रासायनिक उर्वरक यानी कि केमिकल खाद के अंधाधुंध प्रयोग के चलते पैदावार तो जरूर बढ़ी है लेकिन दूसरी तरफ जमीन की सेहत खराब होने लगी है. इस सच्चाई को किसान भी अब मानने लगा है, लेकिन फसल से अधिक मुनाफा कमाने के लिए वह आंख बंद करके रासायनिक खादों का प्रयोग करने को मजबूर है. मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए अब सरकार भी किसानों को जागरूक करने का काम कर रही है. रासायनिक खाद के साथ-साथ गोबर और हरी खाद के इस्तेमाल करने का प्रशिक्षण भी किसानों को दिया जा रहा है. लगातार बढ़ रहे रासायनिक खाद के इस्तेमाल से जमीन में कार्बनिक पदार्थ की कमी हो रही है जिसके चलते अब फसल का उत्पादन भी कम होने लगा है.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार फसल के अच्छे उत्पादन के लिए मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा .5 प्रतिशत या इससे अधिक होनी चाहिए. लेकिन वर्तमान में यह मात्र .2 प्रतिशत तक आ पहुंची है. मिट्टी में कम हो रही कार्बनिक पदार्थ की मात्रा से पानी धारण की क्षमता भी कम हो रही है. इससे पौधों का फैलाव नहीं हो पता है. मिट्टी पहले की अपेक्षा अब ज्यादा कठोर हो रही है. इससे जलवायु परिवर्तन के असर को भी पौधे नहीं सह पाते हैं और बारिश और हवा से खेत में ही फसल गिरने लगी है.
अयोध्या स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष और प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बी.पी शाही का कहना है कि जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए किसानों को लगातार जागरूक किया जा रहा है. किसान मिट्टी का परीक्षण करने के बाद उपचार करके फसल उगा रहे हैं जिससे फसलों की पैदावार बढ़ रही है. जमीन में नाइट्रोजन, सल्फर और मैग्नीशियम फसल का उत्पादन बढ़ाने में सहायक होते हैं. किसानों को हर साल ढैंचे की बुवाई करनी चाहिए जिससे जमीन में नाइट्रोजन की कमी पूरी करने में मदद मिलती है. इसके चलते किसान रासायनिक खाद के साथ-साथ जैविक खाद का भी प्रयोग कर सकते हैं.
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लगातार रासायनिक खाद के प्रयोग के चलते जमीन में पोषक तत्वों की कमी आ जाती है और धीरे-धीरे जमीन की उर्वरा शक्ति कम होने लगती है. इससे फसल का उत्पादन घट जाता है. जमीन की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए गोबर और जैविक खाद का प्रयोग किसानों को करना चाहिए. वही उत्तर प्रदेश में कृषि विभाग की गोष्ठियों के द्वारा किसानों को जागरूक किया जाने लगा है. इसका फायदा ये हुआ है कि अब पहले के मुकाबले खेतों की हालत अच्छी हुई है.
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में खेती में गोमूत्र का प्रयोग खेती में खूब हो रहा है. गोमूत्र के माध्यम से सरकार प्राकृतिक कीटनाशक और उर्वरक भी बनाने का काम कर रही है. गोमूत्र में नाइट्रोजन, गंधक, अमोनिया, कॉपर, यूरिया, यूरिक एसिड, फास्फेट, सोडियम, पोटैशियम, मैगनीज, कार्बोलिक एसिड जैसे तत्व पाए जाते हैं. प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सुशील शुक्ला बताते हैं कि ये सारे तत्व फसलों के बेहतर विकास के लिए काफी जरूरी होते हैं. गोमूत्र को फसलों पर कीटनाशक के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा गोमूत्र में जीवामृत, बीजामृत भी बनाया जा सकता है जिससे जमीन उपजाऊ होती है.
कृषि वैज्ञानिक डॉ बी.पी शाही के मुताबिक मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की कमी होने के कारण फसल कमजोर और पीली पड़ जाती है. फसल का दाना सिकुड़ कर हल्का हो जाता है. जड़ कमजोर होने से पौधे नीचे की ओर झुक जाते हैं. अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने की जरूरत है. मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की अनिवार्यता जरूरी है. किसानों को जागरूक करके मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा .2 से बढ़कर .4 से .6 तक हो गई है.