निर्यातबंदी खत्म होने के 12 दिन बाद भी महाराष्ट्र की मंडियों में प्याज के दाम में कोई सुधार नहीं दिख रहा है. सोलापुर के बाद अब राहुरी मंडी में भी किसानों को मिलने वाले प्याज का न्यूनतम दाम सिर्फ 100 रुपये क्विंटल रह गया है. सोलापुर में तो लगातार किसानों को न्यूनतम दाम सिर्फ 100 रुपये क्विंटल ही मिल रहा है. किसानों का कहना है कि जब तक सरकार 550 डॉलर प्रति टन न्यूनतम निर्यात मूल्य और उस पर लगे 40 प्रतिशत शुल्क को खत्म नहीं करेगी तब तक किसानों को निर्यात खोलने का कोई लाभ नहीं मिलेगा. क्योंकि महंगा होने के कारण निर्यात खुलने के बावजूद प्याज निर्यात नहीं हो पा रहा है. इसलिए राज्य की मंडियों में प्याज की आवक बढ़ गई है, जिससे दाम गिर गए हैं. किसान इस चिंता में डूबे हुए हैं कि खरीफ के बाद रबी सीजन में भी दाम सही नहीं मिल रहा है ऐसे में आगे वो खेती कैसे करेंगे.
किसानों को उम्मीद थी कि जब निर्यातबंदी खत्म होगी तब राज्य की किसी भी मंडी में किसी किसान को 1 और 2 रुपये किलो के दाम पर प्याज नहीं बेचना पड़ेगा, लेकिन ऐसी स्थिति नहीं बनी. सरकार ने 4 मई को निर्यातबंदी खत्म की. तब 5 और 6 मई को दाम बढ़े थे लेकिन उसके बाद फिर पहले की तरह गिरावट आ गई. केंद्र सरकार ने प्याज की महंगाई को कम करने के लिए 7 दिसंबर 2023 को प्याज की निर्यातबंदी कर दी थी. उससे पहले दाम कंट्रोल में करने के लिए 800 डॉलर प्रति टन की एमईपी लगाई थी. उससे भी पहले अगस्त 2023 में 40 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाया था.
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महाराष्ट्र कांदा उत्पादक संगठन के अनुसार 2014 में ही प्याज की उत्पादन लागत लगभग साढ़े सात रुपये किलो आती थी. उसके बाद एग्रीकल्चर इनपुट की लागत बहुत तेजी से बढ़ी है. इसलिए अब प्रति किलो लागत 16 से 20 रुपये किलो तक हो गई है. जबकि महाराष्ट्र की अधिकांश मंडियों में इस समय प्याज का दाम 1, 2 रुपये किलो से लेकर 15-16 रुपये किलो तक ही मिल रहा है. जिसकी वजह से किसानों को प्याज की खेती में घाटा हो रहा है. घाटे के कारण ही महाराष्ट्र के किसान प्याज की खेती को अब कम कर रहे हैं.
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