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लीची पर मेहरबान मौसम! बेमौसम बार‍िश से अच्छे उत्पादन का अनुमान

लीची पर मेहरबान मौसम! बेमौसम बार‍िश से अच्छे उत्पादन का अनुमान

देश के कुल लीची उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी 65 प्रतिशत से ज्यादा है. राज्य में 30,600 हेक्टेयर भूमि पर लीची के बाग हैं. यहां अब तक मुजफ्फरपुर को ही लीची उत्पादन का केंद्र माना जाता था. वही इस वर्ष मौसम के साथ देने और बागों में बढ़िया मंजर निकलने से बेहतर उत्पादन की आस किसानों में जगी हुई है.

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लीची की अच्छी उत्पादन होने की उम्मीद लीची की अच्छी उत्पादन होने की उम्मीद

देश में अत्यधिक ठंड के बाद मौसम के अनुकूल रहने से इस साल आम और लीची के बागानों में वर्ष 1962 की भांति खूब मंजर निकले हैं. फरवरी के महीने में तापमान के बढ़ने के साथ ही बागानों में निकले मंजर में अब फूल और फल निकलने लगे हैं. दो वर्षों तक लीची के विकसित होने के समय कोरोना वायरस के साथ हुई अत्यधिक बारिश के कारण लीची का उत्पादन और व्यापार काफी प्रभावित हुआ था. इस वर्ष मौसम के साथ देने और बागों में बढ़िया मंजर निकलने से बेहतर उत्पादन की आस किसानों में जगी हुई है. वहीं किसानों ने बागों में आए इस बेहतर मंजर को कीट-व्याधि से बचाते हुए उचित देखभाल कि तो लीची का पेड़ फलों से लद जाएगा. इसके बाद अधिक उत्पादन होने से जहां लोगों को लीची खाने को मिलेगा. वहीं किसानों और व्यापारियों को भी इसकी लाभ मिलने की उम्मीद है. 

लीची उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी

देश के कुल लीची उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी 65 प्रतिशत से ज्यादा है. राज्य में 30,600 हेक्टेयर भूमि पर लीची के बाग हैं. यहां अब तक मुजफ्फरपुर को ही लीची उत्पादन का केंद्र माना जाता था. लेकिन, नए सर्वे में प्रदेश के 37 जिले इसके लिए काफी उपयुक्त हैं. बल्कि, कई जिलों में तो यहां से अधिक उपयुक्त भूमि मिली है. इन 37 जिलों में 50,05,441 हेक्टेयर खेत लीची के लिए सर्वाधिक उपयुक्त तो 29,80,047 हेक्टेयर अन्य खेत भी सूटेबल हैं. मुजफ्फरपुर जिले में अब तक सिर्फ 12 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती होती है. जबकि, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर की ओर से कराए गए नए सर्वे में यहां 1,53,418 हेक्टेयर क्षेत्र को सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है.

इन जिलों को मानी गई है उपयुक्त

पूर्णिया, पूर्वी चंपारण, प. चंपारण, मधुबनी, कटिहार, बांका, औरंगाबाद, जमुई, मधेपुरा, सीतामढ़ी और.अररिया में मुजफ्फरपुर से भी अधिक भूमि लीची उत्पादन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानी गई है.  

बिहार में होता है चीन से अधिक उत्पादन

चीन में 31 लाख टन लीची की पैदावार होती है, जबकि वहां 8 लाख हेक्टेयर में इसके बाग हैं. भारत में एक लाख हेक्टेयर में लीची की बाग हैं जिसमें 7.5 लाख टन लीची का उत्पादन होता है. ऐसे में यदि नए सर्वे में चिह्नित क्षेत्र के सिर्फ 7 फीसदी एरिया में लीची बाग लगा दिए जाएं तो कुछ वर्षों में ही भारत लीची उत्पादन में चीन से आगे निकल जाएगा. बल्कि, अकेले बिहार में चीन से अधिक लीची का उत्पादन होने लगेगा.

चीन में भी की जाती है लीची की खेती

जिस तरह भारत में बिहार सर्वाधिक लीची उत्पादक राज्य है, उसी तरह चीन में उसके कुल उत्पादन की 40 फीसदी लीची ग्वांनडांग प्रांत में होती है. ग्वांनडांग के 3.2 लाख हेक्टेयर में 12 लाख टन लीची होती है, जबकि बिहार के सिर्फ 34 हजार हेक्टेयर में 3 लाख टन, ऐसे में राज्य के मुजफ्फरपुर जिले में जितनी भूमि लीची के लिए चिह्नित की गई है. वह ग्वांनडांग को पीछे छोड़ने के लिए काफी है. मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विकास दास ने बताया कि नदियों द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी में लीची की बेहतर पैदावार का इतिहास रहा है.

चीन और भारत समेत पूरे विश्व में नदियों के आसपास ही लीची की ज्यादा बागवानी होती है. बिहार में गंगा, गंडक, बूढ़ी गंडक के किनारे तो यूपी में गंगा और शारदा नदियों के किनारे सर्वाधिक लीची बाग हैं. लीची की जड़ों के विकास और पोषक तत्वों की आपूर्ति में ऐसी उपजाऊ मिट्टी का विशेष महत्व और योगदान है.

भारत में पाई जाने वाली प्रमुख किस्में 

शाही, चायना, देहरा रोज, रोज सेंटेड, बम्बई, पूर्वी, कलकतिया, कस्बा, लैंगिया, देहरादून, बेदाना, गंडकी, लालिमा, गंडकी संपदा, गंडकी योगिता और कसैलिया है.

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20 प्रमुख जिलों का आंकड़ा और वहां के क्षेत्र

बिहार के कई जिलों में लीची के लिए उपयुक्त भूमि मुजफ्फरपुर से अधिक से वे जिले ये हैं. पूर्णिया में  303281 हेक्टेयर उपयुक्त भूमि है, पूर्वी चंपारण में 300271 हेक्टेयर है, प. चंपारण 285287 में हेक्टेयर है, मधुबनी में 275541 हेक्टेयर है, कटिहार में 263518 हेक्टेयर है, बांका में 235738 हेक्टेयर है, औरंगाबाद में 198376 हेक्टेयर है, जमुई में 193941 हेक्टेयर है, मधेपुरा में 174264 हेक्टेयर है, सीतामढ़ी में 167797 हेक्टेयर है.

साथ ही अररिया में 164404 हेक्टेयर है, मुजफ्फरपुर में 153418 हेक्टेयर है, नवादा में 145830 हेक्टेयर है, भागलपुर में 131687 हेक्टेयर है, पटना में 124329 हेक्टेयर है, गोपालगंज 123747 में हेक्टेयर है, नालंदा में 121005 हेक्टेयर है, सहरसा में 118591 हेक्टेयर है, सुपौल में 110031 हेक्टेयर है और भोजपुर में 109188 हेक्टेयर है.

किसानों की होगी बेहतर आमदनी

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विकास दास ने बताया कि किसान सामान्य रूप से धान और गेहूं की खेती करते हैं. इससे प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष 50 से 60 हजार रुपए तक की आय होती है. जबकि, इसके लिए प्रतिवर्ष पूंजी लगानी होती है. मेहनत भी काफी अधिक करनी पड़ती है. बिहार की शाही लीची अपने उत्तम स्वाद और रंग को लेकर देश से लेकर विदेश तक प्रसिद्ध है.

इससे आय 1 से सवा लाख रुपए प्रति वर्ष हो सकती है. दूसरी तरफ इससे काफी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिलता है. साथ ही बिहार में भी लीची बाग लगाने के साथ-साथ उसके बेहतर उत्पादन और मार्केटिंग के लिए ज्यादा सक्रिय होने की जरूरत है, जिससे किसानों के आमदनी बेहतर होगी.