Arhar Farming: अरहर की फसल को चौपट कर देते हैं ये दो कीट, बचने के लिए किसान अपनाएं ये तरीका

Arhar Farming: अरहर की फसल को चौपट कर देते हैं ये दो कीट, बचने के लिए किसान अपनाएं ये तरीका

अरहर फसल की कीटों से सुरक्षा बहुत जरूरी है. कृषि विज्ञान केंद्र की गाइडलाइन के अनुसार किसान खासकर दो कीटों हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा यानी फली भेदक और फली मक्खी यानी मेलानाग्रोमाइजा आब्टूसा कीट से फसल को बचाना जरूरी है. 

अरहर फसल की कीटों से सुरक्षा बहुत जरूरी है.
क‍िसान तक
  • Noida,
  • May 01, 2024,
  • Updated May 01, 2024, 7:06 PM IST

केंद्र सरकार खरीफ सीजन में दालों की बुवाई के लिए प्रोत्साहित कर रही है, ताकि घरेलू उत्पादन बढ़ाया जा सके और आयात निर्भरता कम हो. ऐसे में खरीफ सीजन में अरहर की बुवाई करने वाले किसानों को अपनी फसल को कीटों से बचाव जरूरी है. इसके लिए सही मात्रा में दवाओं का छिड़काव या घरेलू उपचार का सही तरीका पता होना चाहिए. आइये समझते हैं कि अरहर की खेती में कौन से कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं और उनसे कैसे बचा जा सके. 

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि विज्ञान केंद्र के अनुसार खरीफ सीजन में अरहर की बुवाई के लिए जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के दूसरे सप्ताह तक का समय सही रहता है. किसान खेत तैयार करके बुवाई कर देते हैं. लेकिन, फसल की कीटों से सुरक्षा बहुत जरूरी है. कृषि विज्ञान केंद्र की गाइडलाइन के अनुसार किसान खासकर दो कीटों हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा यानी फली भेदक और  फली मक्खी यानी मेलानाग्रोमाइजा आब्टूसा कीट से फसल को बचाना जरूरी है. 

अरहर फसल के लिए घातक है हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा कीट 

अरहर फसल को सबसे ज्यादा नुकसान हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा कीट पहुंचाता है. इसे फली भेदक कीट के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह फली को काटकर खा जाता है या उसे बर्बाद कर देता है. यह कीट फसल को 25 से 30 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा देता है. मादा कीट पतंगा अपने अंडे अरहर की फलियों, फूलों तथा कोमल फलियों पर फैला देती है. अंडों से 2 से 3 दिनों में गिड़ारें निकलती हैं, जो 4-5 दिनों के दौरान फलियों और उसके अंदर के दानों को खा जाती है. यह कीट ही 

कीटनाशक छिड़काव और बचाव का तरीका 

  • अरहर की फसल को कीट से बचाने के लिए खेत की गर्मी में गहरी जुताई करने चाहिए. इससे प्यूपा बाहर आ जाते हैं और तेज धूप से नष्ट हो जाते हैं.
  • मिश्रित फसल के रूप में मक्का, ज्वार उगाने से कीट का प्रकोप कम है. 
  • मक्का, ज्वार की कटाई के बाद तने को खेत में छोड़ने से पक्षी कीट को खा जाते हैं. 
  • नीम की निबौली का छिडडकाव काफी लाभप्रद होता है.
  • लेबड़ सायलोथ्रिन 40 ग्राम प्रति हेक्टयर, इण्डोस्फान 0.07 प्रतिशत, एफेनवलरेट 0.01 प्रतिशत, साइपरमेथिरन 0.01 प्रतिशत क्लोरपाइरीफास 0.05 प्रतिशत कीटनाश दवा में से किसी एक को तीन बार छिड़काव करना चाहिए. पहला छिड़काव फूल शुरू होते ही और दूसरा छिड़काव 50 प्रतिशत फूल बनने पर और तीसरा छिड़काव 50 प्रतिशत फली बनने की अवस्था में करना चाहिए.

अरहर को चौपट कर देता है मेलानाग्रोमाइजा आब्टूसा कीट 

फली मक्खी यानी मेलानाग्रोमाइजा आब्टूसा कीट का प्रकोप बिहार समेत कई राज्यों में अधिक रहता है. इस कीट से प्रति वर्ष फसल को 20 से 60 प्रतिशत तक नुकसान होता है. यह कीट अरहर की उस किस्म को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है जो देर से पकती हैं. 

दवा छिड़काव और बचाव का तरीका 

  • गर्मी के दिनों में फली मक्खी अरहर फसल के अवशेष और अन्य जंगली पौधों को खाकर जिंदा रहती है, इसलिए इन्हें नष्ट कर देना चाहिए.
  • मोनोक्रोटोफॉस 36 ईसी, डायमेथोएट 30 ईसी (प्रत्येक 1 मिली लीटरपानी में घोल बनाकर तीन छिड़काव करना चाहिए. इसके अलावा क्वीनालफास 25 ईसी 2 मिली लीटर पानी में घोल बनाकर तीन छिड़काव करना चाहिए. पहला छिड़काव फली बनना शुरू होते ही तथा दूसरा और तीसरा छिड़काव दस दिन के अन्तराल पर करना चाहिए.
  • एक किलोग्राम निबोली बीज पाउडर को 20 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर 10 दिन के अन्तराल पर 2 से 3 छिड़काव फलियां बनते समय करना चाहिए.

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