बिहार में मॉनसून के लेट आने से धान की फसल की बुवाई पिछड़ गई है. लेकिन धान की सीधी बुआई करके इस लेट मॉनसून के समय को मेंटेन किया जा सकता है. सीधी बुआई विधि में किसान को खेत को तैयार करने और धान की नर्सरी डालने की जरूरत नही पड़ती. खेत में हल्की नमी रहने पर भी जीरो टिलेज (बिना जुताई ) विधि से धान की सीधी बुआई कर सकते है.
पश्चिमी अनुमंडल कृषि पदाधिकारी डॉ विकास कुमार ने बताया कि मॉनसून लेट होने से मुजफ्फरपुर के किसान धान की बुआई में पिछड़ गए हैं. ऐसे में किसान सीधी बुआई के जरिए उस गैप को भर सकते है. सीधी बुआई पद्धतियां के दो तरीके है. एक शुष्क सीधी बुआई और दूसरी सीधी बुआई.
शुष्क सीधी बुआई में किसान अपनी खेत तैयार करते है और जीरो टिलेज मशीन से दो अलग-अलग कंपार्टमेंट में खाद और बीज डालते है, जिसके बाद जीरो टिलेज मशीन खेत में बुआई कर देती है. इससे हमारे श्रम और संसाधन बचते हैं.
साथ ही पानी की भी 30 प्रतिशत की बचत होती है. परंपरागत तरीके से बुवाई वाली धान से 15 से 20 दिन पहले यह धान तैयार हो जाती है. दूसरी है गीली सीधी बुआई इसमें रोपनी की तरह कदवा करते खेत को तैयार किया जाता है और ड्रम सीडर के माध्यम से इस बुआई को संपन्न किया जाता है.
इस बुआई में बीज को पहले 24 घंटे तक पानी में भिगोकर रखा जाता है. 24 घंटे बाद बीज से पानी निकालकर 12 घंटे तक कपड़े में रखकर बीज का अंकुरन किया जाता है. फिर अंकुरित बीज को ड्रम सीडर में रखकर गीली सीधी बुआई करते है.
किसान को ये ध्यान रखना है कि बीज ज्यादा अंकुरित नहीं हो वर्ना बीज ड्रम सीडर में टूट भी सकती है. इन दो पद्धतियों को अगर हम अपना ले तो 15-20 दिन जो बर्बाद हुआ है. उसकी काफी हद तक क्षतिपूर्ति की जा सकती है.