UP News: योगी सरकार ने बनाया खास प्लान, 17 लाख किसानों को दिए जाएंगे बायो डी-कंपोजर, हर जिले में बनेंगे CNG और CBG प्लांट

UP News: योगी सरकार ने बनाया खास प्लान, 17 लाख किसानों को दिए जाएंगे बायो डी-कंपोजर, हर जिले में बनेंगे CNG और CBG प्लांट

इस तरह का एक प्लांट करीब 160 करोड़ रुपये की लागत से इंडियन ऑयल गोरखपुर के दक्षिणांचल स्थित धुरियापार में लगा रहा है. उम्मीद है कि यह प्लांट मार्च 2023 तक चालू हो जाएगा.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार इस समस्या का स्थाई हल निकालने से लगी है. photo- kisan Takमुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार इस समस्या का स्थाई हल निकालने से लगी है. photo- kisan Tak
नवीन लाल सूरी
  • Lucknow,
  • Aug 24, 2023,
  • Updated Aug 24, 2023, 10:29 AM IST

UP News: कृषि यंत्रीकरण के बढ़ते चलन और श्रमिकों की अनुपलब्धता होने की वजह से अब फसलों की कटाई कंबाइन से ही होती है. खरीफ और रबी की प्रमुख फसल धान और गेंहू की कटाई के बाद अगली फसल की तैयारी के लिए इन फसलों के अवशेष जलाने की प्रथा आम है. इसके कारण खासकर धान की कटाई के बाद मौसम में नमी के कारण यह समस्या कुछ इलाकों में गंभीर हो जाती है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार इस समस्या का स्थाई हल निकालने के लिए शिद्दत से लगी है. इससे संबंधित योजनाएं जब तक अमल में आएं तब तक के लिए भी सरकार की यह मंशा है कि दंड, जागरूकता और अन्य संभव तरीकों से पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की समस्या को कम किया जाए. इसी क्रम में सरकार ने तय किया है कि वह धान की पराली को बायोकपोस्ट में बदलने के लिए 17 लाख किसानों को बायो डी-कंपोजर उपलब्ध कराएगी. इस बीच जागरूकता और अन्य अभियान भी जारी रहेंगे.

प्लांट लगाने वाले को मिलेंगी रियायतें

सरकार ने उत्तर प्रदेश राज्य जैव ऊर्जा नीति 2022 का जो ड्राफ्ट तैयार किया था उसके अनुसार वह कृषि अपशिष्ट आधारित बायो सीएनजी, सीबीजी (कंप्रेस्ड बायो गैस) इकाइयों को कई तरह के प्रोत्साहन देगी. मुख्यमंत्री पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि वह इस तरह की इकाइयां हर जिले में लगाएगी.

शीघ्र ही चालू होगा गोरखपुर का प्लांट

इस तरह का एक प्लांट करीब 160 करोड़ रुपये की लागत से इंडियन ऑयल गोरखपुर के दक्षिणांचल स्थित धुरियापार में लगा रहा है. उम्मीद है कि यह प्लांट मार्च 2023 तक चालू हो जाएगा. इसमें फसल गेंहू-धान की पराली के साथ, धान की भूसी, गन्ने की पत्तियां और गोबर का उपयोग होगा. हर चीज का एक तय रेट होगा. 

इस तरह फसलों के ठूठ के भी दाम मिलेंगे 

प्लांट के अलावा वहां तक कच्चे माल को पहुचाने में मिलेंगे रोजगार प्लांट में मिले रोजगार के अलावा प्लांट की जरूरत के लिए कच्चे माल के एकत्रीकरण, लोडिंग, अनलोडिंग एवं ट्रांसपोर्टेशन के क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर बड़े पैमाने पर रोजगार मिलेगा. सीएनजी एवं सीबीजी के उत्पादन के बाद जो कंपोस्ट खाद उपलब्ध होगी वह किसानों को सस्ते दामों पर उपलब्ध कराई जाएगी.

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पराली जलाने के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूकता के लिए जारी रहेगा अभियान. इस बीच पराली जलाने के दुष्प्रभावों के प्रति किसानों को जागरूक करने के कार्यक्रम भी कृषि विज्ञान केंद्रों, किसान कल्याण केंद्रों के जरिए चलते रहेंगे.

पराली जलाने के क्या हैं दुष्प्रभाव

अगर आप कटाई के बाद धान की पराली जलाने की सोच रहे हैं तो रुकिए और सोचिए. आप सिर्फ खेत नहीं उसके  साथ अपनी किस्मत खाक करने जा रहे हैं. क्योंकि पराली के साथ फसल के लिए सर्वाधिक जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (एनपीके) के साथ अरबों की संख्या में भूमि के मित्र बैक्टीरिया और फफूंद भी जल जाते हैं. भूसे के रूप में पशुओं का हक तो मारा ही जाता है.

पराली में है पोषक तत्वों का खजाना

शोधों से साबित हुआ है कि बचे डंठलों में एनपीके की मात्रा क्रमश: 0.5, 0.6 और 1.5 फीसद होती है. जलाने की बजाए अगर खेत में ही इनकी कंपोस्टिंग कर दी जाय तो मिट्टी को यह खाद उपलब्ध हो जाएगी. इससे अगली फसल में करीब 25 फीसद उर्वरकों की बचत से खेती की लागत में इतनी ही कमी आएगी और लाभ इतना ही बढ़ जाएगा. भूमि के कार्बनिक तत्वों, बैक्टिरिया फफूंद का बचना, पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिग में कमी बोनस होगा.

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गोरखपुर एनवायरमेंटल एक्शन ग्रुप के एक अध्ययन के अनुसार प्रति एकड़ डंठल जलाने पर पोषक तत्वों के अलावा 400 किग्रा उपयोगी कार्बन, प्रतिग्राम मिट्टी में मौजूद 10-40 करोड़ बैक्टीरिया और 1-2 लाख फफूंद जल जाते हैं. उप्र पशुधन विकास परिषद के पूर्व जोनल प्रबंधक डॉ. बीके सिंह के मुताबिक प्रति एकड़ डंठल से करीब 18 क्विंटल भूसा बनता है. सीजन में भूसे का प्रति क्विंटल दाम करीब 400 रुपए माना जाए तो डंठल के रूप में 7200 रुपये का भूसा नष्ट हो जाता है. बाद में यही चारा संकट का कारण बनता है.

किसानों को कई होंगे फायदे

1- फसल अवशेष से ढकी मिट्टी का तापमान नम होने से इसमें सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ जाती है, जो अगली फसल के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व मुहैया कराते हैं.
2- अवशेष से ढकी मिट्टी की नमी संरक्षित रहने से भूमि के जल धारण की क्षमता भी बढ़ती है. इससे सिंचाई में कम पानी लगने से इसकी लागत घटती है. साथ ही दुर्लभ जल भी बचता है.

जानिए विकल्प

डंठल जलाने के बजाय उसे गहरी जोताई कर खेत में पलट कर सिंचाई कर दें. शीघ्र सड़न के लिए सिंचाई के पहले प्रति एकड़ 5 किग्रा यूरिया का छिड़काव कर सकते हैं. इसके लिए कल्चर भी उपलब्ध हैं.

 

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