भारत विविधताओं से भरा देश है. भारत में अलग-अलग चीजें अपनी अलग-अलग पहचान के लिए जानी जाती हैं. कई चीजें अपने अनोखे नाम के लिए तो कई अपनी खास पहचान के तौर पर जानी जाती हैं. इसी कड़ी में आज हम बात करेंगे एक ऐसी फसल के वैरायटी की जिसका नाम PA-6 है. दरअसल, ये वैरायटी अरहर की एक खास किस्म है, जिसकी खेती खरीफ सीजन में की जाती है. वहीं, बात करें अरहर की तो दलहनी फसलों में अरहर की मांग सबसे अधिक होती है.
इसे तुअर दाल के नाम से भी जाना जाता है. वहीं, इसमें प्रोटीन, खनिज तत्व, कार्बोहाइड्रेट, आयरन और कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं. ऐसे में अब ये जान लेते हैं कि बंपर पैदावार के लिए इसकी उन्नत किस्में कौन सी हैं? और किस विधि से करनी चाहिए खेती.
पूसा अगेती-6 (PA-6)- यह अरहर की एक अगेती किस्म है जिसकी खेती खरीफ सीजन की शुरुआत में ही की जाती है. इस किस्म में फसल की लंबाई छोटी और दाना मोटा होता है. यह किस्म 150 से 160 दिनों में पक जाती है और कटाई के लिए तैयार हो जाती है. वहीं, इसकी औसत उपज 1 टन प्रति हेक्टेयर तक है.
पूसा 992- भूरे रंग का, मोटा, गोल और चमकदार दाने वाली इस किस्म को वर्ष 2005 में विकसित किया गया था. ये किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले कम दिनों में तैयार हो जाती है. इसे पकने में लगभग 140 से 145 दिन लगता है. इस किस्म से प्रति एकड़ 7 क्विंटल तक उपज ली जा सकती है. वहीं इस किस्म की खेती सबसे ज्यादा पंजाब , हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान में की जाती है.
पूसा 16- पूसा 16 जल्दी तैयार होने वाली बेस्ट किस्म है. इसकी अवधि 120 दिन की होती हैं. इस फसल में छोटे आकार का पौधा 95 सेमी से 120 सेमी लंबा होता है, इस किस्म की औसत उपज 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है.
आईपीए 203- इस किस्म की खास बात ये है कि इसमें बीमारियां नहीं लगतीं और इस किस्म की बुवाई करके फसल को कई रोगों से बचाया जा सकता है. साथ में अधिक पैदावार भी प्राप्त कर सकते हैं. इसकी औसत उपज 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. इस किस्म की अवधि 150 दिन की होती है.
अमूमन किसान अरहर की खेती छींटा विधि से करते हैं, जिससे कहीं ज्यादा तो कहीं कम बीज पड़ जाते हैं. इससे कहीं घनी तो कहीं खाली फसल तैयार होती है. इससे फसल में कमी आती है क्योंकि घना हो जाने से पौधों को उचित धूप, पानी और खाद नहीं मिल पाती है. इसके लिए किसान को 20 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज लगाने चाहिए. इससे बीज दर भी कम लगती है और फसल का उत्पादन भी अधिक होता है.