केंद्र सरकार खरीफ सीजन में दालों की बुवाई के लिए प्रोत्साहित कर रही है, ताकि घरेलू उत्पादन बढ़ाया जा सके और आयात निर्भरता कम हो. ऐसे में खरीफ सीजन में अरहर की बुवाई करने वाले किसानों को अपनी फसल को कीटों से बचाव जरूरी है. इसके लिए सही मात्रा में दवाओं का छिड़काव या घरेलू उपचार का सही तरीका पता होना चाहिए. आइये समझते हैं कि अरहर की खेती में कौन से कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं और उनसे कैसे बचा जा सके.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि विज्ञान केंद्र के अनुसार खरीफ सीजन में अरहर की बुवाई के लिए जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के दूसरे सप्ताह तक का समय सही रहता है. किसान खेत तैयार करके बुवाई कर देते हैं. लेकिन, फसल की कीटों से सुरक्षा बहुत जरूरी है. कृषि विज्ञान केंद्र की गाइडलाइन के अनुसार किसान खासकर दो कीटों हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा यानी फली भेदक और फली मक्खी यानी मेलानाग्रोमाइजा आब्टूसा कीट से फसल को बचाना जरूरी है.
अरहर फसल को सबसे ज्यादा नुकसान हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा कीट पहुंचाता है. इसे फली भेदक कीट के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह फली को काटकर खा जाता है या उसे बर्बाद कर देता है. यह कीट फसल को 25 से 30 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा देता है. मादा कीट पतंगा अपने अंडे अरहर की फलियों, फूलों तथा कोमल फलियों पर फैला देती है. अंडों से 2 से 3 दिनों में गिड़ारें निकलती हैं, जो 4-5 दिनों के दौरान फलियों और उसके अंदर के दानों को खा जाती है. यह कीट ही
फली मक्खी यानी मेलानाग्रोमाइजा आब्टूसा कीट का प्रकोप बिहार समेत कई राज्यों में अधिक रहता है. इस कीट से प्रति वर्ष फसल को 20 से 60 प्रतिशत तक नुकसान होता है. यह कीट अरहर की उस किस्म को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है जो देर से पकती हैं.