पंजाब में किसान पराली में आग लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं. शनिवार को खेतों में आग लगने की 22 घटनाएं दर्ज की गईं. हालांकि, रविवार को पराली जलाने के मामले में गिरावट आई. रविवार को प्रदेश में कुल 10 पराली जलाने के मामले दर्ज किए गए. इसके साथ ही गेहूं की कटाई के इस मौसम में आग लगने की कुल संख्या 112 हो गई है. पिछले साल यह आंकड़ा 200 था, जबकि 2022 में अब तक यह 3,000 था. यानी पराली जलाने में मामले धीरे-धीरे पंजाब में कम हो रहे हैं.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 में, पंजाब में पराली जलाने के 11,701 मामले सामने आए थे, जबकि 2020 में यह संख्या 13,420 थी. इसी तरह 2021 में 10,100 घटनाएं दर्ज की गईं, इसके बाद 2022 में 14,511 घटनाएं और 2023 में 11,353 घटनाएं हुईं. खास बात यह है कि खेत में आग लगने की घटनाएं 16 अप्रैल से 20 मई तक की हैं. लेकिन इस साल पीपीसीबी के अधिकारियों ने कहा, गेहूं की पराली की ऊंची कीमत के कारण हमें पराली जलाने की घटनाओं में भारी गिरावट की उम्मीद है.
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वहीं, बीते दिनों पंजाब में पराली जलाने की खबर सामने आई थी तो एक्सपर्ट का कहना था कि गेहूं के अवशेषों को अब पुश चारे के रूप में उतना इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. इससे पराली जलाने के मामले बढ़ रहे हैं. हालांकि, पहले गेहूं के अवशेषों का उपयोग मवेशियों के चारे के रूप में किया जाता था. लेकिन अब किसानों द्वारा विकल्प के रूप में ग्रीष्मकालीन और वसंत मक्के को प्राथमिकता दी जाती है. वसंत और ग्रीष्मकालीन मक्के की खेती में पानी की अधिक खपत होती है. इसका राज्य में क्षेत्रफल भी हर साल बढ़ रहा है.
वसंत मक्के की फसल फरवरी के दौरान और ग्रीष्मकालीन मक्के की फसल अप्रैल में बोई जाती है और जून के आसपास पक जाती है. इसके लिए लगभग 25 चक्र पानी की आवश्यकता होती है. इसे किसानों द्वारा पसंद की जाने वाली नकदी फसल माना जाता है और पशुपालकों के बीच इसकी अत्यधिक मांग है. यही वजह है कि किसान ग्रीष्मकालीन मक्के की बुवाई करने के लिए तेजी से गेहूं की पराली जला रहे हैं.
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