मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड को छोड़कर देश के बाकी सूबों में गेहूं की सरकारी खरीद पूरी हो चुकी है. लेकिन, जिन राज्यों में अभी खरीद चल रही है उनमें भी किसानों ने मंडियों में एमएसपी पर बेचने के लिए गेहूं लाना बंद कर दिया है. मंडियों में सन्नाटा पसरा हुआ है. फिलहाल, एक भी राज्य ने अपने गेहूं खरीद टारगेट को पूरा नहीं किया है. उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार वर्तमान रबी मार्केटिंग सीजन के दौरान 17 जून को सुबह 8 बजे तक देश में 265.39 लाख टन गेहूं खरीदा गया है, जबकि 372.9 लाख टन का टारगेट दिया गया था. इस तरह सरकार इस साल अपने लक्ष्य से 29 फीसदी पीछे है. ओपन मार्केट में एमएसपी से अधिक दाम रहने की वजह से इस साल भी गेहूं की सरकारी खरीद अधूरी है.
केंद्र सरकार को देश के चार बड़े सूबों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा से उम्मीद थी कि इनकी मदद से इस बार कम से कम उतना गेहूं तो खरीद ही लिया जाएगा जितने का टारगेट रखा गया है, लेकिन इन सभी ने निराश किया. पंजाब ने केंद्र सरकार द्वारा दिए गए टारगेट का सबसे अधिक 95.66 फीसदी खरीद की है, लेकिन पूरा टारगेट हासिल करने में यह भी विफल रहा. हरियाणा में केंद्र द्वारा तय किए गए लक्ष्य का 88.9 फीसदी गेहूं खरीदा गया. मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड में खरीद प्रक्रिया 30 जून को बंद हो जाएगी, इसके बाद सरकारी खरीद 266 लाख टन तक पहुंच सकती है.
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देश में गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक उत्तर प्रदेश है, जिसकी कुल पैदावार में करीब 34 फीसदी की हिस्सेदारी है. लेकिन यह इस साल खरीद में बहुत पीछे रहा है. यहां केंद्र द्वारा दिए गए टारगेट का सिर्फ 15.4 फीसदी गेहूं ही खरीदा जा सका है. ऐसे में माना जा सकता है कि इस साल केंद्र सरकार जो गेहूं खरीद का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाई है उसमें बहुत बड़ी भूमिका उत्तर प्रदेश की है. मध्य प्रदेश ने भी केंद्र को कम निराश नहीं किया है. यहां लक्ष्य का सिर्फ 60.3 फीसदी गेहूं खरीदा जा सका है. राजस्थान भी टारगेट का सिर्फ 57.5 परसेंट ही गेहूं खरीद पाया है.
जब ओपन मार्केट में गेहूं का दाम एमएसपी से कम रहता है तब सरकारी खरीद बढ़ जाती है, लेकिन जब दाम अधिक रहता है तब खरीद घट जाती है. पिछले तीन साल से ओपन मार्केट में गेहूं के दाम एमएसपी से अधिक चल रहा है. इसलिए किसानों की बल्ले-बल्ले है. उन्हें अच्छा दाम मिल रहा है. फरवरी 2022 में आए हीटवेव और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद गेहूं को लेकर जो टेंशन बढ़ी थी वो अब तक कायम है. जबकि उसके बाद 2023 और 2024 में भारत में रिकॉर्ड पैदावार हुई है.
गेहूं को लेकर शुरू हुई टेंशन की वजह से सरकार 2022-23 में खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाई. तब 444 लाख मीट्रिक टन के टारगेट की जगह महज 187.92 लाख मीट्रिक टन ही गेहूं खरीदा जा सका था. पिछले साल यानी 2023-24 में सरकार 341.50 लाख टन के लक्ष्य के विपरीत सिर्फ 262 लाख टन गेहूं ही खरीद पाई. अब इस साल यानी 2024-25 में 372.9 लाख टन की जगह पूरी खरीद सिर्फ 265 लाख टन पर ही सिमटती नजर आ रही है.
बिहार देश का छठा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है. इसके बावजूद यहां सेंट्रल पूल के लिए सिर्फ 10,020.54 मीट्रिक टन गेहूं ही खरीदा गया है. पिछले आठ साल में बिहार ने सिर्फ एक बार 2021-22 में 4.56 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा था, बाकी वर्षों में कभी 50 हजार टन का आंकड़ा भी नहीं हासिल किया था. उधर, हिमाचल प्रदेश में इस साल मात्र 2,841.25 मीट्रिक टन और उत्तराखंड में सिर्फ 1,194.05 मीट्रिक टन गेहूं की ही खरीद हुई है.
रबी मार्केटिंग सीजन 2024-25 में एमएसपी पर गेहूं बेचने के लिए देश भर के 37,03,088 किसानों ने रजिस्ट्रेशन करवाया था. लेकिन संयोग से इस साल भी किसानों को ओपन मार्केट में सरकारी रेट से अधिक दाम मिला. इसलिए रजिस्टर्ड किसानों में से सिर्फ 20,96,292 किसानों ने ही एमएसपी पर गेहूं बेचा. वजह यह है कि सरकार सिर्फ 2275 रुपये प्रति क्विंटल का एमएसपी दे रही है, जबकि ओपन मार्केट में दाम 2500 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास चल रहा है. बहरहाल, इस साल सरकार अब तक गेहूं खरीद के बदले 57,687.6 करोड़ रुपये किसानों के बैंक अकाउंट में डाल चुकी है.
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