
बिहार के मिथिलांचल की धरती पर उपजने वाला न्यूट्रीशियन व प्रोटीन से भरपूर मखाना की मांग देश सहित विश्व में बड़े पैमाने पर है. मखाना अपनी गुणवत्ता की वजह से किचन में पैठ बना चुका है. ये जितना स्वास्थ्यवर्धक है. वहीं इसकी खेती उतनी ही कठिन है. नर्सरी से लेकर हार्वेस्टिंग तक इसकी खेती में किसानों को काफी मेहनत करनी पड़ती है. मखाना के किसान धीरेंद्र कुमार कहते हैं कि मखाना की खेती धान की खेती की जैसा ही है. नवंबर में नर्सरी लगाने से लेकर सितंबर महीने से मखाने के बीज की कटाई शुरू हो जाती हैं. मखाना की खेती कई तरीके से की जा रही है, जिसमें मुख्य रूप से तालाब एंव खेत में बड़े स्तर पर होती है.
देश में मखाने की 80 फीसदी खेती अकेले बिहार में की जाती है, क्योंकि यहां की जलवायु इसके लिए सबसे उपयुक्त है. इसके साथ ही असम, मेघालय और उड़ीसा में भी इसकी खेती की जाती है. वहीं केंद्र सरकार के द्वारा मिथिला के मखाना को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग मिल चुका है.
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किसान धीरेंद्र कुमार कहते हैं कि मखाना की खेती करने से पहले इसकी नर्सरी तैयार की जाती है. ये नर्सरी खेत में मखाना की खेती करने के लिए तैयार की जाती है. इसकी खेती के लिए चिकनी एवं चिकनी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त है. इसका नर्सरी नवंबर से दिसंबर तक डाली जाती है. वहीं कुछ किसान मई महीने में खेती करने के लिए जनवरी से फरवरी में भी नर्सरी डालते हैं. खेत में नर्सरी डालने से पहले खेत की 2 से 3 बार गहरी जुताई की जाती है और करीब डेढ़ से दो फीट तक पानी भरा जाता है. वहीं एक एकड़ में खेती करने के लिए करीब 12 से 13 किलो बीज डाला जाता है. साथ ही जितने हिस्से में खेती करनी है. उसके बिस्वां हिस्सा में नर्सरी तैयार की जाती है. दिसंबर महीने में नर्सरी डालने के बाद अप्रैल तक पौधों की रोपाई हो जानी चाहिए.
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किसान तक से बात करते हुए धीरेंद्र कुमार कहते हैं कि जब मखाना का नवजात पौधे का पत्ता प्लेट के जैसा हो जाता है. तो वह उस साइज में रोपाई के लिए उपयुक्त रहता है. मखाने के स्वस्थ और नवजात पौधे के जड़ को मिट्टी के अंदर दबाना चाहिए. और उसकी कली को पानी के अंदर रखना चाहिए. साथ ही पत्ता डूबना नहीं चाहिए. नवजात पौधा लगाते समय पंक्ति से पंक्ति और पौधों से पौधों की दूरी 1.20 मीटर X 1.25 मीटर तक होनी चाहिए. वहीं बुवाई के 2 महीने बाद बैंगनी रंग के फूल पौधों पर दिखने लगते हैं. उसके करीब 40 दिन बाद फल पक कर फूट जाता है और गुरिया नीचे बैठने लगते है. इसके बाद बीज की कटाई होती है और उसके गुरिया (मखाना का बीज) को गर्म करने के बाद एक से दो दिन तक ठंडा किया जाता है और फिर गर्म करके गुरिया से मखाना प्राप्त किया जाता है.
खेत में मखाना की खेती के लिए एक से दो फीट पानी होना जरूरी है. वहीं एक एकड़ खेत से करीब 12 क्विंटल तक गुरिया (मखाना का बीज) निकलता है. इस दौरान खेती करने में कुल 70 से 75 हजार रुपए तक खर्च आ जाता है.
तालाब में मखाना की खेती पारंपरिक तकनीक है. इसमें सीधे तालाब में ही बीज का छिड़काव होता है. वहीं बीज डालने के करीब डेढ़ महीने बाद पानी में बीज उगने लगता है. वहीं 60 से 65 दिन बाद पौधे जल की सतह पर दिखने लगते हैं. उस समय पौधों से पौधों और पंक्ति से पंक्ति के बीच करीब एक मीटर की दूरी रखनी चाहिए. इसके अन्य अतिरिक्त पौधे निकाल देनी चाहिए. इस तकनीक के साथ विशेष रूप से मछुआ समुदाय खेती करता था, लेकिन आज के समय में सभी लोग तालाब में मखाना की खेती कर रहें हैं. वहीं मखाना की खेती के साथ मछली पालन भी किया जा रहा है. इसमें तालाब का दसवां हिस्सा खाली रखते हैं, जिससे की मछली सांस ले सके. तालाब में मछली पालन करते समय इसमें ग्रास कार्प मछली नहीं डालना चाहिए. ये घास व हरा चारा भी खाती है, जिससे ये मखाना के पौधों को भी खा जाएगी.
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