यूपी सरकार के कृषि विभाग ने हाल ही में दलहन के उत्पादन को लेकर सभी जिलों के ब्योरे के आधार पर कम उत्पादन वाले जिलों में उपज को बढ़ाने के उपाय शुरू कर दिए हैं. रिपोर्ट में दालों के सर्वाधिक उत्पादन वाले 3 जिलों और सबसे कम उत्पादन वाले 3 जिलों में उपज के ज्यादा और कम होने की वजहों का भी जिक्र किया गया. कृषि विभाग ने ललितपुर के उप कृषि निदेशक संतोष कुमार सविता की अगुवाई में एक अध्ययन दल का गठन कर इसके कारणों का विश्लेषण कराया. इसमें पता चला है कि दलहन के उत्पादन को लेकर Best Practices अपनाने वाले जिलों में दालों का सर्वाधिक उत्पादन हुआ है. वहीं, जिन जिलों में किसान दालों के अच्छे उत्पादन से जुड़े उपायों को नहीं अपना रहे हैं, वे जिले दलहन उत्पादन में फिसड्डी साबित हुए हैं.
रिपोर्ट के अनुसार यूपी में पिछले वित्तीय वर्ष 2022-23 में रामपुर, जौनपुर और जालौन जिले दलहन फसलों के उत्पादन में सबसे आगे रहे. वहीं ललितपुर, महोबा और रायबरेली जिले दालों के उत्पादन में सबसे पीछे हैं. प्रदेश में सर्वाधिक दलहन का उत्पादन रामपुर जिले में 23.22 कुंतल प्रति हेक्टेयर है. जबकि सबसे कम उत्पादन रायबरेली जिले में महज 5.56 कुंतल प्रति हेक्टेयर है.
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यह बात दीगर है कि इन जिलों में बारिश की मात्रा और सिंचित क्षेत्रफल की कोई कमी नहीं है. रिपोर्ट के अनुसार रायबरेली जिले में कुल कृषि योग्य भूमि 2.68 लाख हेक्टेयर में से 1.61 लाख हेक्टेयर सिंचित जमीन है और इस जिले में सालाना औसत बारिश की मात्रा 927 मिमी है. इसके इतर महोबा जिले में औसत बारिश की मात्रा 850 मिमी और ललितपुर जिले में 816 मिमी औसत सालाना बारिश होती है. वहीं महोबा जिले में कुल कृषि योग्य भूमि 2.64 लाख हेक्टेयर में से महज 1 लाख हेक्टेयर ही सिंचित जमीन है. जबकि ललितपुर जिले में कुल 2.96 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से 2.28 लाख हेक्टेयर जमीन सिंचित है.
रिपोर्ट के अनुसार दलहन के सर्वाधिक उत्पादन वाले जिलों में मौसम एवं मिट्टी की अनुकूलता के अलावा सबसे प्रमुख कारण स्प्रिंकलर से सिंचाई करना और उन्नत एवं स्थानीय बीजों को वरीयता देना है. इन जिलों में किसानों द्वारा कुछ बेस्ट प्रैक्टिस अपनाने को भी दलहन का अच्छा उत्पादन होने की वजह रही है.
इसके अनुसार सर्वाधिक उत्पादन वाले रामपुर जिले में पाया गया कि दलहनी फसलों के लिए किसान फव्वारा विधि से सबसे ज्यादा सिंचाई करते हैं. इसके अलावा पूर्वांचल और बुंदेलखंड इलाके की तुलना में पश्चिमी यूपी के जिलों में फसल अवधि के दौरान तापमान कम रहना भी दलहनी फसलों के लिए अनुकूल कारक बन कर उभरा है.
जानकारों का मानना है कि फसल अवधि के दौरान कम तापमान होने के कारण फसल पकने में 10 से 15 दिन का अतिरिक्त समय लगता है. इससे सोर्स सिंक अनुपात अर्थात मिट्टी से फसल को मिलने वाले पोषण की अवधि बढ़ने के कारण दाना बड़ा और अच्छा होता है, इससे उपज भी बढ़ जाती है. इसके अलावा अधिक उत्पादन वाले जिलों में किसान छोटे रकबे वाले खेतों में दलहन की फसल बोते हैं. इससे उनका रखरखाव बेहतर तरीके से हाे पाता है. यह भी बेहतर उत्पादन की एक वजह है.
रिपोर्ट में पता चला है कि दलहन के सबसे कम उत्पादन वाले रायबरेली जिले में आलू, गेहूं और धान जैसी फसलों के लिए किसान अच्छे और उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग करते हैं, लेकिन दालों के लिए अच्छी प्रजाति के बीजों की अनुपलब्धता, इनके कम उत्पादन की वजह है.
इन जिलों में दलहनी फसलों को लेकर किसानों का रुझान तेजी से घट रहा है. इस वजह से किसान बेकार पड़ी अनुपजाऊ जमीनों पर दलहनी फसलों को बोते हैं. अनुपजाऊ जमीनों में कार्बन तत्वों की मात्रा 0.3 प्रतिशत से भी कम होती है. जबकि दलहन के लिए मिट्टी में कार्बन तत्वों का स्तर 0.8 प्रतिशत से ऊपर होना जरूरी है. स्पष्ट है कि मौसम और मिट्टी की अनुकूलता नहीं मिलना भी इन जिलों में दलहन के कम उत्पादन की वजह बन गया है.
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समिति ने किसानों में दलहनी फसलों के बारे में उपेक्षापूर्ण रवैया अपनाने से बचने के लिए सघन जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत पर बल दिया है. जिससे किसान अनुपजाऊ जमीनों के बजाए अच्छी जमीन पर दलहनी फसलों को बोने के लिए प्रोत्साहित हो सकें. समिति ने इस बात को भी स्वीकार किया है कि दलहन के कम उत्पादन वाले जिलों में छुट्टा जानवरों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाना इस समस्या का एक प्रमुख कारण है. दरअसल, दलहनी पौधे गोवंश और बकरियों का प्रिय भोजन है.
इन जिलों में आवारा पशु, दलहनी फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाते हैं. इससे उपज कम होती है. समिति ने सरकार से आवारा पशुओं की समस्या वाले जिलों में किसानों को तार फेंसिंग की सुविधा के लिए अनुदान देने का सुझाव दिया है. साथ ही स्थानीय कृषि वैज्ञानिकों से भी स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल उन्नत बीजों को विकसित करने और स्थानीय प्रशासन को किसानों के बीच इन उन्नत बीजों का प्रसार करने की जरूरत पर बल दिया है.
समिति ने कम उपज वाले जिलों में समतल जमीन न होने की समस्या के लिए सरकार को क्लस्टर आधार पर जमीन समतल कराने एवं आवारा पशुओं से फसल को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए अलग अलग क्लस्टर में तार फेंसिंग कराने की जरूरत पर बल दिया है. इसके अलावा जैविक उर्वरकों के इस्तेमाल एवं स्प्रिंकलर सिंचाई को बढ़ावा देने का परामर्श देते हुए दलहनी फसलों को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के भी सुझाव दिए हैं. समिति ने कहा है कि लगातार बदलते मौसम के मद्देनजर किसानों काे रबी सीजन में कम अवधि के बीजों, खरीफ सीजन में अधिक अवधि के बीजों को बढ़ावा देने एवं बौनी प्रजाति के बीजों का उत्पादन बढ़ाने का भी सुझाव दिया है.