फालसा गर्म क्षेत्रों में उगाए जाने वाला एक तरह का फल है. यह औषधीय गुणों से भरपूर होता है. फालसा फल में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, राख, रेशे, कैल्शियम, आयरन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, सोडियम और विटामिन बी जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं. गर्मियों में फालसा को कच्चा खाने या इसका शरबत बना कर पीने से ठंडक का अहसास होता है. इसके बीजों में लिनोलेनिक एसिड होता है, जो इंसान के शरीर के लिए बेहद उपयोगी है. बुखार, ह्रदय रोग, कैंसर, पेट के रोग, ब्लड प्रेशर, मूत्र विकार, डायबिटीज, दिमागी कमजोरी और सूजन से पीड़ित रोगियों के लिए फालसा रामबाण से कम नहीं है. यही वजह है कि मार्केट में इसकी अच्छी डिमांड रहती है.
अगर किसान फालसा की खेती करते हैं, तो अच्छी कमाई कर सकते हैं. लेकिन फालसा की खेती करने से पहले किसानों को कीटों से बचान का तरीका भी जानना चाहिए. बरसात के मौसम के दौरान फालसा के बाग में खरपतवार तेजी से बढ़ जाते हैं. इसके चलते बाग में कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है, जो फसल को भी नुकसान पहुंचाते हैं. खास कर फालसा पर पांच तरह के कीट सबसे अधिक असर डालते हैं. ऐसे में आज हम इन कीटों और उनसे बचने के तरीके के बारे में जानेंगे.
मिलीबग: यह कीट फासला को बुरी तरह से प्रभावित करता है. इसके प्रकोप से फसल का उत्पादन कम हो जाता है. फल पेड़ पर ही सड़ने लगते हैं. फसलों को इसके प्रकोप से बचाने के लिए बाग में 0.04 प्रतिशत डायजिनॉन का छिड़काव करना चाहिए.
कैटरपिलर: यह एक तरह का पॉलीफैगस कीट है. यह पौधों की छाल को खा जाता है. साथ ही यह फालसा की शाखाओं में सुरंग बना देता है. इससे पौधों को नुकसान पहुंचता है. अगर आप इससे पौधों को बचाना चाहते हैं, तो सुरंग में मिट्टी का तेल या पेट्रोल डालकर उसको बंद कर दें.
लीफ स्पॉट रोग: बरसात के मौसम के दौरान यह रोग फालसा के बाग में लगते हैं. यह पत्तियों को ज्यादा प्रभावित करता है. लीफ स्पॉट रोग लगने पर पत्तियों के दोनों किनारे पर भूरे रंग के दाग हो जाते हैं. ऐसे में पत्तियां धीरे- धीरे सड़ जाती हैं. अगर आप इस रोग से फसल का बचाव करना चाहते हैं, तो डाईथेन जेड 78 को 0.3 प्रतिशत सांद्रता में मिलाकर छिड़काव करें.
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रस्ट: यह रोग भी फालसा के पौधों के लिए घातक है. यह दस्तुरेल्ला ग्रोथिया के चलते होता है. इसमें हल्के भूरे रंग के धब्बे पत्तियों की निचे आ जाते हैं. इससे पत्तियां सड़ने लगती हैं. अगर आप इस रोग से पत्तियों को बचाना चाहते हैं, तो 15 दिन के अंतराल पर डीएम- 45 और सल्फेक्स का स्प्रे बनाकर छिड़काव करें.
पाउडर मिल्ड्यू: यह एक तरह का कवक है, जो पत्तियों पर पाउडर के रूप में जम जाता है. इस रोग से बचाव के लिए बाग में फफूंदनाशक दवा का छिड़काव करें और ओवरहेड वॉटरिंग से बचें.
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