Mirzapur News: उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में एक किसान परंपरागत खेती से हटकर अब औषधि खेती को बढ़ावा दे रहे है. यहीं वजह है कि इस औषधि खेती से कम लागत में लाखों में मुनाफा कमा रहे है. जी हां हम आपको बताएंगे मिर्जापुर जिले के छानबे विकास खंड के बिरोही गांव के रहने वाले किसान जनार्दन सिंह की सक्सेस होने के पीछे की कहानी. जनार्दन सिंह नेपाली सतावर की खेती करके लाखों रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं. इस खेती में ज्यादा देखभाल की भी जरूरत नहीं है, जहां कम लागत में ज्यादा मुनाफा होता है. इंडिया टूडे के डिजिटल प्लेटफॉर्म किसान तक से बातचीत में किसान जनार्दन सिंह ने बताया कि सतावर की खेती में कोई रिस्क नहीं होता. समय के हिसाब से इसका रेट चढ़ता उतरता है. जहां हमको 60 हजार रुपये की लागत में 7 लाख रुपये तक इनकम सालाना हो जाती है.
मिर्जापुर जिले में स्मार्ट किसान के तौर पर अपनी पहचान बना चुके जनार्दन सिंह ने बताया कि पहले वह परंपरागत खेती करते थे, लेकिन उन्हें मुनाफा नहीं होता था. एक दिन उन्होंने जिला उद्यान अधिकारी मेवा राम से मुलाकात की, जहां पर उद्यान अधिकारी ने उन्हें ओषधि खेती करने को लेकर सलाह दिया, जिसके बाद उन्होंने सतावर की खेती करनी शुरू कर दी. इसके पौधे मुझे उद्यान विभाग द्वारा दिया गया.
किसान जनार्दन सिंह ने आगे बताया कि सतावर की खेती हर किस्म की मिट्टी में की जा सकती है. इसकी सबसे ज्यादा पैदावार लाल या पहाड़ी मिट्टी में होता है. वहीं छुट्टा पशुओं से भी इसको दिक्कत नहीं होती है, क्योंकि इसके पौधे में कांटा लगा होता है.
सिंह ने बताया कि पौधारोपण के बाद इसमें मेहनत भी नहीं करनी पड़ती है. इसके पौधों पर ड्रिप सिस्टम के माध्यम से सिंचाई की जाती है. उन्होंने बताया कि दो साल पहले एक एकड़ में सतावर की खेती शुरू की थी, लगभग 50 से 60 हजार रुपये की लागत आई थी. वहीं, उत्पादन होने के बाद 6 से 7 लाख रुपये की बचत हो गई थी. इस साल वो तीन एकड़ में सतावर की खेती करने जा रहे हैं. जिससे अधिक मुनाफा कमाया जा सकेगा.
जनार्दन सिंह ने बताया कि सतावर 16 महीने में पूरी तरीके से तैयार हो जाती है. इस पौधे की खासियत यह है कि कम दाम मिलने पर खुदाई की जरूरत नहीं है. फसल जितने दिनों तक खेत में रहेगी, पैदावार उतनी ही अधिक होगी. एक पौधे से लगभग 6 से 7 किलो सतावर निकलती है, जो लगभग एक हजार रुपये किलो तक बिक जाती है. उन्होंने बताया कि इसकी मार्केटिंग में भी दिक्कत नहीं होती है.
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राजधानी लखनऊ के सादातगंज में सतावर की बहुत बड़ी मंडी है. जहां के व्यापारी मिर्जापुर आकर मेरे खेत से खरीदा लेते हैं. उन्होंने बताया कि इसका उपयोग च्यवनप्राश सहित अन्य औषिधि को बनवाने में किया जाता है. वहीं बच्चों के दूध पाउडर में भी इसका उपयोग किया जाता है. यह सेहत के लिए काफी लाभदायक होता है.
दरअसल, कृषि क्षेत्र में किसानों को पारंपरिक खेती से आमदनी की समस्या होती है. ऐसे में किसानों के पास आज के समय में प्रयोग करने के लिए काफी विकल्प मौजूद हैं. इन्हीं में से एक औषधीय खेती का भी विकल्प है, जिसका प्रचलन काफी तेजी से बढ़ रहा है. इसके अलावा कोरोना के बाद से देश-दुनिया में हर्बल उत्पादों के मांग में भी काफी बढ़ोत्तरी हुई है. वहीं देश के विभिन्न क्षेत्रों में किसान परंपरागत खेती के अलावा औषधीय और जड़ी-बूटियों की खेती की ओर रुख कर रहे हैं. इन औषधीय फसलों की खास बात यह है कि इनकी खेती में लागत कम और मुनाफा ज्यादा होता है.