पौधे की अच्छी वृद्धि के लिए कुछ लोग विभिन्न प्रकार के रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करते हैं, जिससे पौधे की वृद्धि तो होती है लेकिन इसका नकारात्मक प्रभाव मिट्टी के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों से उगाई गई सब्जियों पर भी पड़ता है. साथ ही कई तरह की बीमारियां होने का खतरा भी बढ़ जाता है. पौधे की अच्छी वृद्धि के लिए और मिट्टी को लंबे समय तक उपजाऊ बनाए रखने के लिए हमें घर में बनी जैविक खाद या खाद का उपयोग करना चाहिए. आप घरेलू कचरे से आसानी से जैविक खाद बना सकते हैं. साथ ही कंपोस्ट बनाने की इंदौर विधि काफी मशहूर है. जिस वजह से कई लोगों के द्वारा यह विधि अपनाया जाता है.
खाद पौधे की जड़ों को नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, आयरन, कैल्शियम जैसे अन्य आवश्यक पोषक तत्व सही मात्रा में प्रदान करता है. इसके अलावा, जैविक खाद भी पौधे को तेजी से बढ़ने में मदद करती है और मिट्टी में नमी बनाए रखती है. रसोई के कचरे से लेकर पौधों और जानवरों के अवशेषों तक, आप सब्जियों और अन्य पौधों के लिए अपने घर पर आसानी से प्राकृतिक जैविक खाद बना सकते हैं.
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इस विधि को सबसे पहले 1931 में अलबर्ट हावर्ड और यशवंत बाड ने इन्दौर में विकसित की थी. जिसके बाद इसे इंदौर विधि के नाम से भी जाना जाता है. इस पध्दति में कम से कम 9x5x3 फीट व अधिक से अधिक 20x5x3 फीट आकार के गड्ढे बनाए जाते हैं. इन गड्ढों को 3 से 6 भागों में बांट दिया जाता है. इस प्रकार प्रत्येक हिस्से का आकार 3x5x3 फीट से कम नहीं होना चाहिये. प्रत्येक हिस्से को अलग-अलग भरा जाना चाहिए. साथ ही अंतिम हिस्सा खाद पलटने के लिए खाली छोड़ देना चाहिए.
अल्बर्ट हॉवर्ट ने इंदौर इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट इंडस्ट्री में जैविक उर्वरकों पर विभिन्न शोध करने के बाद 1925 में इंदौर कंपोस्ट बनाया, जिसे दुनिया के कई देशों ने अपनाया. इस पद्धति को 'इंदौर पद्धति' कहा गया. इससे इंदौर का नाम जैविक खेती के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया.
27 जून, 1933 को इंदौर प्लांट इंस्टीट्यूट ने इंदौर नगर पालिका और स्वास्थ्य विभाग की मदद से शहर की 70 हजार आबादी के सभी प्रकार के कचरे और मल-मूत्र को इकट्ठा कर जैविक खाद बनाई. जिसके बाद इस जैविक खाद के उत्पादन से अच्छी आय होने लगी और किसानों को उचित मूल्य पर जैविक खाद उपलब्ध होने लगी.