प्याज की निर्यातबन्दी के लगभग 5 महीने होने वाले हैं और अभी तक सरकार इसे खत्म करने को लेकर गंभीर नहीं दिखाई दे रही है. लोकसभा चुनाव के बावजूद इसे खत्म करने के आसार नहीं नजर आ रहे हैं. इसलिए बाजार में प्याज के दाम काफी गिरे हुए हैं. किसानों को उम्मीद थी कि रबी सीजन के दौरान वह अच्छी कमाई करेंगे लेकिन अनिश्चितकालीन निर्यात बन्दी के फैसले ने उनके सपनों पर पानी फेर दिया है. इस वक्त राज्य की तमाम मंडियों में किसान सिर्फ एक, दो और पांच रुपये के न्यूनतम दाम पर ब्याज बचने के लिए मजबूर हैं क्योंकि एक्सपोर्ट हो नहीं रहा है. ऐसे में अगर वह ज्यादा दिन प्याज स्टोर भी करते हैं तो उसे सड़ने की संभावना है. इसलिए वह चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी सरकार एक्सपोर्ट खोल दे.
महाराष्ट्र एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड के अनुसार 30 अप्रैल को सोलापुर और राहुरी में किसानों को सिर्फ एक रुपये किलो पर प्याज बेचना पड़ा. इसी तरह राहता मंडी में सिर्फ दो रुपये किलो पर प्याज बेचनी पड़ी. धुले और पथरदी में भी किसानों को सिर्फ दो रुपये किलो का ही दाम मिला. मंगलवेढा में 1 मई को 2.5 रुपये किलो पर किसानों ने प्याज बेचा. हालांकि भुसावल, अकोला और जुन्नर सहित कुछ मंडियों में न्यूनतम दाम 10 रुपये किलो तक का भी मिला है.
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महाराष्ट्र कांदा उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि कि सरकार प्याज को एमएसपी के दायरे में ले आए और रिटेलर्स के लिए एमआरपी फिक्स कर दे. इससे किसानों को भी अच्छा दाम मिलेगा और उपभोक्ताओं को भी महंगाई का सामना नहीं करना पड़ेगा. हम चाहते हैं की सरकार प्याज की उत्पादन लागत पर मुनाफा तय करके इसका न्यूनतम दाम तय कर दे. आजादी के बाद से अब तक प्याज को लेकर कोई नीति नहीं बनी जबकि हर साल इसको लेकर हाहाकार मचती है. कभी दाम बहुत कम हो जाता है और कभी बहुत ज्यादा, इसलिए अब समय है कि सरकार इसको लेकर कोई ठोस नीति बनाए, जिससे किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को राहत मिले.
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