बिहार में मॉनसून की बेरुखी से किसान परेशान हैं. राज्य में बारिश अभी तक सामान्य से औसत 28 प्रतिशत तक कम हुई है. इसका मिला जुला असर इस बार मखाने की खेती पर भी देखने को मिला है. लेकिन इस साल मखाने को अच्छा दाम मिलने से वे काफी खुश हैं. हालांकि बारिश की कमी की वजह से मखाने की फसल को बचाए रखने के लिए किसानों को काफी मेहनत करनी पड़ी है. वहीं सूबे के कई ऐसे भी किसान हैं जिनकी फसल मॉनसून की चपेट में आने से प्रभावित हुई है. वही कई किसान संसाधनों में समृद्ध होने के चलते अपनी फसल को बचाने में कामयाब रहे हैं.
बिहार के मखाने को जीआई टैग मिलने के बाद से किसानों ने इस खेती की ओर रुचि दिखाना शुरू किया है. सूबे में करीब 35 से 36 हजार हेक्टेयर में मखाने की खेती होती है. पिछले साल की तुलना में इस साल करीब प्रति क्विंटल तीन गुना अधिक मखाने का दाम मिल रहा है. 2021 में 18 हजार रुपये प्रति क्विंटल मखाना का गुरिया (बीज) बिका था. वहीं पिछले साल 06 हजार रुपये प्रति क्विंटल भाव रहा था. राज्य के दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज में मखाने की खेती होती है.
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मखाने की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि इस साल अधिक गर्मी होने की वजह से कई किसानों ने मखाने की खेती नहीं की है. अररिया जिले के किसान प्रधान बेसरा कहते हैं कि इस बार बारिश नहीं होने से मखाने की खेती प्रभावित हुई है. जिनके पास सिंचाई की बेहतर सुविधा नहीं थी, उन किसानों का उत्पादन अच्छा नहीं गया है. पिछले साल की तुलना में इस बार उत्पादन आधा हुआ है. लेकिन सुकून की बात ये है कि दाम अच्छा मिल रहा है.
वहीं दरभंगा जिले के किसान राम कुमार साह ने इस बार एक हेक्टेयर में मखाने की खेती की है. वे बताते हैं कि उन्होंने समय से खेत में पानी और दवाओं का छिड़काव किया है. इसके चलते उत्पादन 25 क्विंटल से अधिक मखाने का गुरिया हुआ है जो पिछले साल की तुलना में इस बार अच्छी कमाई करवा रहा है. इस बार 15000 से 17000 रुपये प्रति क्विंटल मखाना के गुरिया का भाव है. वहीं लावा का भाव 400 से 500 सौ रुपये प्रति किलो मिल रहा है.
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भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय,पूर्णिया के कृषि वैज्ञानिक डॉ अनिल कुमार कहते हैं कि इस बार मॉनसून का थोड़ा असर रहा है. लेकिन जो किसान बेहतर प्रबंधन और कृषि वैज्ञानिकों के संपर्क में रहे हैं, उनकी फसल अच्छी रही है. वहीं इस साल बढ़िया दाम किसानों को मिल रहा है. आगे वे कहते हैं कि अगर किसान मखाने की खेती में सबौर-1 किस्म का चयन करते हैं.तो उनका उत्पादन साधारण बीजों की तुलना में अधिक मिलेगा. सबौर-1 की औसतन उपज प्रति हेक्टेयर 30 से 32 क्विंटल है. साथ ही 50 से 60 प्रतिशत लावा प्राप्त होता है. वहीं साधारण बीज में 30 से 40 प्रतिशत ही लावा निकलता है.