भारत में आज भी खेती-किसानी में पारंपरिक विधियां अपनाई जाती हैं. दरअसल कई किसान अपनी खेती में लंबे समय से गोबर, गौमूत्र और नीम से लेकर देसी बीजों से खेती करते आ रहे हैं, लेकिन आधुनिकता के साथ ही किसान खेती-किसानी में नई तकनीकों का इस्तेमाल करने लगे हैं. क्योंकि गोबर-गौमूत्र की जगह अब रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों ने ले ली है, साथ ही देसी बीजों की जगह भी अब हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल होने लगा है. बेशक इनमें से कई बदलाव समय की मांग की वजह से हुए हैं, लेकिन इन बदलावों के बीच किसानों की भी अपनी सोच रही है. कुछ किसान हाइब्रिड बीजों को ज्यादा बेहतर मानते हैं तो पुराने किसान आज भी देसी बीजों के इस्तेमाल को तवज्जो देते हैं.
वहीं विशेषज्ञों की मानें तो देसी बीज ही टिकाऊ खेती की नींव होती है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को देखते हुए हाइब्रिड बीज डिजाइन किए जा रहे हैं. ये पूरी तरह से किसानों के ऊपर निर्भर करता है कि वो किस बीज से खेती करना चाहते हैं. वहीं किसान बीज का अंतर जानकर समय के हिसाब से अपनी खेती कर सकते हैं. आइए जानते हैं देसी और हाइब्रिड बीज में क्या अंतर है.
देसी बीज को वैज्ञानिक भाषा में ओपन पोलिनेटेड बीज भी कहते हैं. ये बीज किसी लैब या फैक्ट्री में नहीं बनते, बल्कि फसल की पैदावार में से ही बचाकर रखे जाते हैं. ये बीज इसलिए भी खास होते हैं, क्योंकि मधुमक्खियां इसमें आसानी से पॉलीनेशन का काम करती हैं, जिससे हर उपज के बाद प्राकृतिक रूप से इनकी गुणवत्ता बढ़ती चली जाती है. इस तरह ये बीज खुद को जलवायु के अनुसार ढाल लेते हैं और इस बीज से बुवाई करने के बाद फसलों की पैदावार के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर होती जाती है.
देसी बीज प्राकृतिक रूप से डिजाइन होते हैं, इन बीजों को पैदावार में से बचाकर अगले सीजन में खेती करने के लिए रखा जाता है. बेशक हाइब्रिड बीजों के मुकाबले ओपन पोलिनेटेड यानी देसी बीजों की पैदावार कम होती है, लेकिन ये बीज गुणवत्ता के मामले में काफी आगे होते हैं.देसी बीजों की बुवाई करने पर पौधों के विकास से लेकर फसलों की पैदावार भी सुरक्षित ढंग से हो जाती है.देसी बीजों में कीट-पतंग और बीमारियों से लड़ने की क्षमता ज्यादा नहीं होती, लेकिन हाइब्रिड फसल के मुकाबले स्वाद बेहतर होता है. हाइब्रिड बीजों के मुकाबले देसी बीज काफी सस्ते और आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं.
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हाइब्रिड बीज यानी संकर बीजों को कृत्रिम यानी उसके बनावटी रूप में डिजाइन किया जाता है. ये बीज दो या दो से अधिक पौधों के क्रॉस पोलिनेशन से बनाए जाता है, जिससे दो वैरायटी के गुण एक ही बीज में आ जाते हैं, वैज्ञानिकों ने इन बीजों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है, जिसमें पहली पीढ़ी के बीज F1, दूसरी पीढ़ी के बीज F2 और तीसरी पीढ़ी के बीजों F3 कहा जाता है. ये बीज देसी बीजों के मुकाबले ज्यादा मजबूत और अधिक पैदावार देते हैं.हाइब्रिड बीजों में दो से अधिक बीजों के गुण आ जाते हैं, जिसके चलते ये महंगे भी होते हैं.
हाइब्रिड बीजों में कीट-रोगों के प्रतिरोधी क्षमता होती है, साथ ही कुछ हाइब्रिड किस्में मौसम की मार का भी सामना आसानी से कर लेती हैं.ये बीज लैब में वैज्ञानिकों द्वारा डिजाइन किया जाता है, जिसके चलते उपज की क्वालिटी और स्वाद कम हो जाता है. वहीं वर्तमान समय में बाजार में अनाज से लेकर फल, सब्जी, मसाले, तिलहन, दलहन और बाकी कृषि उत्पादों में हाइब्रिड किस्में आ गई है, जिससे किसानों को भी काफी फायदा मिल रही है.
बेशक आज के समय में बाजारों में बेहतर गुणों वाली हाइब्रिड किस्में आ गई हैं, लेकिन कृषि उत्पादों की क्वालिटी कायम रखने के लिए किसानों को मिट्टी और जलवायु के आधार पर देसी बीजों का संरक्षण करना जरूरी है.
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