किसान पारंपरिक से हटकर बड़े पैमाने पर नगदी फसलों की खेती करने लगे हैं. नगदी फसलों में सबसे अधिक फलों की खेती की जा रही है. वहीं उद्यान विभाग इसकी खेती को बढावा देने में लगे हुए हैं. उधर, सर्दियों में पौधों को खास देखभाल की जरूरत होती है. हालांकि, तमाम तरीके अपनाने के बावजूद ठंड के कारण पौधे खराब हो जाते हैं. इस मामले में चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर के उद्यान विज्ञान विभाग के एचओडी प्रोफेसर विवेक कुमार त्रिपाठी ने बताया कि किसानों को अत्यधिक कम या अधिक तापमान, ओला और असामयिक वर्षा जैसी विभिन्न प्रतिकूल अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है. जिसमें तापमान में गिरावट या अधिकता होने पर पौधों का बचाव अति आवश्यक है.
उन्होंने बताया कि उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में दिसंबर और जनवरी में जब तापमान अत्यधिक गिर जाता है और पाले जैसी स्थिति हो जाती है, जिससे पौधों की पत्तियां, पतली टहनिया/ शाखाएं, फूल और विकसित हो रहे फल मर जाते हैं. इससे पपीता, आम, लीची, नींबू समूह के फल, अमरूद आदि में अधिक नुकसान होता है. नए रौपे गए पौधों पर भी कम तापमान एवं पाले का अधिक प्रभाव दिखाई देता है, जिससे पौधे मर भी जाते हैं.
त्रिपाठी बताते हैं कि तापमान की कमी से शाखा या तने का केंद्रीय भाग जिसमें कैंबियम होता हैं, मर जाता है, जिसको 'ब्लैक हार्ट' कहते हैं. अत्यधिक अधिक तापमान कम होने से भूमि के पास जड़ों-तने की छाल चटक जाती है, जिससे भी कोशिकाएं फट कर पौधे को नुकसान पहुंचाती हैं. अधिक पाला पड़ने पर तने या शाखा की छाल चटक जाती है, यह सब बिकार जब तापमान कम होता है या पाला पड़ता है तो पौधे की कोशिकाओं में जल का जमाव हो जाने के कारण, कोशिकाओं का आयतन बढ़ जाने से कोशिका भित्तियां फट जाने के कारण से होता है, जिसके फलस्वरूप पौधा मर जाता है.
उन्होंने कहा कि किसानों इन सबसे बचाव के लिए जो अत्यधिक स्थाई उपाय हैं वह पाले को सहन सील पौधे जिसमें किन्नू, लोकाट, अमरूद, मैंडरिन और मीठी नारंगी आदि का रोपण है. पाला पड़ने के संभावित समय से एक-दो दिन पूर्व हल्की सिंचाई करना भी लाभदायक रहता है. बगीचे में लकड़ियां या फूस एकत्रित कर, उस पर मूवीऑल डालकर, उसको जलाकर हल्का धुआं करना चाहिए. नए पौधों को फूंस की टट्टियों या टाट से पूर्व दिशा खुला छोड़ कर ढक देते हैं.
उद्यान विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर विवेक कुमार त्रिपाठी ने बताया कि बगीचा रोपड़ से पहले उत्तर और पश्चिम दिशा में वायु प्रतिरोधक पट्टियां लगाने से सर्दी में कम और गर्मी में अधिक तापमान से बगीचे के पौधों की सुरक्षा रहती है. इस प्रकार से उपयुक्त विभिन्न विधियों को अपनाते हुए किसान अपने रोपित बगीचा और फल दे रहे फलों के पौधों को सर्दी में बचाकर अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं.