क्या आप कुंदरू के बारे में जानते हैं? यह एक बहुवर्षीय लतादार फसल के रूप में जाना जाता है. यानी एक बार रोपाई करने पर कई साल तक उत्पादन होता है. यह परवल के आकार की हरे रंग की सब्जी है. इसकी खेती बिहार, यूपी, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ आदि में खूब होती है. एक बार बुवाई करने के बाद कई साल तक पैदावार मिलेगी इसलिए इसकी खेती किसानों को अच्छा मुनाफा दिला सकती है.
लेकिन अगर इसकी खेती मचान विधि से हो और सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगा हो तो कहना ही क्या. अच्छी पैदावर होगी और आमदनी में इजाफा होगा. कुंदरू की वैज्ञानिक खेती के जरिए 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन लिया जा सकता है. मार्किट में इसका दाम 40 से 70 रुपये प्रति किलो तक रहता है.
कुंदरू की फसल को लगभग सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है. परन्तु कार्बनिक पदार्थ युक्त बलुई दोमट भूमि सर्वाधिक उपयुक्त होती है. इसमें लवणीय मिट्टी को सहन करने की भी क्षमता होती है. हल्की एवं कमजोर भूमि में, उचित पोषक तत्वों का प्रयोग करके इसकी खेती की जा सकती है. ऐसी भूमि का चुनाव करना चाहिए जिसका पी एच मान 7.00 के लगभग हो.
गर्म और आद्र जलवायु में कुंदरू की खेती आसानी के की जा सकती है. फसल के अच्छे विकास के लिए 30 से 35 डिग्री तापमान तथा 100-150 से. मी. बारिस की आवश्यकता होती है.
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कुंदरू की तैयार पौध को सितम्बर- अक्टूबर महीने में रोपा जा सकता है. कलमों से तैयार कुंदरू के पौधों से पॉलीथीन को हटाकर मिट्टी के साथ रोपाई कर दें. रोपाई के समय १० मादा पौधों के साथ 1 नर पौधा जरूर लगाए ताकि परकरण अच्छे से हो सके. और फसल से अच्छी पैदावार मिल सके.
कुंदरू की खेती के लिए खेत को अच्छी प्रकार से तैयार करने की जरूरत पड़ती है.क्योंकि बहुवर्षीय फसल होने के कारण एक बार लगाया गया पौधा 2 से 4 वर्षों तक लगातार फल देता रहता है| मई से जून के महीने में गहरी जुताई करके खेत खुला छोड़ देते हैं. जिससे खरपतवार तथा कीट एवं रोग नष्ट हो जाएं. जुलाई के महीने में 2 से 3 बार हैरो या कल्टीवेटर से जुताई करके खेत में पाटा लगा देते हैं. लेकिन पानी निकासी का उचित प्रबंध आवश्यक है.
कुंदरू की तुड़ाई रोपाई के करीब तीन-चार महीने बाद कुंदरू तोड़ो शुरू होने लगती है. आमतौर पर कुंदरू तुड़ाई तब करनी चाहिए जब कुंदरू करीब 2 इंच आकार का हो जाये. कुंदरू को सही समय पर हार्वेस्ट करे अन्यथा लाल रंग के हो जाते हैं और उनका स्वाद भी बदल जाता है. कुंदरू से औसतन उपज 240 क्विंटल प्रति हेक्टर तक हो जाती है.