही है जो कि महंगा सौदा है. किसान चाहते हैं कि एपीडा इसमें हस्तक्षेप करे, लेकिन एपीडा के पास फंड की कमी के कारण किसानों को सब्सिडी के रूप में ऐसी सहायता नहीं मिल पा रही है. एपीडा का वार्षिक बजटीय आवंटन 2022-23 से 180 करोड़ तय किया गया है - जो 2021-22 में आवंटित 85 करोड़ से कम है. फंड की कमी के कारण एपीडा को किसानों को कम लागत पर सर्टिफिकेट दिलाने में कठिनाई हो रही है. किसानों को अगर यह सर्टिफिकेट मिल जाए तो उन्हें निर्यात बाजार से बेहतर मूल्य पाने में मदद मिलेगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 अगस्त को जब दिल्ली के पूसा संस्थान में कुछ चुनिंदा किसानों से मुलाकात की, तो दिल्ली के रविंदर कुमार ने अनुरोध किया कि किसानों के समूह को जारी किए जाने वाले सर्टिफिकेट के बजाय इसे व्यक्तिगत किसानों को जारी किया जाना चाहिए. आधिकारिक सूत्रों ने 'बिजनेसलाइन' से कहा कि राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) के तहत, लागत को कम करने के लिए क्लस्टर के जरिये फसलों का सर्टिफिकेशन किया जाता है क्योंकि व्यक्तिगत किसानों को इसे जारी करना महंगा होता है.
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जैविक प्रोडक्ट को बढ़ावा देने के काम से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, "पार्टिसिपेटरी गारंटी सिस्टम इंडिया (पीजीएस-इंडिया) के तहत लागत बहुत कम है, लेकिन इसके तहत सर्टिफाइड प्रोडक्ट को भारत के बाहर मान्यता नहीं मिलती. किसानों को निर्यात के लिए एनपीओपी के तहत सर्टिफिकेशन का पालन करना पड़ता है." "एनपीओपी के तहत सर्टिफिकेशन करने के लिए एपीडा की ओर से 37 एजेंसियों/कंपनियों (जिनमें 3 ऐसी हैं जिनके परमिट निलंबित हैं) को मंजूरी दी गई है, जिनमें से 14 राज्य सरकारें चलाती हैं."
एक विशेषज्ञ ने कहा, "राज्य सरकार के स्वामित्व वाली एजेंसियों में सर्टिफिकेशन की लागत निजी कंपनियों की तुलना में दसवां हिस्सा है या उससे भी कम हो सकती है, फिर भी सभी ऑर्गेनिक एक्सपोर्टर निजी संस्थाओं के मुकाबले उन्हें प्राथमिकता नहीं देते हैं." यह मुर्गी-अंडे की पहेली की तरह है, जहां एपीडा को किसानों को व्यापारियों/निर्यातकों के चंगुल से मुक्त करने के लिए पहला कदम उठाने की जरूरत है, ताकि उन्हें किसी भी निर्यातक को "प्रमाणित जैविक उत्पाद" बेचने की स्वतंत्रता दी जा सके.
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