दलहनी फसलों में मटर का प्रमुख स्थान है. इसकी खेती से भी किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. इसकी कुछ ऐसी किस्में हैं, जिसमें न कीट लगते हैं और न ही रोग होता है. इन किस्मों की खेती से किसान अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों कमा सकते हैं. मटर की बाजार में हमेशा मांग बनी रहती है. इसकी कच्ची फलियों का उपयोग सब्जी के रुप में उपयोग किया जाता है. यह स्वास्थ्य के लिए भी काफी फायदेमंद होती है. पकने के बाद इसकी सुखी फलियों से दाल बनाई जाती है.
मटर की खेती के लिए अक्टूबर-नवंबर का समय उपयुक्त माना जाता है. खरीफ सीजन शुरू हो चुका है. ऐसे में किसान मटर की सही किस्मों का चयन कर खेती करेंगे तो अच्छी पैदावार मिलेगी. मटर की उपज इसकी विभिन्न किस्मों पर निर्भर करता है. किसानों को खेती में फायदे हों, इसलिए मटर की कई किस्में विकसित की गई हैं. किसान इन किस्मों का चुनाव कर अच्छा उत्पादन और गुणवत्ता दोनों पा सकते हैं.
इस किस्म के पौधे छोटे लगभग 42 से 43 सेंटीमीटर और हरे होते हैं. बुआई के लगभग 35 दिन बाद 7 से 8 गांठ से फूल आने लगते हैं. इसकी फलियां हल्की मुड़ी होती हैं और उनमें 7 से 8 बीज होते हैं. पहली तुड़ाई बुआई के लगभग औसतन 55 दिन बाद की जा सकती है.
यह मध्यम समय में तैयार होने वाली बौनी किस्म है. इसकी फलियां भरी हुई होती हैं और चिकनी, सीधी, मध्यम आकार की 6 से 7.5 सेंटीमीटर और हल्के हरे रंग की होती है. यह किस्म चूर्णिल आसिता रोग के प्रति सहनशील मानी जानती है. इसके बीज सिकुड़े हुए हरे रंग के होते हैं. इसकी औसत पैदावार 70 से 75 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पाई गई है.
मटर इस किस्म की बुवाई के 65 से 70 दिन बाद इसकी फलियां तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है. फलियां हलके हरे रंग की लगभग 7 सेंटीमीटर लंबी और मोटी होती है. दाने आकार में बड़े, मीठे और झुर्रीदार होते हैं. इसकी औसत पैदावार 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.
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इसकी औसत उपज 1731 किलोग्राम प्रति एकड़ पाई गई है. किसानों के खेतों में किए गए परीक्षणों में भी इसकी औसत उपज 2370 किलोग्राम प्रति एकड़ पाई गई. इस किस्म के 100 दानों का वजन लगभग 20 ग्राम है. यह प्रजाति मटर की प्रमुख बीमारी चूर्णी फफूदी और गेरुई रोगों के लिए और फली छेदक कीट के लिए अवरोधी है.
वर्ष 2013 में विकसित की गई यह किस्म उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में अगेती बुवाई के लिए उपयुक्त है. बुवाई के 50 से 55 दिनों बाद फसल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है. इसकी प्रत्येक फली से 6 से 7 दाने निकलते हैं. प्रति एकड़ जमीन में खेती करने पर 20 से 21 क्विंटल हरी फलियां प्राप्त होती हैं.
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