आजमगढ़, लालगंज, घोसी, गाजीपुर और जौनपुर, उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र के ये वो जिले हैं, जो इस बार के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए बेहद खास हैं. साल 2019 के चुनावों में ये पांचों जिले बीजेपी के हाथ से चले गए थे. यहां पर बीजेपी के उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा था. उन चुनावों में हार के साथ ही पार्टी की चुनावी महत्वकांक्षाओं को झटका लगा था. ऐसे में इस बार पार्टी इस क्षेत्र के लिए चुनावी रणनीति का मूल्यांकन करने में जुट गई है. दिलचस्प बात है कि माफिया डॉन से नेता बने मुख्तार अंसारी की मौत का गाजीपुर समेत बाकी जिलों में इस बार चुनावों में असर देखने को मिल सकता है. उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में पूर्वांचल की ये पांच सीटें बीजेपी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं.
पूर्वांचल की सभी लोकसभा सीट पिछले चुनाव में समाजवादी (एसपी) और बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) के पास चली गई थीं. जिन खास उम्मीदवारों को पिछले लोकसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था, उनमें मनोज सिन्हा का नाम सबसे खास था. सिन्हा इस समय जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल हैं. मनोज सिन्हा पूर्वांचल का प्रभावशाली भूमिहार ब्राह्मण चेहरा हैं. लेकिन उनकी हार ने इस क्षेत्र में बीजेपी की चुनौतियों को बढ़ा दिया है. उसे साल 2022 में आजमगढ़ की सीट पर हुए उपचुनाव में थोड़ी सांत्वना जरूर मिली थी. अखिलेश यादव ने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद बीजेपी के दिनेश लाल यादव निरहुआ ने समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव को हरा दिया था. 2019 में अखिलेश ने आजमगढ़ की सीट जीत थी.
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इसी तरह से 2019 के चुनावों के दौरान बसपा के उम्मीदवारों को लालगंज, घोसी, गाजीपुर और जौनपुर में जीत हासिल की थी. इन उम्मीदवारों की जीत को पूर्वांचल के निर्वाचन क्षेत्रों के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत बताया गया था. खासतौर पर कुछ सीटों, जैसे कि गाजीपुर और जौनपुर, में एतिहासिक तौर पर बीजेपी का दबदबा रहा है और हाल के वर्षों में पार्टी को एक कठिन चुनौती का सामना करना पड़ा है. पूर्वांचल की एक और सीट चंदौली में बीजेपी को जीत जरूर मिली थी, लेकिन यह जीत बहुत ही मामूली अंतर से थी. साल 2014 की शानदार जीत की तुलना में 2019 में भाजपा के डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडे ने सिर्फ 13959 वोटों के मामूली अंतर से सीट जीती थी. यह क्षेत्र में उभरती गतिशीलता और बढ़ती प्रतिस्पर्धा को रेखांकित करता है.
गाजीपुर में साल 2019 में बसपा के अफजाल अंसारी ने चुनाव जीता था. अफजाल अंसारी ने 1,19392 वोटों के अंतर से बीजेपी के मनोज सिन्हा को हराया था. गाजीपुर से सिन्हा ने तीन बार सांसद रह चुके हैं, उनकी जीत से बीजेपी को बड़ा झटका लगा था. इसी तरह से जौनपुर लोकसभा सीट से भी साल 2019 में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. इस सीट पर भी बसपा के श्याम सिंह यादव ने जीत हासिल की थी. आपको बता दें कि सन् 1989 से 2014 के बीच बीजेपी को चार बार लोकसभा का चुनाव जीता था.
राजनीति विश्लेषकों की मानें तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लगातार दूसरा कार्यकाल हासिल करने के बावजूद साल 2022 के विधानसभा चुनाव परिणामों ने भाजपा रणनीतिकारों के लिए चिंताओं को और बढ़ा दिया है. विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी का प्रदर्शन इस क्षेत्र में निराशाजनक ही था.आजमगढ़ की सभी पांच विधानसभा सीटों पर बीजेपी को हार झेलनी पड़ी. इसी तरह से लालगंज लोकसभा क्षेत्र की पांच विधानसभा सीटों पर भी भाजपा हारी. गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र की पांच विधानसभा सीटों में से एक पर भी बीजेपी उम्मीदवार जीत दर्ज नहीं कर सका था. घोसी लोकसभा क्षेत्र की पांच विधानसभा सीटों में से सिर्फ एक पर बीजेपी को जीत नसीब हुई. वहीं, जौनपुर की पांच विधानसभा सीटों में महज दो ही बीजेपी के खाते में आ सकीं.