जुकिनी की खेती कद्दू वर्गीय फसल है इसे चप्पन कद्दू के नाम से भी जाना जाता है. जुकिनी विदेशो में उगाई जाने वाली फसल है ,लेकिन अब भारत में भी किसान बड़े पैमाने पर इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. जुकिनी का उपयोग सब्जी और सलाद के रूप में खाने के लिए करते है. इसमें पोटेशियम और विटामिन ए, सी जैसे पोषक तत्व पाए जाते है,इसके चलते बजार में इसकी हमेशा डिमांड बनी रहती है ऐसे में किसानों के लिए इसकी खेती फायदे का सौदा साबित हो सकती है. जुगनी लतावर्गीय पौधा है,जिनकी लम्बाई करीब 3 फीट तक होती है. इसके एक पौधें पर केवल 7 से 8 फल आते हैं. स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों के लिए यह एक पसंदीदा सब्जी है.
खुले खेतों में जुकिनी की बुवाई का समय नवंबर से दिसंबर तक का होता है वहीं पॉलीहाउस में यह साल में तीन बार उगाया जा सकता है जिसमे जनवरी से अप्रैल माह तक इसकी पहली फसल लगा देनी चाहिए. अप्रैल से अगस्त का महीना दूसरी फसल के लिए उपयुक्त माना जाता है और तीसरी फसल सितंबर से दिसंबर के महीने तक इसकी खेती लगा सकते है. खरीफ सीजन चालू है ऐसे में किसान इसकी सही तरीके से खेती कर अच्छा मुनाफा और उत्पादन दोनों कमा सकते हैं. जानिए इसकी खेती के लिए उचित समय, जलवायु और उपयुक्त भूमि कैसी होनी चाहिए.
जुकिनी की फसल में उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती है. इसके अलावा भूमि में कार्बनिक पदार्थो की उचित मात्रा होनी चाहिए . अम्लीय या क्षारीय भूमि में जुकिनी की खेती बिल्कुल न करें.
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आस्ट्रेलियन ग्रीन
इस क़िस्म का पौधा झाड़ीनुमा होता है, जिसमे पीले रंग के फूल निकलते है, तथा फल लम्बे आकार और गहरे हरे रंग के होते है. इसके फल बीज रोपाई के 60 से 65 दिन पश्चात् तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है, जिसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 200 क्विंटल तक होता है.
पूसा अलंकार
यह एक संकर क़िस्म है, जिसमे सामान्य ऊंचाई वाले पौधे निकलते है. इस क़िस्म के पौधों पर आने वाले फल चमकीली धारिया लिए हुए हल्के हरे रंग के होते है यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 200 से 250 क्विंटल का उत्पादन दे देती है, तथा फल आकार में भी लम्बा होता है.
जुकिनी की फसल उगाने के लिए भूमि की अच्छी तयारी होनी बहुत ज़रूरी है. खेत में अच्छी मात्रा में गोबर खाद डाल कर खेत में हल्का पानी छोड़ दे. खेत में योथ आने पर खेत को गहरा जोत दे.
जुकिनी फसल की रोपाई बीज के माध्यम से की जाती है. इन बीजो को बुवाई से पूर्व कार्बेन्डाजिम, ट्राइकोडरमा विराइड या थीरम की उचित मात्रा से उपचारित कर लेते है. एक हेक्टेयर के खेत में बुवाई के लिए तक़रीबन 5 से 7 KG बीज पर्याप्त होते है. इन बीजो को खेत में बनाई गई मेड़ पर लगाना होता है.पंक्तियों में तैयार मेड़ पर बीजो को लगाने के लिए ड्रिल विधि का इस्तेमाल करते है. इन मेड़ो के मध्य डेढ़ फ़ीट की दूरी रखी जाती है, तथा बीजो के मध्य एक फ़ीट की दूरी रखे भूमि में बीजो को दो से तीन सेंटीमीटर की गहराई में लगाना होता है, ताकि अंकुरण ठीक तरह से हो सके.
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