कृषि क्षेत्र में अब नई-नई तकनीकी का विकास हो रहा है. इसमें बागवानी क्षेत्र भी शामिल है. असल में बागवानी फसलों में लगने वाले कीट-पतंग किसानों को बहुत परेशान करते हैं. खासतौर से आम की फसल को बचाने के लिए किसानों को अलग-अलग तरह के कीटों से जूझना पड़ता है. तब जाकर कहीं मीठे फल बाजार में पहुंच पाते हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए सेंट्रल इंस्टीट्यूट फाॅर सबट्राॅपिकल हार्टिकल्चर ( केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान) के वैज्ञानिकों ने सोलर ट्रैप मशीन का विकास किया है. यह तकनीकी किसानों के लिए काफी ज्यादा उपयोगी साबित हो रही है. ये मशीन दिन में सौर ऊर्जा से चार्ज होती है तो वहीं रात में यह कीट पतंगों के लिए काल बन जाती है.
फसल को कीटों से बचाने के लिए किसानों को कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करना पड़ता है, जिससे फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है.वहीं इस काम में किसानों को खर्च भी खूब करना पड़ता है. सेंट्रल इंस्टीट्यूट फाॅर सबट्राॅपिकल हार्टिकल्चर के वैज्ञानिकों ने कीटों से बचाव के लिए सोलर ट्रैप को विकसित किया है. इस तकनीकी के सफल प्रयोग के बाद एक कंपनी के द्वारा इसका निर्माण शुरू कर दिया गया है. केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिक डॉ पीके शुक्ला ने बताया कि दिन में सूर्य की रोशनी में यह मशीन चार्ज होती है और फिर शाम होते ही यह अपना काम शुरू कर देती है.
आम की फसल पर जनवरी और फरवरी में बौर आने लगते है. ऐसे में कीट पतंगों का हमला फसल पर बढ़ जाता है. वही इन कीटों के लिए यह सोलर ट्रैप काफी ज्यादा कारगर है. इसमें अलग-अलग आकार की मशीनें विकसित की गई है. बड़ी सोलर ट्रैप की कीमत ₹8000 तक है जबकि छोटे आकार की मशीन की कीमत चार हजार है. बड़े आकार की दो मशीनों से एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगी हुई फसल का कीटों से बचाव हो जाता है. इस लिहाज से फसल को लेकर किसानों की चिंता भी कम होगी. वहीं कीटनाशक की दवा का खर्च भी बचेगा.
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केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ पीके शुक्ला बताते हैं कि 16 अप्रैल में बैटरी लगी होती है, जो दिन में सूर्य की रोशनी से चार्ज होती है. कीट-पतंगों का सबसे ज्यादा संक्रमण अंधेरा होने के 2 घंटों के दौरान बढ़ जाता है. वहीं इस दौरान यह मशीन अलग-अलग रोशनी के द्वारा कीटों को आकर्षित करती है और फिर इलेक्ट्रिक रैकेट की चपेट में आकर मर जाते हैं. संस्थान के आम के बागों में इस तरह की मशीन लगाई गई है] जिसका सबसे अच्छा रिजल्ट देखने को मिल रहा है. कम खर्च में किसानों के लिए यह काफी उपयोगी तकनीकी है.