सोयाबीन की खेती को बर्बाद करने के बाद अब येलो मोज़ेक वायरस का प्रकोप पपीते की खेती पर हो रहा है. इसकी वजह से पपीता की खेती करने वाले किसान संकट में हैं. इस वायरस ने अकेले नंदुरबार जिले में 3 हजार हेक्टेयर से अधिक एरिया में पपीते के बागों को प्रभावित किया है. जिससे किसानों की मेहनत और लाखों रुपये की लागत बर्बाद हो गई है. महाराष्ट्र के कई जिलों में देखा जा रहा है कि मोज़ेक वायरस ने सोयाबीन के बाद पपीते की फसल को प्रभावित किया है. जिनमें नंदुरबार जिला भी शामिल है. जिले में पपीते के काफी बगीचे मोज़ेक वायरस के कारण नष्ट होने के कगार पर हैं.
जिस तरह राज्य सरकार ने मोज़ेक वायरस के कारण सोयाबीन किसानों को हुए नुकसान के लिए मदद देने का वादा किया था, अब उसी तरह पपीता किसानों को भी सरकार से मदद की उम्मीद है. महाराष्ट्र एक प्रमुख फल उत्पादक राज्य है, लेकिन उसकी खेती करने वालों की समस्याएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. इस साल किसानों को अंगूर का अच्छा दाम नहीं मिला, बांग्लादेश की नीतियों के कारण एक्सपोर्ट प्रभावित होने से संतरे का दाम गिर गया है. अब पपीते पर प्रकृति की मार पड़ रही है.
पपीते पर लगने वाले विषाणुजनित रोगों के कारण उसके पेड़ों की पत्तियां जल्दी गिर जाती हैं. शीर्ष पर पत्तियां सिकुड़ जाती हैं, इसलिए फल धूप से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. व्यापारी ऐसे फलों को नहीं खरीदते हैं, जिले में 3000 हेक्टेयर से अधिक एरिया में पपीता इस मोज़ेक वायरस से अत्यधिक प्रभावित पाया गया है. हालांकि किसानों द्वारा इस पर काबू पाने के लिए तरह-तरह के उपाय किए जा रहे हैं, लेकिन पपीते पर संकट दूर होता नहीं दिख रहा है. इसलिए किसानों की मांग है कि जिले को सूखा घोषित कर सभी किसानों को तत्काल सहायता देने की घोषणा की जाए.
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नंदुरबार जिला महाराष्ट्र का सबसे बड़ा पपीता उत्पादक माना जाता है. हर साल पपीते की फसल विभिन्न बीमारियों से प्रभावित होती है, लेकिन पपीते पर शोध करने के लिए राज्य में कोई पपीता अनुसंधान केंद्र नहीं है. इसलिए, केंद्र और राज्य सरकारों के लिए यह आवश्यक है कि वे नंदुरबार में पपीता अनुसंधान केंद्र शुरू करें और पपीते को प्रभावित करने वाली विभिन्न बीमारियों पर शोध करके उस पर नियंत्रण करें, जिससे किसानों की मेहनत बेकार न जाए.
येलो मोज़ेक रोग मुख्य तौर पर सोयाबीन में लगता है. इसके कारण पत्तियों की मुख्य शिराओं के पास पीले धब्बे पड़ जाते हैं. ये पीले धब्बे बिखरे हुए अवस्था में दिखाई देते हैं. जैसे-जैसे पत्तियां बढ़ती हैं, उन पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. कभी-कभी भारी संक्रमण के कारण पत्तियां सिकुड़ और मुरझा जाती हैं. जिस्की वजह से उत्पादन प्रभावित हो जाता है.
कृषि विभाग ने येलो मोजेक रोग को पूरी तरह खत्म करने के लिए रोगग्रस्त पेड़ों को उखाड़कर जमीन में गाड़ने या नीला व पीला जाल लगाने का उपाय बताया है. इस रोग के कारण उत्पादकता 30 से 90 प्रतिशत तक कम हो जाती है. इसके चलते कृषि विभाग ने किसानों से समय रहते सावधानी बरतने की अपील की है.
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