रजनीगंधा के फूलों की मांग बहुत ज्यादा है. इसके पीछे कारण यह है कि इसके फूल अधिक समय तक ताजे रहते हैं और सुगंधित और सुंदर होते हैं. इस फूल का उपयोग ज्यादातर गुलदस्ते, माला, गजरा, सजावट और शादियों में किया जाता है. इनके फूलों से तेल भी निकाला जाता है. इसके पौधे कई औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं. इसके गुणों के कारण इस फूल की मांग और कीमत दोनों ही बहुत ज्यादा है. ऐसे में अगर आप भी इस फूल की खेती करते हैं तो यह फायदे का सौदा हो सकता है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि किसानों को ईद के फूलों की खेती के बारे में सारी जानकारी होनी चाहिए. जैसे अधिक उत्पादन के लिए कौन सा उर्वरक प्रयोग करना चाहिए और कितना.
रजनीगंधा एक बहुउद्देश्यीय फूल है. इसलिए व्यावसायिक दृष्टि से इसका बहुत महत्व है. इसके फूल सफेद और सुगंधित होते हैं जो हर किसी का मन मोह लेते हैं. रजनीगंधा के डंठल वाले फूलों/कटे हुए फूलों का उपयोग मुख्य रूप से गुलदस्ते बनाने और मेज और इनडोर फूलों की सजावट के लिए किया जाता है. इसके अलावा बिना डंठल वाले फूलों का उपयोग माला, गजरा, लारी और वेणी बनाने के अलावा सुगंधित तेल तैयार करने में भी किया जाता है. इसके फूल और फूल से बने सुगंधित तेल की खाड़ी देशों में काफी मांग है. इसलिए यदि इसकी खेती वैज्ञानिक तरीके से की जाए और इसके फूल और तेल का निर्यात किया जाए तो अधिक कमाई की जा सकती है.
खेत का चयन करने के बाद उसे समतल कर लें और एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 बार देशी हल से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें. चूंकि यह कंदीय फसल है, इसलिए कंदों के समुचित विकास के लिए खेत को ठीक से तैयार करना चाहिए. खेत को खरपतवारों से मुक्त रखें और निराई-गुड़ाई करते समय सावधानी बरतें क्योंकि कंद बड़ी संख्या में निकलते हैं.
एक वर्ग मीटर की क्यारी में 3-3.5 कि.ग्रा. सड़ी हुई खाद, 20-30 ग्राम नाइट्रोजन, 15-20 ग्राम फास्फोरस तथा 10-20 ग्राम पोटाश देना लाभकारी रहता है. नाइट्रोजन को बराबर मात्रा में तीन बार देना चाहिए. एक खुराक रोपण से पहले, दूसरी खुराक 60 दिन बाद (जब 3-4 पत्तियाँ हों) और तीसरी खुराक फूल आने के बाद देनी चाहिए. खाद, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बीज बोने से पहले डालनी चाहिए.
रजनीगंधा के पौधे खाद और उर्वरक का समुचित उपयोग कर सकें इसके लिए यह आवश्यक है कि खेत में खरपतवार निकलते ही उन्हें हटा दिया जाए. निराई-गुड़ाई करने से मिट्टी भी ढीली हो जाती है, जिससे हवा का संचार बेहतर होता है और कंद और जड़ों के समुचित विकास में भी मदद मिलती है. हर कंद 1-3 स्पाइक्स पैदा करता है. तीन साल के बाद प्रत्येक पौधे से छोटे-बड़े 25-30 कंद प्राप्त होते हैं. यदि बाली न काटी जाए तो 18-22 दिन तक खेत में फूल खिलते रहते हैं. ऐसा देखा गया है कि लगभग सभी मौसमों में एक ही किस्म के फूल पूरी तरह खिलते हैं. फलस्वरूप सुगंध भी मिलती रहती है जबकि डबल किस्म के फूल पूरी तरह न खिलने के कारण सुगंध बहुत कम या न के बराबर रहती है. व्यापारिक दृष्टि से एक ही किस्म उत्पादन के लिए अधिक उपयुक्त पाई गई है.