महाराष्ट्र के बीड में एक ख़ास तरह का सीताफल उगाया जा रहा है. इसका नाम है एपल सीताफल. यह दिखने में बिलकुल सेब की तरह है, इसलिए नाम भी एपल सीताफल दिया गया है. बीड के एक अनुसंधान केंद्र में यह वैरायटी तैयार की गई है. इस सीताफल की खासियत है कि इसमें बीज न के बराबर हैं. सीताफल की बाक़ी वैरायटी में 25 से 30 बीज होते हैं. लेकिन एपल सीताफल में केवल चार बीज होते हैं. इस वजह से इस सीताफल की बहुत डिमांड है. अनुसंधान केंद्र के एक्सपर्ट्स का कहना है कि यही डिमांड किसानों को कम लागत में लाखों की कमाई दिलाएगी. आइए पूरी खबर डिटेल में जानते हैं.
वैसे तो बीड जिले को महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त इलाके के तौर पर जाना जाता है. वहीं बीड के अंबाजोगाई में सीताफल अनुसंधान केंद्र हैं. सीताफल अनुसंधान केंद्र में 21 प्रकार के अलग-अलग सीताफल तैयार किए गए हैं. किसान तक से बात करते हुए ऐसा दावा अनुसंधान केंद्र के एक्सपर्ट डॉ. गोविंद ने दावा किया है कि यहां तैयार किया गया एपल सीताफल देश में कहीं पर भी देखने नहीं मिलेगा.
वहीं इस एपल सीताफल की एक खासियत ये भी है कि इसमें अन्य किस्मों से बहुत कम बीज हैं. इसी तरह ये फल खाने के लिए भी उपयोगी है. यह इस क्षेत्र का एक प्रसिद्ध सीताफल है. वहीं इस सीताफल को सरकार से पेटेंट भी प्राप्त हुआ है.
ये अनुसंधान केन्द्र 1997 में स्थापित हुआ था. इस सीताफल अनुसंधान केंद्र का लाभ किसानों को मिल रहा हैं. 2016 से आज तक किसानों ने सीताफल अनुसंधान केंद्र के माध्यम से 300 हेक्टेयर से अधिक जगह में इसके कलम पौधे लगाए हैं.
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अनुसंधान केन्द्र द्वारा बनाये गए सीताफल के पौधे राज्य के जलगांव, सोलापूर, नागपूर, उस्मानाबाद, लातूर, बीड, नाशिक,नांदेड के किसानों ने लगवाए हैं. इसके अलावा दूसरे राज्यों के किसान भी यहां से पौधे ले जाते हैं. इसमें आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं. 2016 से आज तक इस अनुसंधान केन्द्र द्वारा तकरीबन 08 लाख कलम पौधे तैयार किए हैं. इससे केंद्र को 54 लाख का फंड मिला हैं.
अनुसंधान केंद्र के एक्सपर्ट डॉ. गोविंद ने कहा कि अगर बीड के किसान इन सीताफलों का उत्पादन करते हैं,तो उन्हें नुकसान नहीं होगा. उन्होंने कहा कि ये सीताफल अनुसंधान केंद्र आगे जाकर प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में सीताफल की प्रक्रिया शुरू करेगा. वहीं इस सीताफल के आइसक्रीम, रबड़ी, कुल्फी बनाने से किसानों को दुगना आय मिलेगा. इसके अलावा उन्होंने बताया कि सीताफल का उत्पादन लेने के लिए बहुत ही कम पानी लगता है, और उत्पादन अच्छा मिलता है.
राज्य सरकार की और से अभी इस अनुसंधान केंद्र को तीन साल के लिए 3 करोड़ 92 लाख रुपये की राशि मंजूर की गई है. केंद्र को हर साल 1 करोड़ 30 लाख रुपये दिए जाएंगे. इस निधि से अनुसंधान केंद्र की ओर से प्रयोग के लिए सामान खरीदा जाएगा.