देश में किसान अब धीरे-धीरे जागरूक हो रहे हैं. पारंपरिक फसलों के साथ-साथ वे कम समय में बढ़िया मुनाफा देने वाली फसलों की भी खेती करने लगे हैं. इस दौरान किसान अब सीजनल सब्जियों की खेती की तरफ तेजी से रुख कर रहे है. परवल भी कुछ इसी तरह की फसल है.परवल का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है. यह सब्जी देखने में तो छोटी है, लेकिन सेहत के लिए इसके बड़े फायदे हैं. परवल भारत की बहुत ही प्रचलित सब्जी है. इसकी खेती से भी किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. इसके पौधो को लगाने के लिए जून और अगस्त के महीने को उपयुक्त माना जाता है. इसके अतिरिक्त अक्टूबर और नवम्बर के माह में भी इसकी फसल को उगाया जा सकता है.
यदि परवल को वैज्ञानिक सुझावों के साथ इसके पौधों का ध्यान रखा जाये तो लगभग चार साल तक 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्राप्त होती है. वर्तमान समय में किसान परवल की उन्नत खेती करके काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. परवल बहुवार्षिक सब्जी होने के कारण इसकी खेती वर्ष भर की जाती हैं. बाजार में हमेशा इसकी मांग बनी रहती है. ऐसे में किसानों के लिए बथुआ की खेती फायदे का सौदा साबित हो सकती हैं. किसान सही तरीके के इसकी खेती कर अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों ले सकते हैं. परवल को बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल में सामान्य तौर पर उगाया जाता है. इनके अलावा राजस्थान, मध्यप्रदेश, असम, महाराष्ट, गुजरात में भी ये कुछ क्षेत्रों में परवल की खेती की जाती है.
परवल की खेती के लिए उपजाऊ, बलुई दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है, तथा भूमि का P.H.मान भी सामान्य होना चाहिए.परवल की अच्छी पैदावार के लिए बारिश, गर्म और आद्र जलवायु को उपयुक्त माना जाता है.
बिहार शरीफ, हिल्ली, डंडाली, नरेंद्र परवल 260, नरेंद्र परवल 307, फैजाबाद परवल 1, 2, 3, 4, स्वर्ण रेखा, स्वर्ण अलौकिक, निमियां, सफेदा, सोनपुरा, संतोखबा, तिरकोलबा, गुथलिया इत्यादि परवल की उन्नत प्रजातियां है.
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परवल के पौधो को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. इसकी प्रथम सिंचाई को पौध रोपाई के तुरंत बाद कर देना चाहिए. इसके बाद 12 से 15 दिन के अंतराल में पानी देते रहना चाहिए. मेड़ पर लगाए गए पौधो की सिंचाई को ड्रिप सिंचाई विधि द्वारा करना चाहिए. बारिश के मौसम में इसके पौधो को जरूरत पड़ने पर ही पानी देना चाहिए.
परवल की बुवाई कलम एवं बीजों द्वारा होती है.परवल वर्षानुवार्शी लता होने के कारण इनकों काफी मात्रा में तत्वों की अवश्यकता होती है। परवल की खेती के लिए 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद खेत तैयारी के समय आखिरी जुताई में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। इसके साथ ही 90 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर देना चाहिए. नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा गड्ढों या नालियों में खेत तैयारी के समय देना चाहिए.
बुवाई या रोपाई के बाद परवल के पौधे तीन से चार माह में पैदावार देना आरम्भ कर देते हैं. परवल के पौधे प्रथम वर्ष में 70 से 90 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के दर से पैदावार देते हैं. लेकिन पूर्ण रूप से विकसित हो जाने के बाद यह उपज 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से पैदावार हो जाती है. पूर्ण रूप से विकसित परवल के पौधे 4 वर्ष तक पैदावार देते हैं. परवल की विभिन्न प्रकार की किस्मों में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से तकरीबन 150 से 200 क्विंटल की पैदावार पाई जाती है. इसका बाजारी भाव 40 रुपए किलो के आसपास होता है. इस तरह से किसान भाई एक हेक्टेयर के खेत में परवल की खेती कर लगभग 8 लाख रुपए सालाना तक की कमाई कर सकते हैं.
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