बैल कभी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ होते थे धीरे-धीरे समय के साथ बैलों की उपयोगिता कम होने लगी. ऐसे में पूर्व डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह ने एक ऐसी तकनीक को इजाद किया है जिसके माध्यम से बैल बिजली ही नहीं बनाएंगे बल्कि खेत की सिंचाई भी करेंगे. शैलेंद्र सिंह ने किसान तक को बताया कि उनके द्वारा विकसित हुआ नंदी रथ के माध्यम से बिजली बन ही रही है. उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली और डीजल की समस्या से किसानों को निजात दिलाने के लिए बैलों के माध्यम से सस्ती सिंचाई का विकल्प दिया है. डीजल के माध्यम से जहां 1 एकड़ खेत की सिंचाई का खर्च एक हजार आता है, तो वही बैल के माध्यम से 1 एकड़ खेत की सिंचाई का खर्च मात्र 200 ही है.