पंजाब में उगाई जाने वाली गेहूं की सबसे पुरानी प्रजाति सोना-मोती को अब उत्तर प्रदेश के किसान भी अपने खेतों में उगा रहे हैं. सोना-मोती गेहूं को हड़प्पा काल में उगाया जाता था. वहीं गेहूं की सबसे पुरानी प्रजाति में अन्य गेहूं की प्रजाति के मुकाबले 3 गुना अधिक फोलिक एसिड होता है. वही इस गेहूं का दाना लंबा नहीं बल्कि गोल होता है. वही सेहत के लिए इस गेहूँ का सेवन काफी फायदेमंद बताया जाता है. इसी वजह से किसान भी अब खेती करने के लिए आगे आने लगे हैं. उत्तर प्रदेश के रायबरेली जनपद के किसान रामगोपाल चंदेल ने भी हड़प्पा कालीन सोना मोती गेहूं की खेती की है. यह गेहूँ सामान्य गेहूं से 4 गुने से अधिक दाम पर बिकता है जिसके चलते किसानों का मुनाफा भी ज्यादा होता है.
उत्तर प्रदेश के रायबरेली में सोना-मोती गेहूं की खेती करने वाले किसान रामगोपाल चंदेल ने बताया कि इस गेहूं में दूसरे अनाज के मुकाबले 3 गुना अधिक फोलिक एसिड पाया जाता है. वही 267% अधिक खनिज और 40% अधिक प्रोटीन पाया जाता है. फोलिक एसिड की कमी के कारण असमय बालों का सफेद होना तथा मुंह में छाले और जीभ में सूजन होने लगते है. वही इस गेहूं में ग्लूटेन की मात्रा कम होती है. इसके साथ ही ग्लाइसेमिक तत्व भी कम होता है जिसके कारण डायबिटीज के मरीजों के लिए यह फायदेमंद है.
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गेहूं की सोना मोती प्रजाति सामान्य गेहूं के मुकाबले 4 गुना दाम में बिकती है. वर्तमान में बाजार में ₹8000 प्रति क्विंटल के दाम पर यह गेहूं बेचा जा रहा है. पोषक तत्वों से भरपूर होने के चलते इस गेहूं की मांग दूसरे गेहूं के मुकाबले ज्यादा है. इस गेहूं की पैदावार प्रति एकड़ 15 क्विंटल तक होती है जबकि दूसरे गेहूं की पैदावार 20 क्विंटल तक होती है. सोना-मोती गेहूं की खेती करने वाले किसान रामगोपाल चंदेल ने बताया कि उन्होंने पहली बार इस गेहूं को उगाया है. वह इस प्राचीन प्रजाति के गेहूं की किस्म को प्राकृतिक विधि से उगाने का प्रयास कर रहे हैं. फसल तैयार होने के बाद ही इसकी उत्पादकता के बारे में पता चल सकेगा. उन्होंने यह भी बताया कि सामान्य गेहूं की तरह यह नहीं दिखता है बल्कि इसके दाने गोल होते हैं.