कर्नाटक के किसान टमाटर की कीमतों में भारी गिरावट से संकट में हैं. यहां के मैसूर और उसके आसपास के इलाकों के किसानों को टमाटर की गिरती हुई कीमतों ने खासा परेशान कर दिया है. कीमतों में गिरावट से परेशान कई किसानों को अपनी उपज को सड़कों के किनारे और एपीएमसी यार्ड में फेंकना पड़ा. वहीं कुछ मजबूरी में इसे औन-पौने दाम पर बेचने के लिए मजबूर हैं. हालांकि कुछ समय के लिए थोक खरीद के जरिये से स्थिति सुधरी थी मगर फिर भी टमाटर की कीमतों में उतार-चढ़ाव जारी.
थोक खरीद के बाद टमाटर की बाद यह 12 रुपये से 15 रुपये प्रति किलोग्राम के करीब पहुंच गया. किसान थोक में खरीदने पर इसे 8 रुपये प्रति किलोग्राम से भी कम कीमत पर बेचने के लिए तैयार थे. सप्लाई ज्यादा और मांग कम होने की वजह से कीमतों में भारी गिरावट आई. कई किसानों को अपनी उपज को फेंककर घर लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा और उन्हें नुकसान उठाना पड़ा. किसान उत्पादक कंपनी रायथा मित्रा के जिला सचिव और किसान बरदानपुरा नागराज ने द हिंदू से कहा कि खेती की लागत विधि और इनपुट लागत के आधार पर 60,000 रुपये से 1 लाख रुपये प्रति एकड़ के बीच है. किसानों को यह कीमत भी निकाल पाना मुश्किल हो गया है.
नागराज के अनुसार किसानों के लिए अपनी फसल की कटाई और परिवहन लागत उठाना भी मुश्किल और महंगा लग रहा है. वहीं कई किसान तो मजदूरी बचाने के लिए फसल की कटाई भी नहीं कर रहे हैं, जिससे उनका नुकसान कम हो. उन्होंने कहा कि किसानों को एक तरफ प्रकृति की मार झेलनी पड़ रही है तो दूसरी तरफ बाजार भाव में उतार-चढ़ाव से उनका जीवन दयनीय हो गया है. नागराज की मानें तो टमाटर जैसी जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के लिए कोल्ड स्टोरेज के बुनियादी ढांचे की कमी ने स्थिति को और खराब कर दिया है.
मैसूर से टमाटर आमतौर पर महाराष्ट्र के नासिक के साथ-साथ केरल और तमिलनाडु सहित दूरदराज के बाजारों में भेजा जाता है. नागराज ने बताया कि पिछले कुछ दिनों में स्थानीय फसल की उपलब्धता और पर्याप्त आपूर्ति के कारण तमिलनाडु से मांग में भारी गिरावट आई है. इससे मैसूर के बाजारों में अधिकता हो गई है और इस वजह से कीमतों में भारी गिरावट आई है. जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के लिए कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की अनिवार्यताओं के अलावा, किसानों ने सरकार से क्षेत्र में फलों और सब्जियों के वैल्यू एडीशन के लिए प्रोसेसिंग इंडस्ट्री को प्रोत्साहित करने की भी मांग की है.
कुछ किसानों ने तो टमाटर के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) शुरू करने की भी मांग कर डाली है. उनका कहना है कि अगर ऐसा होता है तो किसानों को आपूर्ति-मांग में उतार-चढ़ाव से बचाने में मदद मिलेगी. किसानों का मानना है कि हाल ही में हुई बारिश का फसलों पर अभी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन बहुत ज्यादा बारिश से आने वाले दिनों में कई चरणों में फसल की उपज कम हो जाएगी. उन्हें चिंता है कि नीति-पहलों के बिना कार्रवाई में तब्दील होने पर किसान प्रकृति की अनिश्चितताओं के कारण फसल के नुकसान का खामियाजा भुगतते रहेंगे. उसके बाद आपूर्ति-मांग के बेमेल होने के कारण कीमतों में गिरावट आएगी, जिससे वे और भी अधिक वित्तीय संकट में फंस जाएंगे.
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