अंगूर की खेती को बढ़ावा देने के साथ ही उपज की समय पर बिक्री के लिए ICAR के अंगूर संस्थान ने इंडो फ्रूट्स डेवलपमेंट काउंसिल (IFDC) से हाथ मिलाया है. इससे महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों के अंगूर उत्पादकों की उपज को सही समय पर बाजार उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी. जबकि, उपज का दाम भी अच्छा मिलने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. दोनों संस्थान ने एग्री वैल्यू चेन विकसित करने के लिए एकसाथ आए हैं.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान का राष्ट्रीय अंगूर शोध संस्थान (ICAR-NRCG) उन्नत अंगूर किस्मों को विकसित करता है. इसके साथ ही जलवायु अनुकूल उत्पादन और मौसम, कीट से लड़ने में सक्षम वैराइटी पर भी जोर रहता है. अब आईसीएआर-एनआरसीजी ने इंडो-फ्रूट्स डेवलपमेंट काउंसिल पुणे के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं. आईएफडीसी महाराष्ट्र सरकार की स्मार्ट परियोजना के तहत एक अग्रणी पहल है. इस साझेदारी का उद्देश्य अंगूर वैल्यू चेन में स्टेकहोल्डर्स की सहयोग क्षमता का निर्माण और विकास करना है.
राष्ट्रीय अंगूर शोध संस्थान (ICAR-NRCG) के निदेशक डॉ. कौशिक बनर्जी ने संस्थान की चल रही शोध कार्यों की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि उत्तम किस्म के अंगूर उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिक नई हाईब्रिड और जलवायु अनुकूल किस्मों पर काम कर रहे हैं. अंगूर शोध संस्थान ने अंगूर की मंजरी नवीन किस्म समेत मंजरी मेडिका, मंजरी किशमिश और ए-18/3 उन्नत किस्मों को विकसित किया है. संस्थान इसके अलावा बीज रहित और बीजयुक्त टेबल अंगूर की किस्में, वाइन या जूस कल्टीवर्स, रूटस्टॉक किस्मों को भी विकसित किया है.
इंडो-फ्रूट्स डेवलपमेंट काउंसिल (IFDC) के निदेशक और भारतीय अंगूर उत्पादक संघ के अध्यक्ष सोपान कंचन ने आईएफडीसी-एनआरसीजी के सहयोग को अंगूर उत्पादन और बिक्री के भविष्य के लिए बेहतर बताया. IFDC बालासाहेब ठाकरे कृषि व्यवसाय और ग्रामीण परिवर्तन यानी स्मार्ट परियोजना का हिस्सा है. यह पहली कमोडिटी स्टीवर्डशिप काउंसिल है, जिसे महाराष्ट्र सरकार और विश्व बैंक का समर्थन है.
दोनों संस्थानों के साथ आने से अंगूर उत्पादकों तक उन्नत किस्मों की पहुंच आसान होगी. इसके साथ ही अंगूर के रोगों, कीट नियंत्रण आदि में सहूलियत मिलेगी. जबकि, उत्पादन के बाद अंगूर वैल्यू चेन में स्टेकहोल्डर्स को एक साथ लाकर अंगूर इकोसिस्टम को बढ़ावा देना और समर्थन बढ़ेगा. जबकि, किसानों को अधिक लाभ, बाजार पहुंच, तकनीकी सहायता देने के साथ ही कटाई के बाद फसल नुकसान में गिरावट लाना भी शामिल है.