सुगंधित धान पर इन तीन कीटों का होता है प्रकोप, नुकसान और समाधान का तरीका जानें

सुगंधित धान पर इन तीन कीटों का होता है प्रकोप, नुकसान और समाधान का तरीका जानें

धान की खेती की बात करें तो यह खरीफ सीजन की मुख्य फसल है. जिसके कारण इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. धान विश्व की आधी से अधिक आबादी का मुख्य भोजन है. कीटों के आक्रमण से फसल की उपज में हानि होती है तथा उपज की गुणवत्ता और मात्रा में भी कमी आती है. धान की फसल में कीट लगने से 22 प्रतिशत तक उपज का नुकसान होता है.

Pests in paddy cropsPests in paddy crops
प्राची वत्स
  • Noida,
  • Dec 26, 2023,
  • Updated Dec 26, 2023, 11:34 AM IST

खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारत में मुख्य रूप से धान यानी चावल और गेहूं की खेती की जाती है. ताकि लोगों को भोजन संकट का सामना न करना पड़े. धान की खेती की बात करें तो यह खरीफ सीजन की मुख्य फसल है. जिसके कारण इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. धान विश्व की आधी से अधिक आबादी का मुख्य भोजन है. कीटों के आक्रमण से फसल की उपज में हानि होती है तथा उपज की गुणवत्ता और मात्रा में भी कमी आती है. धान की फसल में कीट लगने से 22 प्रतिशत तक उपज का नुकसान होता है.

विकास के विभिन्न चरणों में कीट धान की फसल को खाते हैं और अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं सुगंधित धान पर इन तीन कीटों के प्रकोप, नुकसान और समाधान के बारे में. 

तना छेदक रोग

धान में तना छेदक यानी स्टेम बोरर सुंडियां फसल को हानि पहुंचाती हैं, ये कीट धान की रोपाई के एक माह बाद किसी भी अवस्था में हानि पहुंचाते हैं. इसकी सुंडी मुख्य तने के अन्दर घुसकर तने को खाती है इनके हानि के लक्षणों को ‘डेड-हार्ट’ एवं बाली  के बाद ‘सफेद बाली’ के नाम से भी जाना जाता है. पीला तना छेदक गहरे पानी वाले धान का कीट है. यह जलीय वातावरण में पाया जाता है जहां लगातार बाढ़ आती रहती है. दूसरा इंस्टार लार्वा ट्यूब बनाने के लिए पौधों की पत्तियों के आवरण में खुद को बंद कर लेता है और खुद को पत्ती से अलग कर लेता है और पानी की सतह पर गिर जाता है. वे खुद को टिलर से जोड़ते हैं और तने में छेद कर देते हैं. 

कैसे करें रोकथाम?

पौध संरक्षण विशेषज्ञों के अनुसार, धान के तना छेदक कीटों की निगरानी और रोकथाम के लिए फेरोमोन ट्रैप का उपयोग करें. एक एकड़ खेत के लिए 5 से 6 फेरोमोन ट्रैप की निगरानी करें. इसके कीटों को आकर्षित करने के लिए प्रकाश जाल लगाएं. जैविक नियंत्रण के लिए अंडा परजीवी ट्राइकोग्रामा जैपोनिकम 5 सीसी का प्रयोग रोपाई के 28 दिन बाद एक सप्ताह के अंतराल पर तीन बार करें. इस कीट का अधिक प्रकोप होने पर कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 4 ग्राम या फिप्रोनिल 0.3 ग्राम 4 किलोग्राम प्रति एकड़ या क्लोरपाइरीफॉस 20 ईसी का प्रयोग करें. या कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 50 एसपी 1 मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.  

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भूरा भुनगा फुदका रोग

धान की फसल में ब्राउन हॉपर रोग फैल रहा है. देखते ही देखते धान की फसल सूखकर बर्बाद हो जा रही है, जिससे किसानों को भारी नुकसान हो रहा है. इस रोग से फसल को बचाने के लिए यूरिया की टॉप ड्रेसिंग से बचने की सलाह दी जाती है. यह कीट पौधे के विभिन्न भागों को चूसता है, जिससे फसल फूल आने से पहले ही सूखने लगती है. फसल का सूखना एक घेरे में शुरू होता है और घेरा धीरे-धीरे आकार में बड़ा होता जाता है. इससे फसल झुलसी हुई नजर आ रही है. 

कैसे करें रोकथाम?

इसे रोकने के लिए प्रतिरोधी किस्मों जैसे मानसरोवर, ज्योति और अरुणा आदि का उपयोग करें. धान के खेत के चारों ओर घास और खरपतवार को नष्ट करें. जल निकासी की उचित व्यवस्था करें. नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का उचित एवं संतुलित मात्रा में प्रयोग करें. इस कीट का प्रकोप बढ़ने पर मोनोक्रोटोफॉस 600-700 मि.ली. का छिड़काव करें. इसे 600 से 700 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर की दर से करें.

धान में गंधी मक्खी रोग और रोकथाम?

धान की फसल में गंधी बग कीट का प्रकोप सितम्बर से नवम्बर माह में अधिक होता है. इस कीट के प्रकोप से उपज 30 प्रतिशत तक कम हो जाती है. ये कीड़े लंबे पैरों वाले भूरे रंग के होते हैं और एक विशेष प्रकार की गंध छोड़ते हैं. इसके खेत में रहने से कुछ दुर्गंध आने लगती है. अगेती बोई गई धान की फसल में गंधी मक्खी शुरू में कोमल पत्तियों और तनों का रस चूसते हैं. जिससे पौधा कमजोर हो जाता है. बालियां निकलने और दूध भरने की अवस्था में ये कीट दानों को खाकर उसे खोखला और हल्का बना देते हैं.

जिससे पैदावार पर काफी असर पड़ता है. इस दौरान यह धान के पौधे को अधिक नुकसान पहुंचाता है. इसके शरीर से एक विशेष प्रकार की गंध निकलती है, जिससे इसे खेतों में आसानी से पहचाना जा सकता है. इसके नियंत्रण के लिए 10 प्रतिशत फोलीडाल धूल 10-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सुबह 8 बजे से पहले या शाम 5 बजे के बाद कानों पर लगाएं.

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