फसलों के दुश्मन खरपतवार जल, सूरज का प्रकाश, पोषक तत्व सोखने का काम करते हैं और ये पौधों तक नहीं पहुंचने देते हैं. इस वजह से पौधों का विकास सही तरीके से नहीं हो पाता और उत्पादन में कमी आती है. ऐसे में इन्हें नष्ट करना बेहद जरूरी है. जानिए इनसे निपटने के कुछ तरीके…
खरपतवार से बचाव के लिए फसल की बुआई के समय विशेष ध्यान रखना जरूरी है. बुआई के समय उपचारित किए गए बीज का इस्तेमाल करना चाहिए. उपचारित बीजों के उपयोग से खरपतावार का खतरा नहीं रहता. साथ ही फसल का रोगों से भी बचाव होता है.
खरपतवार से बचाव के लिए फसल की बुआई के समय विशेष ध्यान रखना जरूरी है. बुआई के समय उपचारित किया गया बीज का इस्तेमाल करना चाहिए. उपचारित बीजों के उपयोग से खरपतावार का खतरा नहीं रहता. साथ ही फसल का रोगों से भी बचाव होता है.
मल्चिंग सिस्टम से बिना केमिकल फर्टिलाइजर्स के उपयोग से मिट्टी की उत्पादक क्षमता बढ़ सकती है. साथ ही खेत में खरपतवार की समस्या को भी खत्म किया जा सकता है. यह विधि खरपतवार के नियंत्रण और पौधों को देर तक सुरक्षित रखने के लिए एक बेहतर है.
खरपतवार से परेशान किसानों के लिए ग्रीष्मकालीन जुताई एक बढ़िया विकल्प है. इसके लिए कल्टीवेटर का इस्तेमान करना ठीक है. ऐसा करने पर मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों की रक्षा संभव है. साथ ही खरपतवार में भी कमी आती है.
खरपतवार से परेशान किसान उचित फसल चक्र अपनाकर भी इससे बच सकते हैं. इस प्रयोग से एक ही खेत में अलग-अलग फसलों की एक क्रम में की जाती है, जिससे मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर होता है, कीट और खरपतवार से भी छुटकारा मिलने के साथ उपज बढ़ती है.
खरपतवार पर काबू पाने लिए मिक्स क्रॉपिंग (सहफसली) भी एक अच्छा विकल्प है. इस विधि में एक ही खेत में दो अलग-अलग फसलें उगाई जाती हैं. इस विधि के उपयोग से कीटों, खरपतवार को कम किया जा सकता है. वहीं, पैदावार में इजाफा होता है.