कृषि वैज्ञानिकों ने पुराने घरेलू कृषि यंत्रों को दिया नया कलेवर ,कुटाई- पिसाई का काम हुआ आसान

कृषि वैज्ञानिकों ने पुराने घरेलू कृषि यंत्रों को दिया नया कलेवर ,कुटाई- पिसाई का काम हुआ आसान

बिहार के समस्तीपुर पूसा के डॉ राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पुराने घरेलू कृषि यंत्रो स्तचालित चक्की व विद्युत चालित ओखली बनाया है. इससे अनाज के कुटाई पिसाई काम को आसान कर दिया है. किसान इन मशीनों से कम समय मेहनत मेें कुटाई और पिसाई काम कर सकते है इसके साथ किसान पौष्टिक खाद्य उत्पादों तैयार कर अपना खुद का व्यवसाय भी शुरू कर सकते हैं. 

हस्तचालित चक्की सरकार दे रही है अनुदानहस्तचालित चक्की सरकार दे रही है अनुदान
अंक‍ित कुमार स‍िंह
  • PATNA,
  • Apr 02, 2023,
  • Updated Apr 02, 2023, 4:16 PM IST

आज खेती के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग हो रहा है।  पुराने जमाने में कषि घरेलू कार्य में उपयोग हाेने वाली घरेलू मशीने अब नए रूप आ रही है .पहले घरो में उपयोग होने वाली ओखल-मूसल और चक्की  अब नए रूप में आ गई है. इसे घर पर कोई भी आसानी से इस्तेमाल कर सकता है. पुराने समय में ओखल-मूसल और चक्की से अनाजों से कई  तरह के उत्पाद तैयार किए जाते थे. लेकिनअधिक समय और अधिक मेहनत  औऱ परेशानी के कारण इसका प्रचलन कम हो गया. लेकिन अब डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा समस्तीपुर के फार्म मशीनरी और पावर इंजीनियरिंग विभाग के वैज्ञानिकों ने हाथ से चलने वाली चक्की और बिजली से चलने वाली ओखल-बनाई है.जो कम समय और कम मेहनत में कुटाई औऱ पिसाई का कार्य निपटा देगी.

मशीन बनाने वाली वैज्ञानिक डॉ. उषा सिंह और डॉ. सुभाष चंद्रा का कहना है कि इस मशीन के इस्तेमाल से किसान आत्मनिर्भर बन सकते हैं और  इससे तैयार उत्पाद में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व होंगे.पारंपरिक ओखल- मूसल की तुलना में इसमें आसानी से कुटाई  हो जाता है. नए ओखल  मशीन की बाडी लोहे की है, लेकिन ओखल- मूसल लकड़ी का होती है मूसल को लोहे के फ्रेम में लगाया गया है.इसमें एक हार्स पावर की मोटर, गियर, चेन, बेल्ट और पुल्ली आदि का इस्तेमाल किया गया है वही पुराना चक्की से मसाला,जौ की भूसी, गेहूं की छंटाई, चावल, गेहूं से आटा निकालने में काफी समय लगता था.लेकिन इस हस्त चालित चक्की मशीन में समय की बचत होगी. 

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विद्युत चालित ओखल-से कुटेगा अनाज

कृषि विश्वविद्यालय, पूसा समस्तीपुर के खाद्य एवं कृषि विभाग के प्रोफेसर  डॉ.उषा सिंह किसान तक को बताया हैं कि बिजली से चलनेवाली राजेंद्र ओखल मशीन सिंगल फेज की इलेक्ट्रिक मोटर से चलती है उसे  विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ.सुभाष चंद्र के मदद से  बनाया गया है.अनाज से तैयार खाद्य उत्पादों को तैयार करने में यह मशीन कारगर साबित होगी. उन्होंने बताया कि इस काम को करने के लिए  पहले ओखल और ढे़की का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब यही काम बिजली से चलने वाले ओखल से आसानी से  कम समय में हो जाएगा, इस मशीन को  विशेष रूप से कौनी, सवा, धान जैसे मोटे अनाज से चावल निकालने के लिए डिज़ाइन किया गया है.साथ ही इसका उपयोग मसाला,जौ की भूसी निकालने, गेहूं की छंटाई समेत अन्य कार्यों में भी किया जा सकता है,वहीं, यह पारंपरिक ओखल या ढेंकी की तुलना में 5 से 6 गुना तेजी से काम करता है,वह आगे बताती हैं कि यह मशीन पारंपरिक पौष्टिक अनाज के उत्पादन और उनसे खाद्य उत्पाद बनाने के लिए पूरी तरह बेहतर है,वहीं इसकी कीमत 75000 रुपये तय की गई है,वहीं भविष्य में सरकारी सब्सिडी की सुविधा भी मिलेगी.

पुराने समय की चक्की

हस्तचालित चक्की से काम भी व्यायाम भी


डॉ उषा सिंह हस्तचालित चक्की के बारे में कहती हैं कि हस्तचालित चक्की में अलग अलग अनाजों के लिए गियर लगाए गए  हैं. साथ ही यह स्टेनलेस स्टील से बनाया गया है. और इसकी वजह से ये काफी मजबूत है. वहीं यह मशीन घरेलू चक्की का ही बदला हुआ रूप है. इस मशीन को लोग आसानी से चला सकते हैं. इसको चलाने में एक तरह से व्यायाम भी आसानी से हो जाता है. इसे लोग कुर्सी या फर्निचर पर बैठकर भी आसानी से चला सकते हैं.आगे वह बताती हैं कि इसमें दाल 25 से 30 किलो एक घंटा में तैयार हो सकता है, जिसमें मुख्य रूप से मसूर, मूंग, चना इत्यादि के दाल निकाले जा सकते हैं.साथ ही हस्तचालित चक्की से बेसन, गेहूं का आटा, दलिया आसानी से तैयार किया जा सकता है.वहीं इसका मूल्य 22 हजार रुपए रखा गया है, जबकि सरकार के द्वारा 50 प्रतिशत तकअनुदान दिया जा रहा है.

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किसानों को रोजगार से जोड़ने का प्रयास

इन मशीनों की मदद से किसान पौष्टिक खाद्य उत्पादों का निर्माण कर  छोटे छोटे पैकेट में बाजार में आसानी से बेच सकते हैं. वे छोटे स्तर पर  एक अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं. इसके साथ ही समूह से जुड़ी महिलाएं भी अपना कारोबार शुरू कर सकती हैं. 

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