किसानों के लिए वरदान है ये फसल, कम लागत में सूखे में भी देती है बंपर उपज 

किसानों के लिए वरदान है ये फसल, कम लागत में सूखे में भी देती है बंपर उपज 

ज्वार को 'श्री अनाज' के तौर पर भी जाना जाता है. इसको पोषण से जुड़े इसके फायदों के बावजूद लंबे समय तक नजरअंदाज किया गया है. यह फसल क्षेत्रों में भी पनपती है जहां सालाना सिर्फ 400 से 500 मिमी बारिश होती है. किसान ज्वार की खेती से अच्छा-खासा मुनाफा हासिल कर सकते हैं. इसकी उत्पादन लागत 10-15,000 रुपये प्रति एकड़ है और संभावित मुनाफा 45-50,000 रुपये प्रति एकड़ तक हो सकता है. 

ज्‍वार को 'श्री अनाज' भी कहा जाता है ज्‍वार को 'श्री अनाज' भी कहा जाता है
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Jul 05, 2024,
  • Updated Jul 05, 2024, 7:07 PM IST

एक फसल जो सूखे में भी किसानों को फायदा देती है, सुनकर आपको अजीब लगेगा लेकिन वाकई ऐसा है. भारत वह देश है जहां पर फसलें पूरी तरह से मॉनसून और बारिश पर हर निर्भर हैं. ऐसा नहीं होने पर सूखे की स्थिति हो जाती है. एक फसल ऐसी है जो सूखे में भी किसानों के लिए फायदेमंद रहती है. पूरे साल चलने वाले सूखे और कम बारिश को ध्‍यान में रखते हुए कृषि विशेषज्ञ अब ज्वार की खेती की वकालत करने लगे हैं. उनकी मानें तो यह एक ऐसी फसल है जो किसानोंआर्थिक संकट को कम करने और पशुओं के लिए भोजन की कमी दोनों को कम करने का वादा करती है. 

क्‍यों कहते हैं 'श्री अनाज' 

ज्वार को 'श्री अनाज' के तौर पर भी जाना जाता है. इसको पोषण से जुड़े इसके फायदों के बावजूद लंबे समय तक नजरअंदाज किया गया है. झारखंड के पलामू में क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रमोद कुमार के हवाले से न्‍यूज 18 वेबसाइट ने लिखा है कि यह फसल क्षेत्रों में भी पनपती है जहां सालाना सिर्फ 400 से 500 मिमी बारिश होती है. इसकी आर्थिक क्षमता के बारे में डॉ. कुमार ने बताया कि किसान ज्वार की खेती से अच्छा-खासा मुनाफा हासिल कर सकते हैं. इसकी उत्पादन लागत 10-15,000 रुपये प्रति एकड़ है और संभावित मुनाफा 45-50,000 रुपये प्रति एकड़ तक हो सकता है. 

यह भी पढ़ें-ICAR ने तैयार की आम की नई वैरायटी, यूपी-बिहार के किसानों के लिए है बेहद खास

अनाज के साथ-साथ चारा भी 

इसके अलावा, प्रति एकड़ में करीब 20-25 क्विंटल अनाज और 70 क्विंटल चारा मिलता है. डॉ. कुमार ने सलाह दी कि समय और खेती की तकनीक महत्वपूर्ण हैं. उनका कहना था कि ज्वार की बुवाई आदर्श तौर पर 15 जून से 15 जुलाई के बीच की जानी चाहिए. अनुशंसित किस्मों में सीएसबी-17, सीएसबी-20 और सीओ-39 शामिल हैं. इनमें कीड़ों के संक्रमण को रोकने और मनमाफिक फसल को सुनिश्चित करने के लिए ट्राइकोडर्मा का उपयोग करके जरूरी बीज उपचार किया जाता है. 

यह भी पढ़ें-फर्रूखाबाद के किसानों को 50 लाख की कमाई दे रही ये सब्जी, जानिए कैसे

पशुओं को भी मिलता है भोजन 

इसके अलावा, उत्पादकता और स्थिरता को बढ़ाने के लिए, किसानों को ज्वार के साथ अरहर की फसल उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. डॉ. कुमार ने जोर देकर कहा कि यह मिला-जुला दृष्टिकोण न सिर्फ किसानों के लिए भोजन सुरक्षित करता है बल्कि पशुओं के लिए भरपूर चारा भी सुनिश्चित करता है. 
 

MORE NEWS

Read more!