खेती में रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते प्रयोग के चलते फसल का उत्पादन तो जरूर बढ़ा है.वहीं दूसरी तरफ खेत की उर्वरा शक्ति पर विपरीत असर भी पड़ा है.रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. इसी को देखते हुए अब किसान भी प्राकृतिक खेती के तरफ आकर्षित हो रहे हैं. लखनऊ में केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. सुशील शुक्ला ने प्राकृतिक विधि से बागवानी को संभव कर दिखाया है. लखनऊ के तेलीबाग परिसर में वह पिछले 2 सालों से प्राकृतिक विधि से आम, आंवला, अमरूद और बेल की बागवानी कर रहे हैं, जिसके अच्छे परिणाम भी देखने को मिले हैं. प्राकृतिक विधि से बागवानी करने से फसल लागत में 40 फीसदी की कमी भी आ रही है, जिससे किसानों का मुनाफा बढ़ेगा.
प्राकृतिक विधि (Natural farming) से खेती तो देश में किसानों के द्वारा बहुतायत की जा रही है. इस विधि से बागवानी को लखनऊ के केंद्रीय उपोष्ण बागवानी परिसर में वैज्ञानिक के द्वारा संभव कर दिखाया गया है. सीआईएसएच के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ सुशील शुक्ला ने किसान तक को बताया की जैविक और प्राकृतिक विधि से बागवानी करने के कई फायदें हैं. इस तरीके से किसान अपने फार्म में न तो खेतों की जुताई करते हैं, बल्कि खरपतवार को भी खेत में ही मल्चिंग कर देते हैं. इससे बागवानी में लगाए गए पेड़ों को फायदा होता है. इसके अतिरिक्त किसी भी कीटनाशक का छिड़काव नहीं करते हैं बल्कि कीटों का संक्रमण बढ़ने पर नीमास्त्र, दसपर्निअर्क और अग्नि अस्त्र का छिड़काव करते हैं. इससे फसल लागत में 40 फ़ीसदी तक कमी आ रही है, जिससे किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी.
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आम की मांग पूरे विश्व में है. वहीं लखनऊ का दशहरी और बनारस के लंगड़े की आम कुछ चाहने वाले पूरे विश्व में मौजूद हैं. ऐसे में प्राकृतिक विधि से आम की बागवानी करने से फलों की गुणवत्ता में सुधार होगा और निर्यात भी बढ़ेगा, जिससे किसानों को ज्यादा मुनाफा होगा. डॉ. सुशील शुक्ला ने बताया कि प्राकृतिक विधि से बागवानी करने पर रासायनिक कीटनाशकों का का छिड़काव नहीं करना पड़ता है. इससे फल की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है.
उत्तर प्रदेश बुंदेलखंड के 7 जनपदों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार किसानों को सब्सिडी दे रही है. वहीं गंगा के दोनों किनारों से 5 किलोमीटर की सीमा तक लगे 26 जनपदों में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. इस योजना का क्रियान्वयन भूमि को क्लस्टर में बांटकर किया जा रहा है. फिलहाल प्रदेश में 106917 किसानों के द्वारा प्राकृतिक खेती की जा रही है.