प्राकृतिक खेती को हिंदी में जैविक खेती भी कहा जाता है. भारत में उपभोक्ता तेजी से जैविक उत्पादों की मांग कर रहे हैं. बाजार में रासायनिक खेती से प्राप्त उत्पादों का क्रेज कम हो रहा है. कई किसान प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं. आपको बता दें कि प्राकृतिक खेती से उत्पादित उत्पाद की कीमत बाजार में कई गुना ज्यादा होती है. प्राकृतिक खेती को जैविक खेती भी कहा जाता है, आपने बाजार में जैविक उत्पादों के टैग वाले उत्पाद देखे होंगे, इन उत्पादों की कीमत सामान्य कृषि उत्पादों की कीमत से अधिक होती है. इसलिए किसान जैविक उत्पादों की खेती करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं. प्राकृतिक खेती या जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैविक उर्वरकों का उपयोग किया जाता है.
कई बार कुछ किसान सोचते हैं कि जैविक खाद के उपयोग से क्या फायदे हैं? उन्हें जैविक खेती क्यों करनी चाहिए? आपको बता दें कि जैविक खेती से न सिर्फ आपकी आमदनी बढ़ती है बल्कि जमीन की उर्वरता भी बढ़ती है.
कई लोगों के मन में यह भी सवाल होता है कि जैविक खेती में कौन सी फसलें उगाई जाती हैं, तो हम आपको बता दें कि जैविक खेती में आप ज्यादातर फसलें उगा सकते हैं, जैविक खेती के जरिए कई फसलें जैसे चना, गेहूं, मक्का आदि, अन्य सभी दलहनी फसलें उगा सकते हैं. तिलहन में सरसों आदि फसलें उगाई जा सकती हैं. हालाँकि, किसान एक बात पर ध्यान दे सकते हैं कि बाजार में किस फसल की अधिक मांग है, अधिक मांग वाली फसलों का उत्पादन करके किसान अपनी फसलों के अधिक दाम प्राप्त कर सकते हैं. लेकिन जैविक खेती करने से पहले इन बातों का ध्यान रखना बेहद जरुरी है. ऐसे में आइए जानते हैं जैविक खेती करने से पहले इन 10 बातों के बारे में.
जिस रकबे में जैविक खेती की जाना है उस रकबे के पूर्ण क्षेत्र में जैविक खेती ही करना होगा. जैविक एवं अजैविक खेती एक साथ करना अमान्य है.
जैविक खेती में खरपतवार नियंत्रण हेतु प्रथम वर्ष गहरी जुताई करना भी एक कारगर उपाय है.
जैविक खेती के पूर्व प्रक्षेत्र की मेड़ों पर उपलब्ध कचरा एवं अन्य वानस्पतिक समुदाय को समाप्त करना अति आवश्यक है क्योंकि मेड़ों पर उपलब्ध खरपतवारों के बीज खेतों में स्थानान्तरित हो जाते हैं.
वर्तमान में अभी ऐसे जैविक खरपतवारनाशी नहीं है जिनके छिड़काव से खरपतवार का नाश किया जा सके. जैविक खेती में खरपतवार नियंत्रण का कारगर उपाय निदाई एवं खेतों की तैयारी है.
जैविक खेती शुरू करने से पूर्व प्रति हैक्टर 01 नाडेप एवं 02 वर्मी कम्पोस्ट के मान से तैयार करना चाहिए. यदि नाडेप कम्पोस्ट एवं वर्मी कम्पोस्ट खेत पर तैयार नहीं किये गये तो जैविक खेती की लागत बढ़ जाती है तथा बाजार से कय की गई खाद महंगी एवं शुद्धता पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है.
नाडेप एवं वर्मी कम्पोस्ट के भरने हेतु गोबर मुख्य कम्पोनेन्ट हैं. अतः प्रति हैक्टेयर एक गोवन्स पाले जाने भी आवश्यक है.
तैयार किये गये नॉडेप एवं वर्मी कम्पोस्ट हेतु एक निर्धारित कार्यकम तैयार किया जावे एवं भरने हेतु फसल अवशेष एवं कचरा की उपलब्धता को दृष्टिगत रखते हुए स्रोतों को सूचीबद्ध किया जाना आवश्यक है.
जैविक खेती में उपयोग में लाये जाने वाले जैविक कीटनाशक की तैयारी बोई जाने वाली फसलों के आधार पर एक माह पूर्व करना आवश्यक है. हरी खाद सन, ढेंचा, उड़द, मूँग इत्यादि से तैयार की जावे.
जैविक खेती लगातार तीन वर्ष तक करने से आदान (खाद एवं कीटनाशी) की लागत घट जाती है तथा उत्पादन में कमशः बढ़ौतरी होती है इससे यह मुख्य लाभ है कि यदि जैविक उत्पाद सामान्य बाजार मूल्य पर बेचा जावे तो भी लाभ की स्थिति रहती है.
जैविक खेती हेतु समस्त आदान खेत स्तर पर तैयार किये जाते हैं इसी कारण जैविक खेती की लागत कम एवं लाभ अधिक होता है. उपरोक्त अनुसार कार्य करने पर जैविक खेती में सफलता हासिल हो सकती है.