भारत में हरी मिर्च का मसालों में अपना एक अहम रोल है क्योंकि चटपटे भोजन का स्वाद लेना हो तो मिर्च सबसे जरूरी चीजों में से एक है. दरअसल हरी मिर्च एक ऐसी चीज है, जिसका नाम सुनते ही कुछ तीखा और चटपटा स्वाद जहन में आने लगता है. मिर्च न केवल भोजन का एक अहम हिस्सा है बल्कि सेहत के लिए भी कई गुणों से भरपूर होता है. सेहत के गुणों के खजाने से भरी मिर्च को मसाले, दवाई और अचार के लिए प्रयोग किया जाता है. इसकी खेती खरीफ और रबी दोनों सीजन में होती है. खरीफ की फसल के लिए मई से जून माह में इसकी खेती होती है. वहीं रबी की फसल के लिए सितंबर से अक्टूबर माह में इसकी खेती होती है.
मिर्च की बुवाई के लिए सितंबर का महीना सबसे बेहतर माना जाता है. आइए जानते हैं भारत की पांच मशहूर हरी मिर्च की किस्मों के बारे में जिसकी खेती बेहतर पैदावार देती है और किसान इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं.
अगर आप किसान हैं और इस सितंबर महीने में किसी फसल की खेती करना चाहते हैं तो आप हरी मिर्च की कुछ उन्नत किस्मों की खेती कर सकते हैं. इन उन्नत किस्मों में पूसा ज्वाला, काशी अर्ली, जाहवार मिर्च 148, पंजाब लाल और तेजस्विनी किस्में शामिल हैं. इन किस्मों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.
हरी मिर्च की एक खास वैरायटी है. इस किस्म के पौधे बौने और झाड़ीनुमा होते हैं. ये मिर्च हल्के हरे रंग की होती है. पुसा ज्वाला वैरायटी किस्म कीट और मकौड़ा प्रतिरोधक होती है. इस किस्म की औसतन पैदावार 34 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. वहीं यह किस्म 130 से 150 दिन में पक कर तैयार हो जाती है.
मिर्च की इस किस्म के पौधे 60 से 75 सेंटीमीटर लंबे और छोटी गांठों वाले होते हैं. ये किस्म बुवाई के 45 दिनों के अंदर तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है. वहीं इस हरे मिर्च का उत्पादन 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है.
मिर्च की यह उन्नत किस्म जल्द पक जाती है, जोकि कम तीखी होती है. इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 85 से 100 क्विंटल हरी और लगभग 18 से 23 क्विंटल सूखी मिर्च प्राप्त हो जाती है.
पंजाब लाल किस्म के पौधे बौने और गहरी हरी पत्तियों वाले होते हैं. वहीं इसके फलों का आकार मीडियम होता है. इस पर लाल रंग के मिर्च लगते हैं जोकि 120 से 180 दिन में पक जाते हैं. वहीं प्रति हेक्टेयर 100 से 120 क्विंटल हरी मिर्च की उपज मिलती है.
इस किस्म के मिर्च की फलियां मध्यम आकार की होती है. लंबाई लगभग 10 सेंटीमीटर लंबे होते हैं. फसल 75 दिनों में पहली बार तोड़ने लायक हो जाती है. हरे फल का उत्पादन औसतन 200 से 250 क्विंटल तक होता है.