भारत में सबसे पहले महाराष्ट्र में देखने को मिली थी गाजर घास, इस पर कैसे किया जा सकता है काबू

भारत में सबसे पहले महाराष्ट्र में देखने को मिली थी गाजर घास, इस पर कैसे किया जा सकता है काबू

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार यह खरपतवार मनुष्य में त्वचा, बुखार और दमा जैसे रोग उत्पन्न करता है. इसके संपर्क में आने से शरीर में एलर्जी, एक्जिमा, खुजली जैसी समस्याएं हो सकती हैं. इसको खाने से पशुओं में दूध उत्पादन कम हो सकता है. इसका एक पौधा 5000 से 25000 बीज बनाने की क्षमता रखता है. इसलिए इसका विस्तार तेजी से होता है. किसान इस घास से बना सकते हैं खाद लेकिन इन बातों का देना पड़ेगा ध्यान. 

Carrot grass
सर‍िता शर्मा
  • Mumbai,
  • Jan 16, 2024,
  • Updated Jan 16, 2024, 11:32 AM IST

फसलों और इंसानों के लिए गाजर घास का नाम आपने सुना होगा, लेकिन यह भारत में सबसे पहले कब और कहां मिली इसे कम लोग ही जानते हैं. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में गाजर घास को सबसे पहले 1956 में महाराष्ट्र के पुणे में देखा गया था. तब से यह खरपतवार लगातार बढ़ रहा है. देश के ज्यादातर हिस्सों में यह फैल चुका है. कृषि वैज्ञानिक बनवारी लाल जाट और अक्षय चितौड़ा के मुताबिक इसका उदगम स्थल मैक्सिको, अमेरिका, त्रिनिडाड और अर्जेंटीना माना जाता है. पहले यह खरपतवार केवल गैर कृषि क्षेत्रों में ही दिखाई देता था, लेकिन अब यह हर तरह की फसलों, बागों, वनों, रोड व रेलवे मार्गों के किनारे पर पाया जाने लगा है. 

इन दोनों कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार गाजर घास एक ऐसा खरपतवार है जो सब जगहों पर पाया जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस है. इसे कई स्थानीय नामों जैसे-कांग्रेस घास, चटक चांदनी, कडवी घास आदि से भी जाना जाता है. इसमें 'सेस्क्यूटरपीन लेक्टोन' नामक विषाक्त पदार्थ पाया जाता है जो फसलों के अंकुरण एवं वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है. इस खरपतवार से गांवों के पगडंडीनुमा रास्ते और पार्कों के मार्ग लगभग बंद से हो जाते हैं. 

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इंसान के लिए कितनी खतरनाक है गाजर घास

यह खरपतवार मनुष्य में त्वचा, बुखार और दमा जैसे रोग उत्पन्न करता है. इसके संपर्क में आने से शरीर में एलर्जी, एक्जिमा, खुजली जैसी समस्याएं हो सकती हैं. इसको खाने से पशुओं में अनेक प्रकार के रोग पैदा हो सकते हैं और दुधारू पशुओं के दूध में कड़वाहट के साथ-साथ दूध उत्पादन में कमी आने लगती है. यह खरपतवार किसी भी तरह की मिट्टी और किसी भी प्रकार के मौसम में उग जाता है. गाजर घास का पूरा पौधा सफेद रंग के फूलों से भरा रहता है. इसका विस्तार बीज द्वारा होता है.  इसका एक पौधा 5000 से 25000 बीज बनाने की क्षमता रखता है. इस खरपतवार का बीज इतना हल्का होता है कि हवा, पानी तथा अन्य मानवीय कृषि क्रियाओं द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाता है. इसलिए यह खरपतवार भारत में लगभग सभी जगहों पर फैल चुका है.

क्या है गाजर घास के नियंत्रण का उपाय

कृषि वैज्ञानिकों बनवारी लाल जाट और अक्षय चितौड़ा के अनुसार गाजर घास को फूल आने से पहले हाथ से उखाड़कर जला देने या इसका कम्पोस्ट बनाकर इसे काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है. इसे उखाड़ते समय हाथों में दस्ताने एवं सुरक्षात्मक कपड़ों का प्रयोग करना चाहिए. राष्ट्रीय खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर द्वारा प्रत्येक वर्ष 16 से 22 अगस्त तक गाजर घास उन्मूलन सप्ताह आयोजित किया जाता है.

जिन स्थानों पर यह खरपतवार बहुतायत में पाया जाता है, वहां पर अगर वैज्ञानिक विधि से गाजर घास से कम्पोस्ट बनाया जाए तो यह एक सुरक्षित कम्पोस्ट होगा. किसानों को यह सलाह दी जाती है कि इसके पौधों में फूल आने से पहले ही प्राथमिक अवस्था में उखाड़कर गड्ढे में कम्पोस्ट खाद बनाएं.

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